बुधवार, 22 जून 2022

ब्रह्मा, शिव और विष्णु

 ऋग्वैदिक काल के बाद तीन महाशक्तियों का अभ्युदय हुआ। ब्रह्मा, शिव और विष्णु।  आज बहुत से आस्थावान शिव के अनुयायी शिव को एकादश रुद्रों की सम्मिलित शक्ति मानते हैं किन्तु वस्तुत: ऐसा नहीं है। रुद्र अन्य देवों की भाँति ही कश्यप और अदिति के पुत्र हैं किन्तु शिव का उद्गम अज्ञात हैं। उन्हें पुराणों ने अनादि मान लिया है। हमारे पुराणों ने ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता और शिव को संहारकर्ता कहा है। किन्तु आख्यानों में शिव का संहारकर्ता रूप कहीं सामने नहीं आता अपितु वे तो भोले वरदानी के रूप में जाने जाते हैं, सहज ही सब पर प्रसन्न हो जाने वाले वे ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनके भक्त देवों के साथ साथ दैन्य और राक्षस भी हैं।

शिव का मानवता के लिये सबसे बड़ा योगदान योग विद्या का आविष्कार है। आज भी सृष्टि के सबसे बड़े योगी शिव ही माने जाते हैं। शिव ने अनवरत समाधि और योग के माध्यम से अपनी सामर्थ्य को अविश्वसनीय सीमा तक बढ़ा लिया था। इसके साथ ही अपनी आयु को भी। सृष्टि की सबसे ताकतवर शक्ति होते हुये भी अघोरी के रूप में पहचान रखने वाले शिव सहजता और सरलता की प्रतिमूर्ति थे। मात्र एक बाघम्बर लपेटे, शरीर पर राख मले वे अधिकांशत: तो समाधि में ही तल्लीन रहते थे। बाकी शिव के विषय में हर पाठक इतना कुछ जानता है कि और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। शिव ने अपना निवास कैलाश पर्वत पर बनाया। कोई प्रासाद नहीं, कोई विलास के साधन-संसाधन नहीं अनेक आयुधों का विकास करने वाले शिव का सर्वप्रिय आयुध सदैव उनका त्रिशूल रहा।

ब्रह्मा वयस में सबसे बड़े थे श्वेतकेशी । योग पर इनका भी पूर्ण अधिकार था। ये भी अत्यंत सहज सरल थे। ज्ञान प्राप्त करना और कराना इनका व्यसन था। सृष्टि के विकास में इनका प्रमुख योगदान रहा इसीलिये इन्हें सृष्टिकर्ता माना गया। अनेक आयुधों का सर्जक होते हुये भी इन्हें सम्भवत: कभी उनके प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी ।

इन दोनों के विपरीत विष्णु पूर्वोक्त देवों में से ही एक थे जिन्होंने अपनी एक पृथक पहचान बना ली थी। शारीरिक शक्ति में शिव से कमतर और ज्ञान में ब्रह्मा से कमतर होते हुये भी विष्णु सर्वाधिक मान्य हुये। कारण था उनकी दूरदृष्टि, त्वरित बुद्धि और कूटनीति सत्य का पक्षधर होते हुये भी विष्णु की मान्यता थी कि साध्य की श्रेष्ठता महत्वपूर्ण है। श्रेष्ठ साध्य को प्राप्त करने के लिये यदि साथन की शुचिता से समझौता भी करना पड़े तो कर लेना चाहिये। अपनी पृथक महत्वपूर्ण पहचान स्थापित कर लेने के बाद भी विष्णु सदैव देवों के सहयोगी बने रहे। उन्हीं की बदौलत देवों ने सदैव दैत्यों पर विजय प्राप्त की। विष्णु के गुण पूरी तरह आज तक बस एक बार किसी और में देखने को मिले द्वापर में श्रीकृष्ण में। इसीलिये उन्हें विष्णु का पूर्णावतार मान लिया गया।

सुलभ अग्निहोत्री 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...