परिशिष्टम् - २
गृह-समृद्धि हेतु वास्तु नियम
अनन्त शक्तियों से समन्वित प्रकृत प्रकृति में सृष्टि, विकास एवं प्रलय की प्रक्रिया सतत् प्रवहमान रहती है। वास्तुशास्त्र में पञ्चमहाभूतों के साथ-साथ प्रकृति की तीन शक्तियों पर भी विचार किया जाता है; वे शक्तियाँ है- गुरुत्व ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा। पञ्चमहाभूत से निर्मित शरीर को सुखमय एवं स्वस्थ बनाने के लिये जिस भवन में अग्नि, आकाश, भूमि, जल एवं वायुस्वरूप पञ्चमहाभूत का यदि सम्यक् रूप से नियोजन किया जाय तो उस निर्मित भवन में निवास करने वाले प्राणी निश्चित रूप से सदा-सर्वदा शारीरिक, मानसिक एवं भौतिक रूप से समृद्ध रहते हैं। अतः भवन-निर्माण के क्रम में सर्वसाधारण के लिये कतिपय स्मर्तव्य नियमों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है, जिसका पालन करने पर निर्मित भवन एवं उसको अपना आश्रय बनाने वाले प्राणी सदैव ऊर्जावान बने रहते हैं; वे नियम निम्नवत् हैं-
१. सफेद रंग की सुगन्धित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के लिये श्रेष्ठ मानी गयी है।
२. लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिये शुभ मानी गयी है।
३. हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तीय संस्थानों के लिये शुभ मानी गयी है।
४. काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अशुभ होती है। यह शुद्रों के लिये उपयुक्त कही गई है।
५. मधुर, समतल, सुगन्धित व ठोस भूमि भवन बनाने हेतु उपयुक्त होती है।
६. खुदाई में चींटी, दीमक, अजगर, साँप, हड्डी, कपड़े, राख, कौड़ी, जली हुई लकड़ी व लोहा मिलना अशुभ होता है।
७. भूमि का ढलान उत्तर व पूर्व में तथा छत की ढ़लान ईशान में शुभ होती है।
८. भूखण्ड के दक्षिण या पश्चिम में ऊँचे मकान, पहाड, टीले या पेड अशुभ होते हैं।
९. भूखण्ड से पूर्व या उत्तर की ओर यदि कोई नदी या नहर हो तथा उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो तो यह भूखण्ड शुभ होता है।
१०. भूखण्ड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जलस्रोत, कुआँ, तालाब व बाबडी शुभ होती है।
११. भूखण्ड या भवन यदि दो बड़े भूखण्डों के मध्य हो तो वह अशुभ होता है।
१२. आयताकार, वृत्ताकार व गोमुख भूखण्ड गृह-निर्माण के लिये शुभ होता है। वृत्ताकार भूखण्ड में निर्माण भी वृत्ताकर ही होना चाहिये।
१३. सिंहमुखी भूखण्ड व्यावसायिक भवन-हेतु शुभ होता है।
१४. भूखण्ड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।
१५. भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है। दक्षिण या पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिये शुभ होते हैं।
१६. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खम्मा व गड्डा अशुभ होते हैं।
१७. यदि आवासीय परिसर में बेसमेन्ट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर या पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुये बनाना चाहिये। बेसमेन्ट की ऊँचाई कम से कम ९ फीट होनी चाहिये तथा वह तल से ३ फीट ऊपर होना चाहिये, जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।
१८. कुआँ, बोरिंग व भूमिगत टंकी उत्तर, पूर्व या ईशानकोण में बनानी चाहिये।
१९. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊँचाई १२ फीट होनी चाहिये; किन्तु यह १० फीट से कम कथापि नहीं होनी चाहिये।
२०. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊँचा होना चाहिये एवं पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिये। भवन में नैर्ऋत्य सबसे ऊँचा व ईशान सबसे नीचा होना चाहिये।
२१. भवन का मुख्य द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों को उत्तर में, वैश्य को दक्षिण में तथा शूद्रों को पश्चिम में बनाना चाहिये। इसके लिये ८१ पदों का वास्तुचक्र बनाकर निर्णय करना चाहिये।
२२. द्वार की चौड़ाई उसकी ऊँचाई से आधी होनी चाहिये। बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिये।
२३. खिड़कियों घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम संख्या में होनी चाहिये।
२४. घर के ब्रह्मस्थान को खुला, साफ तथा हेवादार होना चाहिये।
२५. गृहनिर्माण में ८१ पद वाले वास्तुचक्र में ९ स्थान ब्रह्मस्थान के नियत किये गये हैं।
२६. चारदीवारी के अन्दर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहिये। उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में तथा सबसे कम दक्षिण में छोड़ना चाहिये। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिये।
२७. घर के ईशान कोण में पूजाघर, कुआँ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूप, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेन्ट बनाना शुभ होता है
२८. घर की पूर्व दिशा में स्नानघर, तहखाना, बरामदा, कुओं, बगीचा व पूजाघर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोईघर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य शयनकक्ष, भण्डार-गृह, सीढ़ियों व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं। घर के नैर्ऋत्य कोण में शयनकक्ष, भारी व कम उपयोग के सामान का स्टोर, सीढ़ियाँ, ओवरहेड वाटर टैंक,शौचालय व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं।
२९. घर के वायव्य कोण में अतिथिघर, कुँआरी कन्याओं का शयनकक्ष, रोदन कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियों, अनभण्डारकक्ष व शौचालय बनाये जस सकते हैं। कोषागार व लिविंग रूम बनाये जा सकते हैं।
३१. घर का हल्का सामान उत्तर या पूर्व या ईशान में रखना चाहिये।
३०. घर की उत्तर दिशा में कुआँ, तालाब, बगीचा, पूजाघर, तहखाना, स्वागतकक्ष,
३२. घर के नैर्ऋत्य कोण में किरायेदार या अतिथियों को नहीं ठहराना चाहिये।
३३. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिये अथवा मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिये। ससुराल में दक्षिण की ओर एवं परदेश में पश्चिम की ओर सिर रखकर सोना चाहिये।
३४. दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मूत्र का त्याग करना चाहिये। घर के पूजास्थान में बड़ी मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिये।
३५. घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्यदेव की प्रतिमा, तीन देवी-प्रतिमा, दो गोमतीचक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिये।
३६. घर में भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिये।
३७. सीढ़ियों के नीचे पूजाघर, शौचालय व रसोईघर का निर्माण नहीं कराना चाहिये।
३८. धन की तिजोरी का मुख उत्तर दिशा में रखना चाहिये।