शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

भगवान

 आपको लगता होगा कि मंदिर में तो मैं रोज प्रभु के दर्शन करता ही हूँ पर मंदिर में प्रभु के दर्शन तो सामान्य दर्शन हैं। कई व्यक्तियों को मंदिर में प्रभु दीख पड़ते हैं, पर मंदिर के बाहर निकलने के बाद प्रभु नहीं दिखाई देते और प्रभु जब नहीं दिखाई देते तब आँखें पाप करती हैं। मन बुरे विचार करने लगता है। मंदिर में भगवान की भक्ति करने वाला मानव मंदिर के बाहर पाप करता है। अनेक बार मंदिर में दर्शन करते करते भी मन बिगड़ता है। मंदिर में बहुत भीड़ हो जाने पर किसी का धक्का लग जाय तो मन अशांत हो जाता है। कइयों को तो ठाकुरजी के समक्ष ही क्रोध आ जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मंदिर में प्रभु के दर्शन उत्तम दर्शन नहीं हैं। साधारण दर्शन हैं। साधारण दर्शन से शांति भी साधारण ही मिलती है।


थोड़ा सोचिये मंदिर में आपको क्या दिखलायी देता है?- भगवान या मूर्ति ? आप मानेंगे कि प्राय: मूर्ति दिखाई देती है। आँख को भले ही मूर्ति दिखायी दें, वैष्णव ऐसी भावना रखते हैं कि यह मूर्ति नहीं है, ये प्रत्यक्ष परमात्मा हैं। जिसका मन शुद्ध है, उसे भावना से मंदिर में भगवान् दिखाई देते हैं। ये प्रत्यक्ष साक्षात् परमात्मा हैं। बैकुण्ठ के नारायण ये ही हैं। जो मंदिर में सिंहासन पर विराजमान हैं, वे साक्षात् प्रभु ही तो हैं।

हृदय में भाव न हो तो मंदिर में पत्थर की मूर्ति दिखाई देती है। वैष्णव मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं करते, परमात्मा के दर्शन करते हैं। आप बहुत प्रेम-भाव से प्रभु के दर्शन कीजिये । प्रभु के उपकार को अनुभूत करके थोड़ी स्तुति कीजिये। संकल्प कीजिए कि आज से मैंने पाप छोड़ दिये। आज से मैं भगवान् की कथा सुनने वाला हूँ। आज से मैं सत्कर्म करूँगा। अब मैं भगवान् का हो गया हूँ। मैं ऐसा ही बोलूँगा, जो मेरे भगवान् को पसंद होगा। मैं ऐसा ही कार्य करूँगा जो मेरे प्रभु को प्रिय होगा।

जब मानव पाप छोड़कर भक्ति का संकल्प करता है, तब भगवान् मन में धीरे धीरे हँसते हैं। प्रभु को आनंद होता है कि आज मेरा पुत्र समझदार हो गया है। पत्थर की जड़ मूर्ति कभी नहीं हँसती है। आप से कभी पाप हो जाय तो पाप के बाद दर्शन करने पर आपको ऐसा अनुभव होगा कि आज भगवान् नाराज हो गये हैं। आज प्रसन्न नहीं हैं, आज मुझे देख कर हँसते भी नहीं हैं। भगवान् दृष्टि नहीं डाल रहे हैं बल्कि उपालम्भ दे रहे हैं। मानो कह रहे हैं कि मेरा नाम धारण किया पर अभी तक पाप नहीं छोड़ रहे हो! पुत्र बुरा हो जाता है तो पिता को क्षोभ होता ही है।

जीव ईश्वर का पुत्र है। जीव पाप करके भगवान् के दर्शन करने जाता है तब उसे देखकर भगवान् को बहुत संकोच होता है। भगवान् उलाहना देते हैं। मानो कह रहे हों कि आज तुम्हारी ओर देखने का मन नहीं हो रहा है।

मेरा पुत्र होकर ऐसा पाप कर रहा है? पत्थर की मूर्ति उलाहना नहीं देती है। पत्थर की मूर्ति हँसती भी नहीं है। जिसका हृदय शुद्ध है, जिसकी आँख पवित्र है, जिसके हृदय में भावना है, उसे मंदिर में भगवान् दीखते हैं आँख से भले ही पत्थर की मूर्ति दिखाई दे, वैष्णव भावना से भगवान के ही दर्शन करते हैं। सौ रुपये के नोट में एक भी पैसा नहीं दीख पड़ता। आँख को तो कागज ही दिखाई देता है, किन्तु आँख को भले ही कागज दीख पड़े, पर बुद्धि कहती है, यह कागज नहीं है, रुपये हैं। वैष्णव मूर्ति के दर्शन नहीं कर रहे हैं, भावना से प्रत्यक्ष परमात्मा के, नारायण के दर्शन करते हैं। बाजार में हो तब तक वह भले ही पत्थर की मूर्ति रहेगी पर मंदिर में विराजने पर वह साक्षात् भगवान् का स्वरूप ही है। लोहे की छैनी, अग्नि में गर्म हो जाने पर अग्निरूप ही हो जाती है। वेद-विधि से प्राण-प्रतिष्ठा हो जाने पर वह मूर्ति नहीं कही जाती वह तो साक्षात् परमात्मा का स्वरूप ही है। भावना से भगवान् मंदिर में विराजमान दिखाई दे रहे हैं, भावना के बिना से ही पत्थर की मूर्ति दिखाई देते हैं।

आप जिस तरह मंदिर में भावना से भगवान् के दर्शन करते हैं, उसी तरह प्रत्येक मानव शरीर में भी भगवान् के दर्शन कीजिए। आपको कोई स्त्री दीख पड़े, कोई पुरुष दीख पड़े तो ऐसी भावना कीजिए कि मैं जिन इष्टदेव की पूजा करता हूँ, वे इस शरीर में विराजमान हैं। शरीर में उसी को देव के दर्शन होते हैं, जिसमें देह-दृष्टि नहीं है। मानव के शरीर में देव के दर्शन करने हो तो देह को न देखिये जो देह को देखता है, उसे देव नहीं दीख पड़ते हैं। वह देव से दूर हो जाता है। मल-मूत्र से पूर्ण यह देह देखने योग्य नहीं है। अगर यह शरीर सचमुच ही अच्छा है तो शरीर से प्राण निकल जाने के बाद उसे घर में सँभाल के क्यों नहीं रख लेते? अगर वह अच्छी वस्तु है तो लोग क्यों जल्दी करते हैं? क्यों कहते हैं कि जल्दी निकालिये, नहीं तो वजन बढ़ जायगा ? शरीर के भीतर भगवान् विराजमान हैं। इसी से शरीर की शोभा है। देह की शोभा देव के कारण है। उसे ही देव के दर्शन होते हैं, जो देह से दृष्टि हटा लेता है तथा जो देह का चिंतन नहीं करता है।

आप आज से नियम लीजिए कि मैं किसी के शरीर को नहीं देखूंगा। एक सौ रुपये के नोट में जैसे आप भावना से रुपयों के दर्शन करते हैं, उसी तरह, प्रत्येक मानव शरीर में भावना से परमात्मा के दर्शन कीजिए। आप जिस देव की पूजा करते हैं, वे देव सर्व में हैं। ये सर्वशक्तिमान् हैं। 

श्री डोंगरेजी महाराज



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