बुधवार, 14 सितंबर 2022

श्रीराम- श्रीश्याम 2

 रामहिं केवल प्रेम विजारा जानि लेहु जो जाननि हारा ॥

 श्रीरामजीका नाम भी सरल है और स्वरूप भी सरल है। रामावतार में तो रामजी बहुत सरल थे परन्तु सरलता को लोगों ने मान नही दिया। जो बहुत सरल होता है, उसको भी लोग बहुत त्रास देते हैं । रामजी को बहुत सहन करना पड़ा था और इसी लिये तो कृष्णावतार में श्रीकृष्ण जन्म मे ही थोड़े बांके बने। प्रभु ने विचार किया, रामावतार में मैं बहुत ही सरल था परन्तु लोगो ने मान नही दिया। अतएव अब की बार मैं जन्म से ही बाँका रहूँगा ।

रामजी का नाम भी सरल है। राम नाम में एक भी जुड़वाँ अक्षर नहीं है। कृष्ण नाम में एक भी सरल अक्षर नही है, दोनो युग्माक्षर है। श्रीकृष्ण प्रकट हुए मथुरा के कारागार में, झूले गोकुल में, खेले वृन्दावन में, बड़े हुए मथुरा में और राज्य किया द्वारिका मे । इस प्रकार उनकी सभी लीला अटपटी हैं।

रामावतार मे तो ये अतिशय सरल हैं। रामजी खड़े रहते है तो भी सरलता से । बालकृष्ण खड़े रहते है, कभी-कभी वाँके होकर इसीलिए तो लाला का नाम पड़ा है। बाके बिहारी लाल !

श्रीकृष्ण सरल भी तो है कन्हैया बहुत भोले है बहुत प्रेमी है। लाला के लिये कोई थोड़ा माखन मिश्री ले जाय तो कन्हैया प्रेम से आरोगते हैं कि मेरे लिये माखन लाया है। कन्हैया बहुत सरल है परन्तु ये जगत को बताते है कि मै सरल के साथ सरल हैं परन्तु कोई बांका होकर आवे तो मैं भी उसके साथ बाँका हो जाता हूँ ।

श्रीराम तो सबके साथ सरल हैं । श्रीकृष्ण सरल के साथ सरल है, बांकेके साथ बाँके हैं । श्रीराम तो रावण के साथ भी सरल हैं। श्रीराम सज्जन - दुर्जन सबके साथ सरल हैं। जीव का अपराध रामजी देखते नही श्रीकृष्ण सज्जन के साथ सरल है, दुर्जन के साथ सरल नही हैं। सुदामाजी आँगनमे आये है, ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण सिंहासन से कूद पड़े और सामने गये, सुदामाजी को आलिंगन किया । परमात्मा श्रीकृष्ण सुदामाजी के चरण पखारते है और उनको गद्दी के ऊपर बैठाते है, स्वयं नीचे बैठे है सुदामाजी सच्चे ब्राह्मण है इसलिए श्रीकृष्ण उनके साथ अतिशय सरल है परन्तु श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्यके साथ सरल नहीं है, बाँके है। सुदामाजी ब्राह्मण है और द्रोणाचार्य भी ब्राह्मण है। द्रोणाचार्य वेद-शास्त्रो सम्पन्न ज्ञानी ब्राह्मण है।

द्रोणाचार्य साधारण ब्राह्मण नही है। चार वेद और छः शास्त्रोके ज्ञाता है । प्रभुने विचार किया कि बहुत ज्ञाता होनेसे क्या ? वे स्वरूपको भूले हुए हैं। बहुत ज्ञानवान हो कर पाप करे तो ठाकुरजी को भी गुस्सा आता है। जिसने ज्ञान पचाया है, वह कभी कपट करता नही, किसी के साथ अन्याय नहीं करता । कपट करने से ही हृदय बाँका होता है। सच्चे ज्ञानी का लक्षण यह है कि उसका हृदय बहुत सरल होता है, कोमल होता है और उसका व्यवहार शुद्ध होता है । द्रोणाचार्य जानते थे कि युद्ध करना ब्राह्मण का धर्म नही । फिर भी वह युद्ध करते हैं। इनको अच्छी तरह खबर थी कि दुर्योधन ने अन्याय किया है, फिर भी दुर्योधन को सहायता करनेके लिए वे युद्ध करते हैं।


द्रोणाचार्य ने इतना बड़ा अपराध किया। श्रीकृष्णने विचार किया कि इतना बड़ा ज्ञानवान है, ज्ञानी है। जानते हुए भी पाप करता है। मैं भी समझकर कपट करूंगा ।

महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा नाम के हाथी को मरवा कर श्रीकृष्ण ने इस बात की चर्चा फैलायी कि द्रोणपुत्र अश्वत्थामा मारा गया है। द्रोणाचार्य को ऐसा लगा कि श्रीकृष्ण तो कदाचित् बुरा भी बोल सकते है। इनसे कौन कहने वाला है ? चलो, युधिष्ठिर से पूछें, ये असत्य नहीं बोलते।

परन्तु श्रीकृष्ण ने तो धर्मराज से पहले कह रखा था कि मैं जो कहूँ वही तुम कहना । सत्य की व्याख्या समझाते हुए श्रीकृष्ण भगवान ने धर्मराजसे कहा, सबमें सद्भाव रखते हुए सबका हित हो, ऐसा बोले उसी का नाम सत्य है । द्रोणाचार्य ज्ञानी ब्राह्मण हुए भी दुर्योधन रूपी अधर्म की सहायता करते है । 'अश्वत्थामा मारा गया, सुनकर द्रोणाचार्य युद्ध छोड़ देंगे। युद्ध छोड़े, उसीमें उनका कल्याण है। इसलिए तुम मेरी बात का अनुमोदन करना। श्रीकृष्णके कहने से ही धर्मराज को 'नरो वा कुंजरो वा' कहना पड़ा। धर्मराजके कहने से द्रोणाचार्य ने शस्त्र छोड़े और उनका वध हुआ । श्रीकृष्ण कपट करके मारते हैं। श्रीकृष्ण ब्राह्मणकी पूजा भी करते है और कोई ब्राह्मण जब ज्ञान को भूलता है तो कपट करके उसे मारते भी है। श्रीकृष्ण की सभी लीलाएं दिव्य है। रामजी की सभी लीलाएँ बहुत सरल हैं। रामजी की जैसी सरलता कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी।  

 राम-रावण युद्ध में रावण जिस समय बहुत थक गया, घायल हो गया, घबरा गया, उस समय श्रीरामचन्द्रजी उसे घर जाकर आराम करने को कहते हैं। फिर आने वाले कल को युद्ध करेंगे रामजी रावणसे ऐसा कहते हैं।


श्रीराम रावणके साथ सरल हैं परन्तु श्रीकृष्ण दुर्योधनके साथ सरल नही । रामचन्द्रजी कुटिल के साथ भी सरल व्यवहार करते हैं और श्रीकृष्ण सरल के साथ सरल और कुटिल के साथ कुटिल व्यवहार रखते हैं। तुम किसी को धोखा मत देना परन्तु व्यवहार में सावधान रहना कि तुमको भी कोई धोखा न दे जाये ।


श्रीराम और श्रीकृष्ण के समान इस जगतमें हित करनेवाला और कोई नही। देवता, मनुष्य सब की यह रीति है कि सब स्वार्थके लिए ही प्रीति करते हैं । श्रीराम श्रीकृष्ण तो पूर्ण निष्काम है। बालि को मारकर किष्किन्धा का राज्य रामजी के चरणों आया। राज्य का शासन करने के लिए सुग्रीव ने रामजी से विनती की।

रामजी ने मना किया और किष्किन्धा का राज्य सुग्रीवको सौप दिया। रावण को मारने के पश्चात् लंका का राज्य रामजी ने विभीषण को सौंप दिया।

कंस को मारने के बाद मथूरा का राज्य मिला, वह श्रीकृष्ण ने लिया नहीं उग्रसेन को सौंप दिया।

श्रीराम एवं श्रीकृष्ण जैसा उदार कोई हुआ नहीं। ये पूर्ण अनासक्त है। परमात्मा जीव के प्रति अतिशय उदार हैं अतिशय दयालु है। जीव की योग्यता न होते हुए भी ये जीवके ऊपर खूब अनुग्रह करते हैं।


श्रीरामकी उदारता और दीन वत्सलता बेजोड़ है ।


ऐसो को उदार जग माहीं ।

 बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर

 राम सरिस कोउ नाहीं ॥


जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी । 

सो गति देव गीध परी कहूँ प्रभु ने बहुत जिय जानी ॥


अरे, परमात्मा तो ऐसे उदार है, ऐसे दयालु है कि वैर भाव से भी भजने वाले को मुक्ति दे देते हैं। राम ने राक्षसो को सद्गति दी है। श्रीकृष्ण ने पूतना, शिशुपाल, दन्तवक्त्र इत्यादि को सद्गति दी है। श्रीराम श्रीकृष्ण दो नहीं एक ही के दो स्वरूप है, निराकार ब्रह्म है, एक ही परमात्मा के दो भिन्न अवतार है ।


ब्रह्म जो व्यापक विरन अन अकल अनीह अमेद ।


सो कि देह परि होर नर जादि न जानरा वेद ।।






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