सोमवार, 7 अगस्त 2023

कृष्ण का जन्म


कृष्ण का जन्म हो, या किसी और का जन्म हो, जन्म की स्थिति में भेद नहीं है। इसे थोड़ा समझना जरूरी है। लेकिन सदा से हम भेद देखते आए हैं। वह कुछ प्रतीकों को न समझने के कारण।

कृष्ण का जन्म होता है अंधेरी रात में। सभी का जन्म अंधेरी रात में होता है  जन्म तो अंधेरे में ही होता है। असल में जगत की कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती, सब कुछ जन्म अंधेरे में ही होता है। एक बीज भी फूटता है तो जमीन के अंधेरे में जन्मता है। फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अंधेरे में होता है।

कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था, इतना गहन अंधकार था। 

दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है--बंधन में जन्म होता है; कारागृह में। किस का जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएं, जरूरी नहीं है। हो सकता है हम मरें भी कारागृह में। जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में जन्म लेती है।

लेकिन इस प्रतीक को ठीक से नहीं समझा गया। इस बहुत काव्यात्मक बात को ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई। सभी जन्म कारागृह में होते हैं; सभी मृत्युएं कारागृह में नहीं होतीं। कुछ मृत्युएं मुक्ति में होती हैं। कुछ; अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएं, टूट जाएं सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई।

कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि जन्म के साथ ही उनके मरने का डर है। उन्हें मारे जाने की धमकी है। किस को नहीं है? जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जिआ हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है जितना सत्तर साल जिआ हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए। कृष्ण के जन्म के साथ ही मौत की धमकी है, मरने का भय है। सबके जन्म के साथ वही है। जन्म के बाद हम मरने के अतिरिक्त और करते ही क्या हैं? जन्म के बाद हम रोज-रोज मरते ही तो हैं। जिसे हम जीवन कहते हैं, वह मरने की लंबी यात्रा ही तो है। जन्म से शुरू होती है, मौत पर पूरी हो जाती है।

लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने की बहुत तरह की घटनाएं आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी उन्हें मारने आता है वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। उसका भी बड़ा मतलब है। हमारे साथ ऐसा नहीं होता। मौत पहले ही हमले में हमें ले जाएगी। हम पहले हमले से ही न बच पाएंगे। क्योंकि सच तो यह है कि करीब-करीब मरे हुए लोग हैं, जरा-सा धक्का और मर जाएंगे। जिंदगी का हमें कोई पता भी तो नहीं है। उस जीवन का हमें कोई पता ही नहीं है जिसके दरवाजे पर मौत सदा हार जाती है।

कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है। बहुत रूपों में। वे सब रूपों की कथाएं हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है। मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है, जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएं, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और कृष्ण जिए ही चले जाते हैं। इसका मतलब है। इसका मतलब है, मौत पर जीवन की जीत। लेकिन ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा हूं, कही नहीं गई हैं। इतने सीधे कहने का पुराने आदमी के पास उपाय नहीं था। इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।

जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का जो ढंग है वह चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता। अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का? सपनों में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता है। क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं। सपने के मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा है। सपने अभी भी पुराने हैं, अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो पाया। अभी भी कोई आदमी आधुनिक सपना नहीं देखता है। अभी भी सपने तो वही हैं जो दस हजार साल, दस लाख साल पुराने थे। गुहा-मानव ने गुफा में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे, वही एयरकंडीशंड मकान में भी देखे जाते हैं। बस, कोई और फर्क नहीं पड़ा है। सपने की खूबी है कि उसकी सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।

अगर एक आदमी बहुत महत्वाकांक्षी है तो सपने में महत्वाकांक्षा को वह क्या करेगा? चित्र बनाएगा। हो सकता है उसके पंख लग जाएं और वह आकाश में उड़ जाए। सभी महत्वाकांक्षी लोग उड़ने का सपना देखेंगे, "एम्बीशस माइंड' उड़ने का सपना देखेगा। उड़ने का मतलब है सब के ऊपर हो जाना। उड़ने का मतलब है कि कोई सीमा न रही ऊपर उठने की। जितना चाहो, उठ सकते हो। पहाड़ नीचे छूट जाते हैं, आदमी नीचे छूट जाते हैं, चांदत्तारे नीचे छूट जाते हैं और आदमी ऊपर उठता चला जाता है। महत्वाकांक्षा शब्द का उपयोग सपने में नहीं होगा। उड़ने के चित्र का उपयोग होगा। इसलिए तो हम अपने सपने समझने में असमर्थ हो गए हैं। क्योंकि दिन में हम जो भाषा बोलते हैं, वह शब्दों की है, रात जो सपना देखते हैं, वह चित्रों का है। दिन में जो भाषा बोलते हैं वह बीसवीं सदी की है, रात जो सपना देखते हैं, वह आदिम है। इन दोनों के बीच लाखों साल का फासला है। इसलिए सपना क्या कहता है, यह हम नहीं समझ पाते।

जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे--और कृष्ण बहुत पुराने हैं, इस अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों में, चित्रों में सारा-का-सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के जीवन की घटनाएं लिखी गई हैं। उन घटनाओं को डिकोड करना पड़ता है। उन घटनाओं को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है। इसलिए ध्यान रहे कि क्राइस्ट का जीवन भी करीब-करीब कृष्ण जैसा ही शुरू होता है। उसमें बहुत फर्क नहीं है। इसलिए बहुत लोगों को यहां तक भ्रम पैदा हो गया था--अभी भी कुछ लोगों को है--कि क्राइस्ट हुए ही नहीं, यह कृष्ण की ही कथा है जो यात्रा करके और जेरूसलम तक पहुंच गई है। क्योंकि जन्म की कथा में बड़ा साम्य है। अंधेरी रात में, मृत्यु के भय से घिरे हुए, जीसस का जन्म होता है। यहां कंस धमकी दे रहा है कृष्ण की मृत्यु की। वहां हिरोद सम्राट जीसस को हत्या की धमकी दे रहा है। यहां कंस ने बच्चे कटवा डाले हैं कि उसका मारने वाला पैदा न हो जाए, वहां हिरोद ने बच्चे कटवा डाले हैं कि उसका मारने वाला पैदा न हो जाए।

नहीं, लेकिन कृष्ण की कहानी क्राइस्ट की कहानी नहीं है। जीसस अलग ही व्यक्ति हैं, अलग ही उनकी यात्रा है। लेकिन प्रतीक दोनों समान हैं। और प्रतीक इसलिए दोनों समान हैं कि "प्रिमिटिव माइंड' एकदम समान होता है। यह आपसे कहने जैसी बात है कि चाहे अंग्रेज सपना देखे और चाहे चीनी सपना देखे और चाहे जापानी सपना देखे, सपने की भाषा एक है। हमारी बोलने की भाषाएं अलग हैं। "मिथ', पुराण की भाषा एक है। तो जो प्रतीक पुराने मन में उठे थे कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ गए, वे ही प्रतीक जीसस के जन्म के साथ जुड़ गए। लेकिन यह एक व्यक्ति होने का भ्रम और एक कारण से पैदा हुआ कि जीसस का नाम तो जीसस है, लेकिन बाद में उनके साथ जुड़ गया क्राइस्ट। "क्राइस्ट' शब्द को कृष्ण शब्द का रूपांतर माना जा सकता है। 

जीसस तो अलग व्यक्ति हैं। लेकिन इस बात की संभावना है कि कृष्ण शब्द यात्रा करते-करते "क्राइस्ट' हो गया हो। क्योंकि जीसस की "क्राइस्ट' एक पदवी है, जैसे कि वर्द्धमान की पदवी महावीर है। वर्द्धमान घर का नाम है। बाद में जब वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए तो महावीर नाम हो गया। बुद्ध घर का नाम नहीं है, गौतम सिद्धार्थ घर का नाम है। जब वे ज्ञान को उपलब्ध हुए तो बुद्ध हो गए। जीसस घर का नाम है। जब वे ज्ञान को उपलब्ध हुए तो क्राइस्ट हो गए। अब यह क्राइस्ट शब्द हो सकता है कि कृष्ण से ही गया हो, इसमें बहुत कठिनाई नहीं है। यह कहा जा सकता है। लेकिन, जीसस का व्यक्तित्व अलग व्यक्तित्व है। जन्म की घटनाओं में जरूर तालमेल है। दो व्यक्ति हैं, वे एक नहीं हैं। जन्म की घटनाओं का तालमेल एक ही व्यक्ति के जन्म के कारण नहीं है। जन्म की घटनाओं का तालमेल एक ही तरह के अचेतन मन में पैदा हुए प्रतीकों का है।

और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा समझना जरूरी है।कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, कशिश का केंद्र।  जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे । कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह "सेंटर आफ ग्रेविटेशन' है जिस पर सब चीजें खिंचती हैं और आकृष्ट होती हैं। शरीर खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है। वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं। उस कृष्ण-बिंदु के आसपास "क्रिस्टलाइजेशन' शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होते हैं। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति-विशेष का जन्म नहीं है, बल्कि व्यक्ति का जन्म है।

अंधेरे का, कारागृह का, मृत्यु के भय का अर्थ है। लेकिन, इसे कृष्ण के साथ उसे क्यों जोड़ा होगा?  वे बंधन में पैदा हुए हों या न हुए हों, वे कारागृह में जन्मे हों या न जन्मे हों, लेकिन कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो कि प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है।

ध्यान रहे, महापुरुषों की कथाएं जन्म की हमसे उल्टी चलती हैं। साधारण आदमी के जीवन की कथा जन्म से शुरू होती है और मृत्यु पर पूरी होती है। उसकी कथा में एक "सिक्वेंस' होता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक। महापुरुषों की कथाएं फिर से "रिट्रास्पेक्टिवली' लिखी जाती हैं। महापुरुष पहचान में आते हैं बाद में। और उनकी जन्म की कथाएं फिर बाद में लिखी जाती हैं। कृष्ण जैसा आदमी जब हमें दिखाई पड़ता है तब तो पैदा होने के बहुत बाद दिखाई पड़ता है। वर्षों बीत गए होते हैं उसे पैदा हुए। जब वह हमें दिखाई पड़ता है तब वह कोई चालीस-पचास साल की यात्रा कर चुका होता है। फिर इस महिमावान, इस अदभुत व्यक्ति के आसपास कथा निर्मित होती है। फिर हम चुनाव करते हैं इसकी जिंदगी का, फिर हम "रीइंटरप्रीट' करते हैं, फिर से व्याख्याएं शुरू होती हैं। फिर से हम इसके पिछले जीवन में से घटनाएं चुनते हैं, घटनाओं का अर्थ देते हैं। इसलिए मैं आप से कहूं कि महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।

पीछे लौटकर जब हम देखते हैं ।तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटित हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी में बार-बार लिखी जाती है। हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएं होती चली जाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक "इंस्टीटयूशन' हो जाते हैं। फिर वे समस्त जन्मों के सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र के जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है।  कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे "कलेक्टिव माइंड' के प्रतीक हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।

इसे ऐसा समझें--एक बहुत बड़े चित्रकार ने एक स्त्री का चित्र बनाया--एक बहुत सुंदर स्त्री का चित्र। लोगों ने उससे पूछा कि यह कौन स्त्री है, जिसके आधार पर इस चित्र को बनाया है? उस चित्रकार ने कहा, यह किसी स्त्री का चित्र नहीं है। यह लाखों स्त्रियां जो मैंने देखी हैं, सब का सारभूत है। इसमें आंख किसी की है, नाक किसी की है, इसमें ओंठ किसी के हैं, इसमें रंग किसी का है, इसमें बाल किसी के हैं, ऐसी स्त्री खोजने से नहीं मिलेगी, ऐसी स्त्री सिर्फ चित्रकार देख पाता है। और इसलिए चित्रकार की स्त्री पर बहुत भरोसा मत करना, उसको खोजने मत निकल जाना, क्योंकि जो मिलेगी वह नहीं मिलेगी, साधारण स्त्री मिलेगी। इसलिए दुनिया बहुत कठिनाई में पड़ जाती है क्योंकि हम जिन स्त्रियों को खोजने जाते हैं वे कहीं हैं नहीं, वे चित्रकारों की स्त्रियां हैं, कवियों की स्त्रियां हैं, वे हजारों स्त्रियों का सारभूत हैं। वे इत्र हैं हजारों स्त्रियों का। वे कहीं मिलने वाली नहीं हैं। वे हजारों स्त्रियां मिल-जुल कर एक हो गई हैं। वह हजारों स्त्रियों के बीच में से खोजी गई धुन है।

तो जब कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा होता है, तो लाखों जन्मों में जो पाया गया है, उस सबका सारभूत उसमें समा जाता है। इसलिए उसे व्यक्तिवाची मत मानना। वह व्यक्तिवाची है भी नहीं। इसलिए अगर उसे कोई इतिहास में खोज करने जाएगा तो शायद कहीं भी न पाए। कृष्ण मनुष्य मात्र के जन्म के प्रतीक बन जाते हैं--एक विशेष मनुष्यता के, जो इस देश में पैदा हुई; इस देश की मनुष्यता ने जो अनुभव किया है वह उनमें समा जाता है। जीसस में समा जाता है किसी और देश का अनुभव, वह सब समाहित हो जाता है। हम अपने जन्म के साथ जन्मते हैं और अपनी मृत्यु के साथ मर जाते हैं। कृष्ण के प्रतीक में तो जुड़ता ही चला जाता है। अनंत काल तक जुड़ता चला जाता है। उस जोड़ में कभी कोई बाधा नहीं आती। हर युग उसमें जोड़ेगा, हर युग उसमें समृद्धि करेगा, क्योंकि और अनुभव इकट्ठे हो गए होंगे। और वह उस "कलेक्टिव आर्च टाइप' में जुड़ते चले जाएंगे।

लेकिन मेरे लिए जो मतलब दिखाई पड़ता है, वह मैंने आपसे कहा। ये घटनाएं घट भी सकती हैं, ये घटनाएं न भी घटी हों। मेरे लिए घटनाओं का कोई मूल्य नहीं है। मेरे लिए मूल्य कृष्ण को समझने का है कि इस आदमी में ये घटनाएं कैसे हमने देखीं। और अगर इनको हम ठीक से देख सकें तो ये घटनाएं हमें अपने जन्म में भी दिखाई पड़ सकती हैं। और जिस व्यक्ति को अपने जन्म में कृष्ण के जन्म का तालमेल मिल जाए, हो सकता है वह अपनी मृत्यु तक पहुंचते-पहुंचते अपनी मृत्यु में भी कृष्ण की मृत्यु के तालमेल को उपलब्ध हो सके।

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