शनिवार, 17 सितंबर 2022

भगवत सेवा

 प्रातः काल का समय बहुत पवित्र होता है। रात्रि में जल्दी सो जाइए। सुबह चार बजे उठ जाइए। सुबह जो शय्या में लेटता है, उसके पुण्य का नाश होता है। ब्राह्म मुहूर्त में प्रायः निद्रा नहीं आती है, तंद्रा रहती है। तंद्रा का त्याग कीजिए। किसी भी मानव का मुख देखने से पहिले भक्ति कीजिए। ध्यान से पहले ठाकुरजी की मानसी सेवा कीजिए। मानसी सेवा अतिशय श्रेष्ठ है। इसमें एक पैसे का भी खर्च नहीं है। इस में शरीर को भी कष्ट नहीं है।

एक कंजूस बनिया गुसाईजी के पास गया। उसने कहा एक पैसे का भी खर्च न हो, ऐसी सेवा बतलाइये। गुसाईजी ने कहा- तुम मन से सेवा करो अपने इष्टदेव बालकृष्ण की सेवा करो। पैसे का भी खर्च न करना। सुबह चार बजे उठ जाना । भावना करना-मैं गंगाजी - यमुनाजी में स्नान करता हूँ। मन से प्रणाम करके गंगा जल में स्नान करना । फिर ठाकुरजी के लिये पवित्र गंगाजल लेकर आना। फिर ऐसी भावना करना कि शय्या में बालकृष्णलाल सोये हैं, रेशमी, सुन्दर बाल कपोल पर हैं। कन्हैया बहुत सुन्दर दीख रहा है। मैं अपने लाला को जगा रहा हूँ। हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे प्रेम से ताली दे-देकर कीर्तन करना । कीर्तन करते हुए जब हृदय आर्द्र - होगा, तब ठाकुरजी जागेंगे। फिर सुवर्ण सिंहासन में मखमल की सुन्दर गद्दी पर उनको प्रतिष्ठित करना। मन से ही सेवा करनी है। इससे कंजूस क्यों बना जाय? इसके बाद मन से लाला को गाय का दूध अर्पण करना । लाला को भैंस का दूध-माखन पसंद नहीं है। भैंस के दूध माखन बुद्धि को जड़ बनाते हैं। मन से ही भाव करना कि चाँदी के कटोरे में माखन-मिसरी लाला को अर्पण करता हूँ। बालकृष्णलाल अपने सखाओं को इसमें से देते हैं। तुम हर रोज ऐसा भाव करोगे तो कभी तुम्हें ऐसी अनुभूति होगी कि परमात्मा तुम्हें भी माखन खाने के लिये बुला रहे हैं। मानसी सेवा करने वाले के मन में नये-नये भाव जाग्रत होते हैं। फिर मन से लाला के श्रीअंग पर तेल लगाकर गर्म जल से मांगलिक स्नान करवाना। धीरे-धीरे लाला के चरणों को पखारना । लाला का श्रीअंग बहुत कोमल हैं। लाला को जरा भी कष्ट न हो, यह देखना। बाद में पीतांबर पहिनाना, सुन्दर श्रृंगार करना, तिलक करना, चरणों में तुलसी जी अर्पण करना, भोग लगाना और आरती करना। दर्शन और मिलन के लिए जब हृदय आर्त होता है, तब उसे आरती कहते हैं। परमात्मा के वियोग का जिसके मन में दुःख है, वह ही भक्ति करता है। उसका ही हृदय आर्त बनता है। तीन बार चरण ऊपर से आरती उतारिये। तीन बार जंघा के पास आरती उतारिये। तीन बार वक्ष:स्थल पर से और तीन बार मुखारविंद पर से आरती उतारिये। सांत बार समग्र श्रीअंग पर से उतारिये। साष्टांग प्रणाम कजिए। मानसी सेवा में मन की धारा खंडित न होनी चाहिए। अन्य लौकिक विचार न आने चाहिए। नहीं तो सेवा का भंग होता है। मन को भगवद्-स्वरूप में लीन रखिये। सेवा में जितना समय लेते हैं, उतने समय तक आँखें और मन भगवान् में लीन रहे ऐसी - तन्मयता से मानसी सेवा हो तो बहुत आनंद आता है।

सेवा पूर्ण होने के बाद भगवान् को वंदन करके प्रार्थना कीजिए आप मेरे हृदय में विराजिये। मेरे हाथ से सत्कर्म करवाइए। कोई भी सत्कर्म बारह वर्ष तक करने से उसका फल मिलता है। भक्ति का नियम जीवन के अंतकाल तक रखिये। मन को बहुत स्वच्छन्द न बनने दीजिए। मन को नियम में रखिये।

बनिया हर रोज सुबह चार बजे उठकर, आज्ञा के अनुसार मानसी सेवा करने लगा। बनिये ने बारह वर्षों तक मानसी सेवा की प्रत्यक्ष ठाकुरजी आरोग रहे हैं ऐसे दर्शन होने लगे। उसे बहुत आनंद आने लगा। एक बार ठाकुरजी की सेवा करते हुए, मन से दूध ले आया, गर्म किया दूध में शक्कर डाली - वह अधिक पड़ गयी। उसकी प्रकृति कंजूसी की थी। सेवा में तन्मयता तो हुई पर दूध में अधिक शक्कर पड़ गयी है ऐसा सोचकर दूध में पड़ी हुई अधिक शक्कर निकाल लूँ, तो दूसरे दिन उपयोग में आ सकेगी वह शक्कर निकालने को तत्पर हुआ वहाँ दूध नहीं है, शक्कर नहीं है, कुछ नहीं है। पर मानसी सेवा में तन्मय होने से उसे सब कुछ दीख रहा था।गोपाल को मजाक करने का मन हुआ। लाला ने सोचा इस आदमी जैसा रत्न मैंने इस संसार में नहीं देखा। मानसी सेवा कर रहा है, एक पैसे का भी खर्च नहीं कर रहा है, फिर भी अधिक शक्कर पड़ी है, तो निकालने जा रहा है। बालकृष्णलाल घुटनों के बल चलकर आ पहुँचे और उसका हाथ पकड़ लिया। अरे! अधिक शक्कर पड़ गई तो इसमें तेरे बाप का क्या जाता है? तुम तो मानसी सेवा कर रहे हो। एक पैसे का भी खर्च नहीं है। श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ। वह सच्चा  वैष्णव बन गया। महान भगवद् भक्त हो गया।

मानव शरीर साधन करने के लिये है। छह मास नियम से ब्रह्म मूहूर्त में उठकर लाला की मानसी सेवा करने पर उसका फल अवश्य मिलता है। मन के संकल्प-विकल्प कम हो जाते हैं। जिस दिन आपकी अंतरात्मा कहने लगे कि तुम्हारा मन शुद्ध हुआ है, तब आप सच्चे वैष्णव होंगे।

बालकृष्णलाल की सेवा करते हुए, आँखों से प्रेमाश्रु निकलते हैं, तब मन शुद्ध होता है। प्रात:काल परमात्मा की ध्यान- सेवा में जो तन्मय होता है, उसे भक्ति रस का आनंद मिलता है। उसके मन पर संसार के सुख-दुःख का प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रारब्ध के अनुसार सुख-दुःख आते ही हैं पर भक्त के मन पर इनका असर नहीं होता है हमारे जीवन में कोई विशेष दुःख नहीं आता है। संतों के जीवन में अनेक दुःख आते हैं। अनेक जन्म के पाप उनके एक ही जन्म में परमात्मा जला देते हैं। नरसिंह मेहता का युवक पुत्र मर गया पर वे 'राधे गोविंद' रटते रहते, मन को अशांत होने नहीं देते। एक दवा में ऐसी शक्ति है कि शरीर के अंग को सुन कर देती है, इससे शल्य क्रिया के समय पीड़ा नहीं होती है। जब एक दवा में ऐसी शक्ति है तो भक्ति रस में कितनी शक्ति होगी? उस रस में निमग्न होने पर संसार के दुःखों का असर मन पर नहीं होता । तुकारामजी के जीवन में दुःख के अनेक प्रसंग आये। कई दुष्ट दीपावली के दिन उनके पास गये और कहने लगे-आज तो गधे पर बैठाकर आपकी शोभा यात्रा निकालनी है। संत गधे पर बैठ गये। उन लोगों ने संत का बहुत अनादर किया, पर तुकारामजी की शांति का भंग नहीं हुआ। उनकी पत्नी को बहुत दुःख हुआ। वह रोने लगी। तुकाराम के चरित्र में बहुत चमत्कार हैं, पर वे तो परमात्मा ने दिखाये हैं। तुकाराम महाराज ने तो जीवन में एक ही बार चमत्कार दिखाया है। तुकारामजी ने पत्नी से कहा यह गधा नहीं है, मेरे प्रभु ने मुझे गरुड़ पर बैठाया है। सब को गधा दीख पड़ता है, पर उनकी पत्नी को गरुड़ दीख पड़ा। चाहे कैसा भी दुःखद प्रसंग क्यों न हो, भक्तों का मन शांत रहता है क्योंकि उनका मन भक्ति रस में निमग्न रहता है। सुख-दुःख मन के धर्म हैं, उनका स्पर्श आत्मा को नहीं होता है। आप तन नहीं है, आप मन भी नहीं हैं। आप तो मन के साक्षी हैं, चैतन्य आत्मा हैं। जिसे भक्ति का आनंद मिला है, उसे सुख मिलता है, तो उसे सुख तुच्छ लगता है, दुःख भी तुच्छ लगता है। मन पर सुख-दुःख का प्रभाव न हो ऐसी इच्छा है तो प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में नंदमहोत्सव कीजिए।

श्री डोंगरेजी महाराज

हरिओम सिगंल 







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