मंगलवार, 12 जुलाई 2022

मायावती भाग 2

 वज्र-गर्जना के समान शम्बर के शब्द दोनों के कानों में पड़े। असुरराज कह रहा था-

“अरे विश्रवा मुनि के पुत्र, तेरे शस्त्र कहां हैं, शस्त्र ले। तू कुलीन है, प्रजापति का वंशधर है, लोकपाल का भाई है। मैं तेरा निरस्त्र वध नहीं करूंगा।" 

असुर सम्राट् के ये वाक्य सुनते ही मायावती मूर्च्छित हो गई। रावण ने उसे छोड़ दिया। वह नीची आंखें करके शम्बर के आगे खड़ा हो गया।

शम्बर ने कहा- "शस्त्र ग्रहण कर रावण!"

"नहीं, आप मेरा निरस्त्र ही वध कीजिए।"

“यह मेरे कुल की मर्यादा नहीं।”

 “किन्तु मैं शस्त्र ग्रहण नहीं करूंगा।"

“तो मल्लयुद्ध कर।”

 शम्बर ने अपने हाथ का शूल दूर फेंक दिया। परन्तु रावण उसी भांति सिर नीचा किए खड़ा रहा। शम्बर ने कहा- 

“मैं विलम्ब और आज्ञा की अवज्ञा सहन नहीं कर सकता, रावण ।”


“मैं आपसे युद्ध नहीं करूंगा।"


“नहीं कैसे करेगा रे, लम्पट, परस्त्रीगामी, चोर !" 

असुर ने एक लात मारी। लात खाकर रावण भूमि पर जा गिरा। असुर ने कहा-

 "युद्ध कर!"


"नहीं, किन्तु तुम अब मेरा वध करो असुरराज।" 

"वध नहीं, पाद - प्रहार करूंगा।"

"पाद - प्रहार नहीं। अनुग्रह मांगता हूं, तुम मेरा वध करो।”


परन्तु असुर ने फिर रावण की छाती पर लात मारी। इस बार रावण लात खाकर गिरा नहीं। दो कदम पीछे हट गया। उसने कहा-

 "असुर शम्बर, अब बस करो। बहुत हुआ। दोष-निवारण हो गया। मैं तुम्हें क्षमा करता हूं, अब मुझे जाने दो।”


“तू ऐसा जघन्य अपराध करके जीवित जाएगा मेरी पुरी से !”

 “किन्तु मैंने तुम्हारा कोई अपराध ही नहीं किया।"


“अरे लम्पट, अपराध नहीं किया? तूने क्या मेरी पत्नी से बलात्कार की चेष्टा नहीं की?"


“स्त्री और पृथ्वी वीरभोग्या हैं फिर असुरों की स्त्रियों पर किसी का एकाधिकार नहीं, वे सभी के लिए हैं । " 

“किन्तु मेरी यह लात केवल तेरे लिए है।”

 असुर ने फिर रावण के वक्ष पर लात मारी। इस बार रावण ने असुर का पैर पकड़कर उसे अपने सिर के चारों ओर घुमाकर दूर फेंक दिया। शम्बर घूमते हुए चक्र की भांति एक धनुष दूर जा गिरा। इस बीच रावण ने अपना कुठार उठा लिया।


शम्बर भी उठकर शूल लेकर रावण पर झपटा। उसने भरपूर वेग से शूल रावण के ऊपर फेंका। शूल रावण के पाश्र्व में घुस गया। पर रावण ने परशु सिर पर घुमाकर असुर पर आघात किया । असुर घूमकर वार बचा गया, किन्तु वह घुटनों के बल गिर गया। रावण ने फिर परशु का प्रहार किया। असुर ने लेटकर प्रहार बचा, रावण के पैरों में घुस, उसे गिरा दिया। परशु हाथ से छूट गया। दोनों योद्धा परस्पर गुंथ गए। दोनों एक-दूसरे पर लात-मुक्कों का प्रहार करने लगे। दोनों एक-दूसरे को दलमल करने लगे। दोनों के शरीर और नाक-मुंह से रक्त झरने लगा। लड़ते-लड़ते ही दोनों योद्धा फिर खड़े हो गए। असुर ने विकराल खड्ग उठाया। रावण ने अपना परशु लिया। दोनों घात-प्रतिघात करने लगे। रावण प्रबल पराक्रम से भिड़ गया। अन्त में असुर ने खड्ग का रावण के सिर पर प्रहार किया। उस प्रहार से रावण का किरीट गिर गया और वह बेसुध होकर कटे वृक्ष की भांति धरती पर गिर गया। शम्बर ने उसके हाथ-पैर बांधकर अन्धकूप में डलवा दिया।


आचार्य चतुरसेन शास्त्री




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