कृष्ण के बहुत रंगों की बात हुई है। बहुत रंगों के आदमी थे! रंगीन आदमी थे! एक रंग में उनको नहीं बताया जा सकता। इसी कारण। बहुत रंग के आदमी थे। कई रंग एक साथ थे उस आदमी में। शरीर तो एक ही रंग का रहा होगा, लेकिन आदमी कई रंग का था। फिर देखने वाली आंखों पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि कौन-सा रंग दिखाई पड़ता है। तो जिनने जिस आंख से देखा होगा, उन्हें वे रंग दिखाई पड़ गए होंगे। हां, एक आदमी भी तीन हालातों में तीन रंग देख सकता है। क्योंकि एक ही आदमी तीन हालातों में एक ही आदमी कहां रहता है? कभी जब मैं प्रेम में होता हूं तब आपको दूसरा रंग दिखाई पड़ता है। और जब मैं क्रोध में होता हूं तब दूसरा रंग दिखाई पड़ता है। और कभी आप मेरे प्रति प्रेम में होते हैं तब दूसरा रंग दिखाई पड़ता है। और कभी जब आप मेरे प्रति क्रोध में होते हैं तो दूसरा रंग दिखाई पड़ता है। और वे रंग रोज बदलते रहते हैं। रंग प्रतिपल बदलते रहते हैं। सब बदलता रहता है। यहां थिर कुछ भी नहीं है। इस जगत में थिरता जैसी बात ही झूठ है। यहां सब बदल रहा है। लेकिन, अधिक लोगों ने उनमें सांवला रंग ही देखा। उसके कुछ कारण हैं।
ऐसा लगता है कि सांवला रंग उनकी थिरता का स्थायित्व गुण रहा होगा। यानी वे सांवले रंग में ही अथिर होते रहे होंगे। वह चंचल रहे होंगे, सांवले रंग में ही। मेरे देश के मन में सांवले रंग के लिए कुछ आग्रह हैं। असल में गोरा रंग उतना सुंदर कभी भी नहीं होता, जितना सांवला रंग सुंदर होता है। उसके कई कारण हैं। लेकिन आमतौर से हमें गोरा रंग सुंदर दिखाई पड़ता है, क्योंकि गोरे रंग की चमक में बहुत-सी असुंदरताएं छिप जाती हैं। और काले रंग में कुछ भी नहीं छिपता, इसलिए काला आदमी मुश्किल से कभी सुंदर होता है। गोरे आदमी बहुत सुंदर होते हैं क्योंकि काला रंग कुछ छिपाता नहीं है, सीधा प्रगट कर देता है। सफेदी की चमक में बहुत-सी चीजें छिप जाती हैं। इसलिए गोरे रंग के बहुत-से आदमी सुंदर दिखाई पड़ेंगे, काले रंग का कभी-कभी कोई आदमी सुंदर होता है। लेकिन जब काले रंग का कोई सुंदर होता है, तो गोरे रंग का सुंदर आदमी एकदम फीका पड़ जाता है। इसलिए हमने राम को भी सांवला, कृष्ण को भी सांवला--हमने जिनको भी सुंदर देखा उनको हमने सांवले रंग में देखा। सांवले रंग का सौंदर्य "रेअरिटी' है। वह बहुत "रेअर' है। सफेद रंग के सुंदर बहुत लोग होते हैं। वह कोई "रेअरिटी' नहीं है। वह कोई बहुत विशेषता नहीं है। सफेद रंग का सुंदर होना बड़ी साधारण बात है, सांवले रंग का सुंदर होना बड़ी असाधारण बात है।
कुछ और भी कारण हैं। सफेद रंग में गहराई नहीं होती, "डेप्थ' नहीं होती, फैलाव होता है। इसलिए सफेद शक्ल "फ्लैट' होती है, "डीप' नहीं होती। नदी देखी है, जब गहरी हो जाती है तब सांवली हो जाती है। सांवले रंग में एक "डेप्थ' है। फैलाव नहीं है, एक "इनटेंसिटी' है। सांवला चेहरा चेहरे पर ही समाप्त नहीं होता, उसमें भीतर कुछ "ट्रांसपेरेंट' भी होता है। उसमें पर्तें होती हैं। सांवले आदमी के चेहरे के भीतर चेहरे, चेहरे के भीतर चेहरों की पर्तें होती हैं। हां, गोरा आदमी "फ्लैट' होता है, उसका चेहरा साफ, जो है सामने होता है। इसलिए गोरे रंग से बहुत जल्दी ऊब पैदा हो जाती है। सांवले रंग से ऊब पैदा नहीं होती। उसमें नए रंग दिखाई ही पड़ते चले जाते हैं। और कृष्ण जैसा आदमी ऐसा आदमी है कि उससे ऊब पैदा हो नहीं सकती।
अभी आप जानकर हैरान होंगे कि पश्चिम की सारी सुंदरियां सांवला होने के लिए बड़ी दीवानी हैं। सागर के तट पर लेटी हैं। किसी तरह धूप थोड़ी सांवली कर दे। क्या पागलपन आ गया है? असल में जब भी कोई संस्कृति अपने शिखर पर पहुंचती है, तब फैलाव कम मूल्य का रह जाता है, गहराई ज्यादा मूल्य की हो जाती है। हमको पश्चिम का आदमी सुंदर दिखाई पड़ता है, पश्चिम का आदमी जानता है कि अब सौंदर्य गहराई में खोजना है, हो चुकी वह बात। अब पश्चिम की सुंदर स्त्री सांवला होने की कोशिश में लगी है। इसलिए पश्चिम का सुंदरतम आदमी भी "ट्रांसपेरेंट' नहीं होता। उसका चेहरा बोथला हो जाता है। वह सफेद रंग की खराबी है।
वह सफेद रंग की खूबियां हैं, कि बहुत लोग सुंदर हो सकते हैं सफेद रंग में। सफेद रंग की खराबी है, कि उसमें बहुत गहरा सौंदर्य नहीं हो सकता। इसलिए सांवले रंग पर हमने देखा। मैं नहीं मानता कि कृष्ण सांवले रहे ही होंगे यह कोई जरूरी नहीं है। हमने सांवला देखा। इतना प्यारा आदमी था कि हम उसको गोरा नहीं सोच सके। हमने उनको सांवला सोचा। वे सांवले हो भी सकते हैं, वह मेरे लिए गौण है।
मेरे लिए तथ्य बहुत गौण हैं। मेरे लिए काव्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम न सोच सके इस आदमी को गोरा, क्योंकि यह इतने रंग का आदमी था, इतना गहरा आदमी था, और इसके चेहरे में झांकते जाने, झांकते जाने का मन होता था, डूबते जाने का मन होता था। इसमें और गहराइयां थीं, जो उघड़ती चली जाती थीं। इसलिए बहुत रंग में एक व्यक्ति ने भी देखा और बहुत लोगों ने भी देखा, पर एक स्थायी रंग में हमने सोचा है, वह है सांवला रंग। श्याम नाम ही उनको इसलिए दे दिया। श्याम का मतलब है, काले। कृष्ण का मतलब भी है, काला। न केवल हमने सोचा, बल्कि हमने नाम भी जो उन्हें दिए उसमें सांवलापन था। श्याम कहा, कृष्ण कहा, वे सब काले रंग के ही प्रतीक हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें