सोमवार, 7 अगस्त 2023

धन

 सिकंदर एक फकीर से मिला और उसने फकीर से कहा कि मैं संसार को जीतने निकला हूं, मुझे आशीर्वाद दो। उस फकीर ने कहा,आशीर्वाद दूंगा, उसके पहले एक प्रश्न है! मान लो कि तुम संसार जीत लिए और एक महा रेगिस्तान में अकेले पड़ गए हो,  भयंकर प्यास लगी है और एक गिलास पानी मिल जाए इसके लिए तडफ रहे हो; अगर नहीं मिला तो मर जाओगे। और मैं एक गिलास पानी लेकर वहां आता हूं। लेकिन मैं एक गिलास पानी भी मुफ्त नहीं दे दूंगा । तुम कितना मूल्य चुकाने को राजी होओगे? सिकंदर ने कहा,जो मांगोगे। फकीर ने कहा,आधा राज्य। सिकंदर थोड़ा झिझका,हालांकि अभी देने,लेने की कोई बात नहीं थी, यह केवल कल्पना का सवाल था, लेकिन फिर भी झिझका,आधा राज्य, एक गिलास पानी के लिए।

 लेकिन फिर पूरे हालात पर गौर किया। भयंकर रेगिस्तान,आग बरसती भरी दोपहरी, कहीं कोई रास्ते का पता नहीं, दूर दूर तक गांव की कोई खबर नहीं;कब पहुंच पाऊंगा इस रेगिस्तान के बाहर कोई संभावना नहीं, प्यास से मरा जा रहा हूं। तो अब आधा राज्य भी अगर देना पड़े एक गिलास पानी के लिए सिंकंदर ने थोड़े संकोच से कहा कि ठीक है, अगर ऐसी परिस्थिति होगी और मृत्यु सामने खड़ी होगी, तो फिर आधा राज्य भी दे दूंगा। फकीर ने कहा,मैं भी  इतनी जल्दी पानी बेच नहीं दूंगा, पूरा राज्य चाहिए। सिकंदर ने कहा, क्या बात करते हो, कुछ सीमा होती है एक गिलास पानी का इतना मूल्य! पर फकीर ने कहा,परिस्थिति सोच लो, वही एक गिलास पानी तुम्हारा जीवन है, पूरा राज्य दोगे तो ही दे सकूंगा। सिकंदर ने थोड़ा सोचा और कहा,अच्छा, अगर ऐसी स्थिति होगी तो पूरा राज्य भी दूंगा, क्योंकि जीवन बड़ी चीज है। 

फकीर हंसने लगा। उसने कहा, बस इसको तुम याद रखना, जीवन बड़ी चीज है। तुम जीवन को गंवा दोगे, राज्य पा लोगे,और राज्य की इतनी कीमत है कि जरूरत पड़ जाए तो एक गिलास पानी में बिक जाए। इसका मूल्य कितना है?

लोग धन खोज रहे हैं, सुख खोज रहे हैं, सोचते हैं धन से सुख मिल जायेगा, लेकिन मिला तो दुख। तुमने सोचा था आम बो रहे हो, बो दी थी नीम। फल सिद्ध करेगा कि क्या बोया था। तुम जरा अमीर आदमियों को देखो, तुम उनकी आंखों मे जीवन की खुशी पाते हो? और उनके हृदय में प्रेम का गीत उठता है? और उनके पैरों में कोई नृत्य है, अनुग्रह है, परमात्मा के प्रति कोई धन्यवाद है? नहीं, दुख है, शिकायत है। वे बिलकुल हारे थके खड़े है। 

उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या करें? अब तक सोचते थे धन मिलने से सुख मिलेगा, धन मिल गया और सुख का तो कुछ पता नहीं है, और जीवन हाथ से गया, धन का ढेर लगा है और जीवन हाथ से खो गया है, वह जीवन जो दुबारा वापस नहीं मिल सकता, वह समय जिसे लौटाने का कोई उपाय नहीं। यह ठीकरे का ढेर लग गया। किस कीमत पर? 

तुम धनी आदमी को जरा गौर से देखो, जाचो; जो पद पर पहुंच गए हैं, उनको जरा परखो, पहचानो; वे सभी यह सोचते थे कि सुख की तलाश में चले हैं; नर्क में पहुंच गए हैं। मानने से थोड़े ही कोई स्वर्ग पहुंचता है। तुम्हारी दिशा कहां है। तो दुनिया में जिनको तुम संसारी कहते हो, वे भी दुख ही खोज रहे हैं। सिर्फ अपने को भरमाने के लिए उन्होंने दुख के डिब्बों पर सुख के लेबिल लगा रखे हैं। और जिसको तुम धार्मिक कहते हो, वह भी दुख खोज रहा है। उसने अपने दुख के डिब्बों पर पुण्य के लेबिल लगा रखे हैं। इतना ही भेद है। लेबिल का भेद है। दोनों दुख खोज रहे हैं।  

फिर सुख का क्या मतलब होगा? सुख का एक ही मतलब हो सकता है कि दुख मेरे मैं को पुष्ट करता है; सुख की खोज का एक ही अर्थ हो सकता है कि मैं इस मैं को छोड़ दूं जो दुख पर जीता है, जिसके लिए दुख अनिवार्य है, मैं इस दुख को छोड़ दूं। दुख का त्याग इस जगत में सब से बड़ा त्याग है।

बिना मिटे इस जगत में होने का कोई उपाय नहीं। छोटे तल पर मिटो तो बड़े तल पर प्रकट होते हो। जितने ज्यादा मिटो, उतने प्रकट होते हो। जब परिपूर्ण रूप से मिटते हो, तब भगवत्ता उपलब्ध होती है क्योंकि भगवत्ता पूर्णता है, उसके पार फिर कुछ और नहीं। लेकिन यह हो सकता है इसीलिए, क्योंकि यह हुआ ही  है। इस उदघोषणा को जगह दो अपने हृदय मे।

तुम भगवान हो सकते हो, क्योंकि तुम भगवान हो। भगवान ने तुम्हें एक क्षण को नहीं छोड़ा, तुम भला पीठ करके खड़े हो गए हो। तुमने भला आखें बंद कर ली हैं, सूरज निकला है और चारों तरफ जगत रोशन है। तुम अंधेरे मे खड़े हो, यह तुम्हारा निर्णय है। अंधेरा है नहीं, अंधेरा बनाया हुआ है, कृत्रिम है। इस कृत्रिम बनाए हुए अंधेरे का नाम माया है, जो आदमी खुद बना लेता है।

लोग दुख को बड़ी मुश्किल से छोड़ते हैं? बात एकदम से कहो तो बेबूझ लगती है।आदमी सुख चाहता है। यह बात तो इतनी प्रचारित की गई है कि हम ने मान लिया है कि आदमी सुखवादी है, सभी सुख चाहते है। लेकिन जरा आदमी को गौर से देखो। आदमी दुख को पकड़ता है, दुख को छोड़ता नहीं। आदमी दुखवादी है।

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