शनिवार, 17 सितंबर 2022

 हमारे सनातन धर्म में देव अनेक हैं, पर परमात्मा एक ही है। ईश्वर अनेक नहीं हैं। एक ही ईश्वर के अनेक स्वरूप हैं। वे अनेक रूप धारण करते हैं। हाथ में अगर धनुष-बाण है तो लोग कहते हैं कि ये श्रीरामजी हैं। वही परमात्मा हाथ में बाँसुरी धारण करते हैं तो लोग कहते हैं ये मुरलीमनोहर श्रीकृष्ण हैं। ठाकुरजी रोज पीताम्बर पहिन कर ऊब जाते हैं तो एक दिन वे यशोदा मैया से कहते हैं-

' माँ आज तो मैं बाघम्बर पहिन कर साधु बन कर बैठूंगा।' 

लाला को नवीन पसन्द है। कन्हैया पीताम्बर फेंक देता है और बाघम्बर धारण कर लेता है तब लोग कहने लगते हैं कि वे शंकर भगवान् हैं।


गर्म सहिता में एक कथा है। श्रीराधाजी व्रत कर रही थीं। श्रीकृष्ण के मिलन के लिए श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए राधाजी का यह व्रत था तुलसीजी में श्रीबालकृष्णलाल को विराजमान कर के श्रीराधाजी श्रीबालकृष्णलाल की सेवा करती थीं। परिक्रमा भी करती थीं। राधाजी के पिता वृषभानु ने ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि राधाजी के महल में किसी पुरुष का प्रवेश न हो सके।

कोई पुरुष राधाजी के महल में नहीं पहुँच पाता, न राधाजी से मुलाकात कर सकता था। राधाजी के महल में प्रहरी के रूप में भी सखियों को ही रखा गया था श्रीराधाजी की तीव्र उत्कण्ठा थी कि मुझे श्रीकृष्ण से मिलना है, श्रीकृष्ण के दर्शन करने हैं। इस और लाला की उत्कण्ठा भी जागी। लाला ने सोचा कि अगर मैं पीताम्बर पहिन कर जाऊँगा तो मुझे अन्दर नहीं जाने देंगे और मैं तो अन्दर जाना चाहता हूँ। प्रभु ने चन्द्रावली सखी से कहा कि आज अपने सम्पूर्ण श्रृंगार से मुझे सजा दो चन्द्रावली सखी ने लाला को सखी के रूप में सजा दिया। श्रीकृष्ण सखी का रूप धारण करके राधाजी के पास पहुँचे। वृषभानु वहाँ उपस्थित थे। उनको लगा कि राधा की कोई सखी राधा से मिलने आई है। श्रीकृष्ण भीतर गये और राधिकाजी से मिलन हुआ। भगवान् जब साड़ी पहनते हैं, तब लोग उन्हें माताजी कहते हैं। श्रीकृष्ण, श्रीराम अनेक स्वरूप धारण करते हैं पर ये स्वरूप एक ही तत्व से बने हैं, अतः वे एक ही हैं। सभी को समानता पसन्द नहीं है। सभी को एक ही में रुचि नहीं है।

प्रत्येक जीव की भिन्न-भिन्न रुचि को ध्यान में रखकर परमात्मा ने शिवजी, श्रीराम श्रीकृष्ण, श्रीमाताजी आदि अनेक स्वरूप प्रकट किये हैं, पर सरल या टेढ़ी-मेढ़ी प्रवहमान  नदियों का गम्य स्थान एक ही समुद्र है, उसी तरह सर्व जीवों का गम्य स्थान एक परमात्मा ही है प्रभु के किसी भी एक स्वरूप को मन से निश्चित कर लीजिए। समग्र देवों को वन्दन कीजिए पर ध्यान उस एक का ही कीजिए।

मंगलाचरण में प्रभु का ध्यान करने की आज्ञा दी है। संसार मंगलमय नहीं है, परमात्म मंगलमय है। काम जिसके मन में है, काम जिसकी आँखों में है, ऐसे सकाम का ध्यान करेंगे तो आपके मन में भी काम जागेगा। निष्काम' का ध्यान करेंगे तो काम नष्ट होगा। संसार सकाम है।

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