बुधवार, 14 सितंबर 2022

श्रीराम- श्रीश्याम 1

 

राम-नाम का सतत जप करो और रामजी की सेवा करो ! रामजी की सेवा अर्थात् रामजी की मर्यादा का पालन ।रामजी की मर्यादा का पालन करोगे तो तुम्हारे मन का रावण अर्थात् काम मरेगा तुम्हारे मन का काम मरेगा तो श्रीकृष्ण परमात्मा आयेंगे। श्रीराम के  पीछे ही श्रीकृष्ण आते हैं। भागवत में भी श्रीरामचरित के कहने के उपरान्त ही श्रीकृष्ण चरित का वर्णन किया है। रामचन्द्रजी का वर्णन रामायण में विस्तार से किया हुआ होनेपर भी श्रीमद्भागवत में भी उसका संक्षेप में वर्णन किया गया है। कारण यह है कि जो श्रीरामचन्द्रजी की मर्यादा का पालन करता है, उसको ही कन्हैया मिलता है । रावण को अर्थात् कामवासना को मारे, वही श्रीकृष्ण लीला का दर्शन कर सकता है ।

वासना दो प्रकार की है, स्थूल और सूक्ष्म । इन्द्रियो मे रहने वाली वासना स्थूल है और मन-बुद्धि में रहने वाली वासना सूक्ष्म है । सन्तो का धर्म जीवन में उतारने से स्थूल वासना का तो नाश हो जाता है परन्तु मन-बुद्धि में रहने वाली सूक्ष्म वासना नष्ट नहीं हो पाती सूक्ष्म वासना का नाश तो श्रीराम श्रीकृष्ण करते हैं।


श्रीरामचन्द्रजी सूर्यवंश में प्रकट हुए है और श्रीकृष्ण, चन्द्रवंश में प्रकट हुए है। चन्द्र मन के मालिक है और सूर्य बुद्धि के । मन-बुद्धि में रहनेवाली सूक्ष्म वासना का तभी विनाश हो पाता है, जब श्रीराम-कृष्ण की आराधना करने में आवे । वासना का पूर्ण क्षय हुए बिना मोह का नाश होता नही और मोह का नाश हुए बिना मुक्ति मिलती नहीं । मन में से सूक्ष्म मल का नाश हो, तभी मन मरता है । मन मरे, मन श्रीराम कृष्ण में मिल जाय तो मुक्ति मिलती है । आत्मा तो नित्य मुक्त है । मुक्त तो मन को करना है । बन्धन मन को बाँधते है। मन के बन्धन का आरोप अज्ञान से आत्मा अपने ऊपर ले लेता है । यह अज्ञान से ऐसा समझता है कि मुझे किसीने बांधा है।

मन ने विषय-वासनाओं को पकड़ रखा है, उससे वह बन्धन मे पड़ जाता है ।  मानव को किसने बांधा है ? वासनाओ के अधीन होकर स्वयं ने स्वयं को बाँध रखा है।

ईश्वर के साथ एक होना है परन्तु मन-बुद्धि मे रहने वाली सूक्ष्म वासना प्रभु मिलन में विघ्न करती है । मानव का लक्ष्य परमात्मा से मिलना है, ईश्वरके साथ एक रूप होना है । उसके लिए बुद्धि में से भी वासनाओं का विनाश करना है। बुद्धि में वासना का थोड़ा भी अंश रह जाय तो बुद्धि निर्व्यसन होती नही, शुद्ध होती नही, स्थिर होती नही बुद्धि को निर्व्यसन करने के लिये शुद्ध करने के लिए स्थिर करने के लिए मन के मालिक चन्द्र की और बुद्धि के मालिक सूर्य की आराधना करनी आवश्यक है।

राम न आये तब तक श्रीकृष्ण आते नहीं। भागवत में मुख्य कथा श्रीकृष्ण की होने पर भी पहले श्रीराम का प्रकटन है और पीछे श्रीकृष्ण पधारे है । मनुष्य रामजी की मर्यादा का पालन करे तो ही श्रीकृष्ण लीला का रहस्य समझ सकता है। मनुष्य को थोड़ी सम्पत्ति मिले, थोड़ा अधिकार मिले, उसी से वह मर्यादा को भूल जाता है । रामजी की मर्यादा का पालन ही रामजी की उत्तम सेवा है। रामजी को पधाराना हो तो रामजी की मर्यादा का पालन करो। रामजी न पधारें तब तक श्रीकृष्ण आते नही । जो वेद की, शास्त्रों की मर्यादा का बराबर पालन करते हैं, उन्हीं का मन शुद्ध होता है । उन्ही को पीछे प्रेम भक्ति का रङ्ग लगता है । इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम की लीला पहले वर्णन की गयी है । पुष्टि- पुरुषोत्तम पीछे आये है । उदाहरण के तौर पर मास्टरजी सरल अक्षर पहले पढाते हैं और जटिल अक्षर पीछे पढ़ाते हैं।


श्रीराम मर्यादा रूप हैं और श्रीकृष्ण प्रेम-रूप है। मर्यादा और प्रेम जीवन में उत्तारोगे तो सुखी रहोगे श्रीराम और श्रीकृष्ण एक ही है। दोनों साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम के अवतार हैं श्रीमद्भागवत में भगवान के चौबीस अवतारों की कथा आती है महापुरुष कहते हैं कि अल्पकाल के लिए थोड़े जीवों का उद्धार करने के लिए जो अवतार होता है, वह अंशावतार है और अनन्तकाल के लिए अनन्त जीवों का कल्याण करने के लिए जो अवतार होता है, वह पूर्णावतार है । भगवान के जितने अवतार हुए हैं वे सभी श्रेष्ठ हैं, कोई अवतार साधारण नहीं परन्तु श्रीराम और श्रीकृष्ण के समान कोई हुआ नहीं। इनकी लीला अलौकिक है।


भक्ति में दुराग्रह न रखो श्रीराम में दो कला कम है, ऐसा मत मानो। दोनों अवतार परिपूर्ण है। रामावतार में रामजी ने सब कुछ किया राक्षसों को मारा, अनेक यज्ञ किये, प्रजा को अतिशय सुखी किया, अनेक जीवों को तारा। परन्तु रामजी राजाधिराज थे, इसलिए गायों की सेवा कर सके नहीं। रामजी के यहाँ अनेक सेवक थे, इसलिए गायों की पूजा, गायों की सेवा उन्होंने रामजी को करने दी नहीं। इसी कारण से रामजी श्रीकृष्ण स्वरूप में गायों की सेवा करने के लिए व्रज में पधारे है। श्रीराम ही श्रीकृष्ण है। श्रीकृष्ण ही श्रीराम है।

श्रीराम श्रीकृष्ण एक ही है। दोनों की लीला पृथक है। एक दशरथ महाराज के राजमहल में अवतरित हुए है, दूसरे कंस के कारागार मे । एक दिन के बारह बजे प्रगट हुए हैं, दूसरे रात्रि के बारह बजे ।


मनुष्य दिन में दो बार सुध-बुध खोता है। दिन के बारह बजे भूख से और रात्रि को निवृत्ति में काम सुख की याद से ।ये दोनों समय पवित्र करने है। दिन मे रामजी को बाद करो और रात्रि में श्रीकृष्ण को, तो ये दोनो समय पवित्र हो जायेगे मर्यादापुरुषोत्तम रामजी की मर्यादा का पालन करो तो  पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण पुष्टिपूर्वक कृपा करेंगे ।

श्रीकृष्ण में समस्त सद्गुण होने पर भी श्रीकृष्ण का चरित्र ऐसा दिव्य है कि जल्दी  से बुद्धि स्वीकार नही करती। श्रीकृष्ण का जीवन रहस्य समझना कठिन है। श्रीराम की लीला का रहस्य समझना बहुत कठिन नहीं । श्रीरामजी की मर्यादा का पालन करना - यह बहुत कठिन है। तुम किसी भी देवता की सेवा करो, किसी भी सम्प्रदाय की शिक्षा ग्रहण करो परन्तु तुम को रामजी की सेवा तो करनी ही पड़ेगी। श्रीरामजी के दर्शन बिना श्रीरामजी की सेवा बिना, जीवन शुद्ध होगा ही नही। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करे उसे भी श्रीरामजी की सेवा करनी ही पड़ेगी। कोई वैष्णव ऐसा मानता हो कि मैं रामजी की सेवा नहीं करूँ, रामजी को नहीं मानें, तो उसकी सेवा श्रीकृष्ण को सहन होती नहीं। कोई शिवजी की सेवा करता हो और रामजी को न माने तो उसकी सेवा शिवजी को सहन नही होती।


जगत में जिसने देवता हैं, सबकी लीला अनुकरणीय नहीं रामजी की प्रत्येक लीला अनुकरणीय है।शिवजीकी सभी लीला अनुकरणीय नहीं।

श्रीशिवजी महाराज तो सारे अंग पर चिता भस्म धारण करते हैं। चिता-भस्म शिव स्पर्श से पवित्र होती है। तुम उज्जैन गये होगे, उज्जैन में महाकालेश्वर विराजते है। वहाँ श्मशान में से शिवजी महाराज के लिए भस्म आती है। वहाँ जो पूजा होती है, उसमें ऐसा नियम है कि शिवजी को अभिषेक कराने के पश्चात् सबसे पहले चिता भस्म अपंग करते हैं परन्तु हमसे ऐसा नहीं होगा। हम चिता भस्म लगायें तो नहाना पड़ेगा। शंकर भगवान तो जहर भी पी गये। हमसे ऐसा हो सकेगा क्या ?

भगवान शंकर के पास एक बार कामदेव गया था। शिवजी ने आँख उठाकर देखा । कामदेव जलकर भस्म हो गया। शिवजी का कामदेव स्पर्श कर सकता नहीं । जो अमंगलरूप काम को मारता है उसका सब कुछ मंगलमय है । शास्त्र मे काम को अमंगल कहा गया है।

शिवजी की लीला दिव्य है। अपने जैसे साधारण मनुष्यो से उनका अनुकरण हो नहीं सकेगा। इसी प्रकार श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला अनुकरणीय नहीं है। श्रीकृष्ण जो करें सो अपने से होगा नही ।

श्रीकृष्ण माखन की चोरी करते हैं और हम करे तो ? करो तो उसके पीछे खबर पढे कि क्या होता है। श्रीकृष्ण की सभी लीला अटपटी है। श्रीकृष्ण माखन की चोरी नहीं करते हैं यह तो गोपियो का प्रेम ऐसा है कि वह परमात्मा का आकर्षण करता है ।गोपियो के घर माखन खाने की परमात्मा की इच्छा होती है । श्रीकृष्ण जगत का आकर्षण करते है और श्रीकृष्ण का आकर्षण गोपी-प्रेम करता है । श्रीकृष्ण ने चोरी की, ऐसा सन्तों ने कहा नही, श्रीकृष्ण तो मालिक ही हैं। ये तो गोपियाँ, लाला को लाड़ में ऐसा कहती थी कि कन्हैया माखन चोर है । प्रेम मे कोई गाली भी दे तो तनिक भी बुरा लगता नही । गोपी तो प्रेम की मूर्ति हैं गोपी भले ही लाला को माखन चोर कहकर बुलायें परन्तु तुम किसी भी दिन माखन चोर कहना नही । तुम लाला को माखन चोर कहोगे तो लाला को सहन होगा नहीं। कन्हैया कहेगा, मैं चोर नही, तू चोर, तेरा बाप चोर और तेरा दादा भी चोर घर मे किस प्रकार एकत्रित करके बङ्गला बनाया है उस सबको मैं जानता हूँ । मुझको सब खबर है कैसा है, यह तो मैं जानता हूँ चोर तो तू है मैं तो मालिक हूँ।

अरे ! ताला तोड़कर ले जाय, क्या उसी को चोर कहते है ? आजकल तो कितने ही चोरी की ऐसी चतुराई करते हैं कि किसी को खबर ही नही पडती । यहाँ भले ही खबर न पड़े परन्तु ऊपर तो ठाकुरजी को सब खबर पड़ ही जाती है।

जगत में जो कुछ भी है, उसके मालिक श्रीकृष्ण ही है। श्रीकृष्ण जो करे, वह तुमको करणीय नही । गोपी तो तन, मन, धन सर्वस्व श्रीकृष्ण को अर्पण कर देती है। उन गोपियो के घर जाकर कन्हैया माखन खायगे तो यह उनकी प्रेम-लीला है। उसके अनुकरण करने की मनाही है।

श्रीकृष्ण कालिय नाग के ऊपर नाचते थे । अपने को तो नाग का नाम लेते ही घबराहट होती है। 

जहर पचाने के पीछे ही श्रीकृष्ण का अथवा शिवजी महाराज का अनुकरण हो सकता है? अपने में यह शक्ति नहीं। हम जहर पीकर पचा सकते नहीं ।

श्रीकृष्ण की रासलीला का श्रवण करो। सुनकर पीछे उसका मनन करो परन्तु उनका अनुकरण न करो। रासलीला का अनुकरण नहीं करना है । रासलीला का श्रवण करो, आँख बन्द करके रासलीला का चिन्तन करो। रासलीला का चिन्तन करने से काम विकार का नाश होता है । शुद्ध जीव का ब्रह्म के साथ रमण, यही तो रास है । रासलीला अर्थात् जीव और ईश्वर का मिलन रासलीला, यह कामलीला नहीं रासलीला में जिसे काम की गन्ध आती है, उसकी बुद्धि बिगड़ी हुई है श्रीकृष्ण के सामने काम टिक ही नहीं सकता ।

एक समय कामदेव को अभिमान हुआ कि मैं बड़े से बड़ा देव हूँ। बड़े-बड़े ऋषि मेरे अधीन हो जाते हैं। बड़े-बड़े देवता भी मेरे अधीन रहते हैं उस अभिमान काम देव श्रीकृष्ण के पास गया और उनसे कहा- 

'मेरी और आपकी कुश्ती हो', 

संस्कृत में काम का नाम है मार । समय आनेपर सभी को मारता है । कामदेव की श्रीकृष्णके ऊपर शक्ति आजमाने की इच्छा हुई।

श्रीकृष्णने कामदेव से कहा 

'शिवजीने तुमको जला दिया था, वह भूल गया।'

कामदेवने कहा-

 'शिवजी ने मुझे जलाया, यह बात सच है परन्तु उसमें मेरी थोड़ी भूल थी। शिवजी समाधि में बैठे थे । तेजोमय ब्रह्म का चिन्तन कर रहे थे । पूर्ण सावधान थे, उसी समय में मैं उनको मारने गया । मैंने समय का विचार किया नहीं। इससे मेरी हार हो गयी और शिवजी ने मुझे जलाकर भस्म कर दिया। समाधि में बैठे-बैठे जलावे, इसमें विशेष आश्चर्य नहीं ।'

प्रभुने कहा- 

'रामावतार में भी तेरी हार हुई।'

कामदेवने कहा-

' रामावतार मे तो आप खुब मर्यादा में रहते थे। किसी भी स्त्री का स्पर्श करते नहीं थे। स्त्री के सामने देखते भी नहीं थे देखते तो मातृभाव से देखते थे। रामावतार मे खूब मर्यादा पाल कर मेरा पराभव किया था। मर्यादा में रहकर साधारण जीव भी मेरा पराभव कर सकता है। गृहस्थाश्रम रूपी किले में रहकर आपने मुझे मारा है। रामावतार मे तो आप एक पत्नीव्रत पालते थे। इसलिए आपने मुझे मारा। इसमें क्या आश्चर्य ?'

श्रीकृष्णने कहा 

'तो अब तेरी क्या इच्छा है ?'

कामदेवने कहा--- 

'रामावतार में मर्यादा में रहकर आपने मुझे हराया, इसमें कोई खास बात नही । अब इस कृष्णावतार में आप कोई मर्यादा न रखो। मर्यादा तो साधारण मनुष्य के लिए है, परमात्मा के लिए होती नही ।आपको मर्यादा पालने की क्या जरूरत है ? सब प्रकार की मर्यादा छोड़कर शरद् पूर्णिमा की रात्रि मे अनेक स्त्रियों के साथ वृन्दावन में आप विहार करो और मैं आपको बाण मारूं तब भी आप निर्विकारी रहो तो आपकी जीत और कामाधीन बनो तो मेरी जीत ।आप निर्विकारी रहो तो आप ईश्वर और मेरे अधीन बनो मै  ईश्वर ।

रामावतार में शरीर से तो नही परन्तु मन से भी किसी स्त्री का स्पर्श किया नहीं । मन से स्पर्श हो, यह भी पाप है। कृष्णावतार में श्रीकृष्ण पुष्टि पुरुषोत्तम हैं। काम ने ऐसा माना कि

 'श्रीकृष्णको हराना सरल है।' 

श्रीकृष्ण तो गोपियों के साथ स्त्रियो के साथ मुक्त रूप से विहार करते हैं, इसलिए में उन्हें हरा सकूंगा ।

श्रीकृष्णने कहा है 

'तेरी इच्छा है तो मैं ऐसा ही करूंगा।'

स्त्रियों से दूर जङ्गल में बैठकर पत्ता चबा कर संयम पाले, काम को मारे इसमें आश्चर्य नहीं। प्रत्येक स्त्री में मातृभाव रखे और काम को मारे, इसमे भी कोई आश्चर्य नही परन्तु श्रीकृष्ण ने तो स्त्रियों के बीच रहकर काम को मारा। शरद् पूर्णिमा की रात्रि में गोपियो के साथ रासलीला मे रमण किया और काम के ऊपर विजय प्राप्त की । श्रीकृष्ण का स्मरण करने वाले को भी काम त्रास दे नहीं सकता तो श्रीकृष्ण  को तो वह दे सकता है ? काम का पराभव हुआ। काम ने धनुष-बाण फेंक दिया। रासलीला, यह काम के ऊपर विजय करने की लीला है । श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं ।

श्रीकृष्ण की लीला अनुकरण करने के लिए नही परन्तु उसका श्रवण करके, चितन करके, उनमें तन्मय होने के लिए है । रामजी की प्रत्येक लीला अनुकरणीय है । रामजी की अमुक लीला अनुकरणीय और अमुक लीला चिन्तनीय है, ऐसा नही। रामजी का समस्त आचरण अनुकरणीय है । रामजी की प्रत्येक लीला अनुकरण करने योग्य है । आचरण हमेशा रामजी की तरह रखो श्रीकृष्ण परमात्मा है। श्रीकृष्ण कहे, वही करने योग्य है। । वे करे, वह करना नही है । श्रीराम परमात्मा है। श्रीराम करे वह करना है। रामजी पूर्ण पुरुषोत्तम होने पर भी मनुष्य को आदर्श बतलाते हैं। रामजी के सद्गुण जीवन में उतारने हैं। रामजी सब सद्गुणोके भण्डार है।


रामजी प्रत्येक स्त्री में मातृभाव रखते थे। किसी स्त्री को काम भाव से देखते नही थे। रामजी का मातृ प्रेम, पितृ प्रेम, बन्धु-प्रेम, रामजी का एकपत्नी व्रत, एकवचनी व्रत, रामजीका संयम, रामजीका सदाचार, रामजी की उदारता, रामजी की निष्कामता आदि मानव-जीवन में उतारने योग्य है। रामजी ने ऐश्वर्य छिपाया है। मनुष्यों जैसा नाटक किया है साधक का व्यवहार कैसा होना चाहिए, वह रामजी ने बताया है । साधक का व्यवहार रामजी जैसा होना चाहिए। सिद्ध पुरुष का आचरण कदाचित् श्रीकृष्ण का जैसा हो सके ।

रामजी की लीला सरल हैं। श्रीकृष्ण की सभी लीला गहन है। अटपटी हैं। रामजी की बाल- लीला भी अति सरल है। इनकी बाल लीला में भी अतिशय मर्यादा है। कन्हैया ने विचार किया कि रामावतार में मर्यादा का बहुत पालन किया, इसलिए दुःखी हुआ। अब की बार कृष्णावतार में मर्यादा का पालन नहीं करूँगा कन्हैया तो यशोदा माँ को भी चलाते है । बालकृष्ण माता से कहते हैं कि माँ तुम मुझे छोड़कर कहीं जाना नहीं तू घर का काम-काज छोड़कर मुझे खिलाया कर । पूरे दिन मुझे गोदी में लेकर खिलाया कर । कदाचित् कभी यशोदा माँ कन्हैया को छोड़कर घर का काम करने चली जायें तो क्या  तुफान मचा डालते है। दही -माखन की हांड़ी - मटके फोड़ देते हैं और माँ सजा देने आये तो लाला हाथ मे आवे ही नहीं।

श्रीराम तो अति सरल है, अति शान्त है। रामजी की बाल लीला में अतिशय मर्यादा है। छोटे भाइयो के साथ खेलते है तो इस रीति से खेलते है कि स्वयं की हार हो जाती है और लक्ष्मण की जीत हो जाती है ये तो बहुत सरल है सोचते है कि  भले ही मेरी हार हो जाय । बालकृष्ण जब खेलते है तो लाला की किसी दिन भी हार होती नही । कन्हैया जहाँ जाते है, वहाँ उनकी जीत ही होती है । रामजी माता-पिता की आज्ञा के बिना किसीके भी घर जाते नही । कन्हैया कभी यशोदा माँ की आज्ञा लेने जाते नहीं।


अयोध्या के लोग आये और रामलला को मनावे कि मेरी बहुत भावना है, तुम मेरे घर पधारो । तब रामचन्द्रजी कहते हैं- मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ। मैं तो माता-पिता के अधीन हूँ। मैं माँ की आज्ञा मे रहता हूँ । तुम मेरी माँ से कहो। माँ मुझे आज्ञा देगी तो मैं तुम्हारे घर आऊँगा।


लोग कौशल्य जी को मनाते हैं, प्रार्थना करते हैं कि माँ मेरी बहुत इच्छा है कि रामजी मेरे घर पधारे तुम रामजी को मेरे घर भेज दो माँ !

कौशल्याजी आज्ञा देती हैं तो रामजी जाते हैं परन्तु ये तो मर्यादापुरुषोत्तम है और राजाधिराज है ये किसी के घर जाते हैं तो यहाँ शान्ति से गद्दे तकिये के सहारे बैठे ही रहते है । श्रीराम अति शांत है । कन्हैया की सभी लीला निराली हैं, बहुत गहन है । कन्हैया कभी किसी से ऐसा कहते नही कि तुम मेरी माँ से कहो ये आज्ञा देगी तो मैं तुम्हारे घर आऊंगा । कन्हैया को तो किसी के आमन्त्रण की जरूरत ही क्या थी ? कन्हैया तो कहते है, मुझे कौन निमन्त्रण देगा ? मैं तो घर का धनी हूँ। इसलिए वह तो सबके बगैर बुलाये ही गोपियों के घर जाते है परन्तु लाला का ऐसा नियम था कि जिस घर का मालिक है, जिसने अपना सर्वस्व मन से लाला को अर्पण कर दिया है, उसी के ही घर लाला जाता है यह किसी अन्य के घर नही जाता, चाहे जिसके घर जाकर यह माखन नही खाता। खाता तो वहा है जहाँ प्रेम है, वही जाता है। श्रीकृष्णकी लीला मे अतिशय प्रेम है। एक गोपी के घर लाला माखन खा रहे थे। उस समय गोपी ने लाला को पकड़ लिया । तब कन्हैया बोले- तेरे धनी की सौगन्ध खाकर कहता हूँ, अब फिर कभी भी तेरे घर मे नही आऊँगा गोपी ने कहा- मेरे धनी की सौगन्ध क्यों खाता है ?

कन्हैया ने कहा -

तेरे बाप की सौगन्ध, बस ?


गोपी और ज्यादा चिड जाती है और लाला को धमकाती है परन्तु तु मेरे घर आया ही क्यों ?

 कन्हैया ने कहा - 

अरी सखी! तू रोज कथा मे जाती है, फिर भी तू मेरा-तेरा छोड़ती नही इस घर का मै धनी हूं, यह घर मेरा है। गोपी को आनन्द हुआ कि मेरे घर को कन्हैया अपना घर मानता है। कन्हैया तो सबका मालिक है । सभी घर उसी के हैं। उसको किसी की आज्ञा लेने की जरूरत नही गोपी कहती है- तूने माखन क्यों खाया ?

लाला ने कहा -माखन किसने खाया है ? इस माखन मे चीटी चढ़ गई थी, उसे निकालने को हाथ डाला। इतने में ही तू टपक पड़ी। गोपी कहती है परन्तु, लाला ! तेरे ओठ के ऊपर भी तो माखन चिपक रहा है। कन्हैया ने कहा- चीटी निकालता था, तभी होट के ऊपर मक्खी बैठ गयी, उस उड़ाने लगा तो माखन ओठ पर लग गया होगा । कन्हैया जैसा बोलते है, ऐसा बोलना किसी को आता नही कन्हैया जैसे सा चलना भी किसीको आता नही। गोपी ने तो पीछे लाला को घर में थम्ब के साथ डोरीसे बांध दिया। कान्हा का श्रीअङ्ग बहुत ही कोमल है। गोपी ने जब डोरी कसकर बांधी तो कान्हा की आंख में पानी आ गया। गोपी को दया आयी, उसने लाला से पूछा लाला ! तुझे कोई तकलीफ है क्या ? लाला ने गर्दन हिलाकर कहा-

'मुझे बहुत दुख  रहा है, डोरी जरा ढीली कर।'

गोपी ने विचार किया कि लाला को डोरी से कसकर बांधना ठीक नहीं मेरे लाला को दुःख होगा। इसलिए गोपी ने डोरी थोड़ी ढीली रखी और पीछे सखियो को खबर देने गयी कि मैंने लाला को बाँधा है। तुम लाला को बाँधो परन्तु किसी से कहना नहीं। तुम खूब भक्ति करो परन्तु उसे प्रकाशित मत करो। भक्ति प्रकाशित हो जायेगी तो भगवान सटक जायेगे। भक्ति का प्रकाश होने से भक्ति बढ़ती नही, भक्तिमें आनन्द आता नहीं ।..


बालकृष्ण सूक्ष्म शरीर कर के डोरी में से बाहर निकल गये और गोपी को अंगुठा दिखाकर कहा, तुझे बाँधना ही कहाँ आता है ?


गोपी कहती है तो मुझे बता, किस तरह से बांधना चाहिये । गोपी को तो लाला के साथ खेल करना है, लाला गोपी को बांधते हैं।


योगीजन मन से श्रीकृष्णका स्पर्श करते है तो समाधि लग जाती है। यहां तो गोपी को प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ है। गोपी लाला के दर्शन में तल्लीन हो जाती है। गोपी का ब्रह्म-सम्बन्ध हो जाता है। लाला ने गोपी को बाँध दिया ।

गोपी कहती है कि लाला छोड़! छोड़! लाला कहते है मुझे बांधना आता है, छोड़ना तो आता ही नहीं । यह जीव एक ऐसा है, जिस को छोड़ना आता है। चाहे जितना प्रगाढ़ सम्बन्ध हो परन्तु स्वार्थ सिद्ध होने पर उसको भी छोड़ सकता है। परमात्मा एकबार बांध लें तो छोड़ते नहीं ।




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