रविवार, 18 सितंबर 2022

गोपियों का कृष्ण प्रेम

 गर्गाचार्यजी ने कहा- यह बालक भगवान् नारायण जैसा होगा। श्रीधर स्वामी का अर्थ सरल है- नारायणेन सम श्रीकृष्णः श्रीकृष्ण नारायण के समान होंगे। वृन्दावन के साधुओं को श्रीधर स्वामी का अर्थ बहुत अच्छा लगा। इससे संत अर्थ को परिवर्तित करते हैं। नारायण के समान श्रीकृष्ण हैं, ऐसा नहीं हैं, पर नारायण श्रीकृष्ण के समान हैं। नारायणः समः येन श्रीकृष्णेन इति नारायणसम:- नारायण श्रीकृष्ण के समान हैं। पर जो संत ऐसा अर्थ करते हैं कि नारायण के समान श्रीकृष्ण हैं, उस अर्थ में नारायण प्रमुख होते हैं और श्रीकृष्ण भोग होते हैं। वृन्दावन के साधुओं की श्रीकृष्ण में आसक्ति है। तत्त्व से नारायण और श्रीकृष्ण एक ही हैं। नारायण और श्रीकृष्ण में जरा भी भेद नहीं है। एक होने पर भी भिन्न हैं। नारायण, चतुर्भुज है और श्रीकृष्ण द्विभुज मुरलीमनोहर हैं। यह तो प्रेम की कथा है। प्रेम में पक्षपात का गुण प्रमुख है। वृन्दावन के साधु नारायण और श्रीकृष्ण को एक ही मानते हैं। किन्तु एक होने पर भी वे भिन्न हैं। हमारा कन्हैया दो हाथों वाला है। वह हमारा मुरली मनोहर है। नारायण को मैं मानता हूँ, नारायण को मैं वंदन करता हूँ पर नारायण से भी अधिक अपना कन्हैया मुझे प्रिय है। नारायण श्रीकृष्ण समान हैं। मेरा कन्हैया तो नारायण से भी श्रेष्ठ है। गोपियों में अनेक बार चर्चा होती है-अरी सखी! मैं नारायण को वंदन करती हूँ पर मुझे ऐसा लगता है कि मेरा बालकृष्ण, नारायण से भी श्रेष्ठ है। मैं तुम्हें क्या कहूँ? नारायण शंख बजाते हैं, पर मेरा कन्हैया मधुरं बांसुरी बजाता है। शंख बजाने वाले देव बड़े हैं कि बाँसुरी बजाने वाले देव बड़े? इस जगत् में जितने भी देव हैं, वे सभी हाथ में शस्त्र लेकर बैठे हैं। कोई धनुष-बाण हाथ में रखते हैं तो कोई त्रिशूल हाथ में रखते हैं। कोई सुदर्शन चक्र हाथ में लेकर बैठे हैं। ये सभी देव एक-एक को शस्त्र से घायल करते हैं। अरी सखी! मेरा कन्हैया तो बाँसुरी के स्वर से घायल करता है, प्रेम से घायल करता है। जब कन्हैया एक बार प्रेम से देखता है, तब वह चाहे राक्षस हो, या पशु, उसका दास बन जाता है। उसमें प्रभु का प्रेम जागता है। कृष्ण आँखों से घायल करता है। उसकी आँखों में प्रेम भरा रहता है। मेरा कन्हैया मुझे प्राणों से भी प्रिय है। नारायण में साठ गुण हैं, मेरे बालकृष्ण में चौंसठ गुण हैं।


श्रीकृष्ण में नारायण से भी चार गुण अधिक हैं। श्रीकृष्ण की वेणु-माधुरी, श्रीकृष्ण की रूप- माधुरी, श्रीकृष्ण की लीला-माधुरी-ये चार गुण नारायण से भी कन्हैया में अधिक हैं। कन्हैया जैसी बांसुरी बजाता है, वैसी बांसुरी कोई नहीं बजा सकता है। कन्हैया जैसी लीला करता है, वैसी लीला कोई नहीं कर सकता है। गोपी के घर कन्हैया जाता है और कहता है- तुम्हारा माखन मुझे बहुत भाता है। तुम्हारे घर की छाछ बहुत मधुर है। गोपी लाला से कहती है-लाला मेरे घर जैसी छाछ तुम्हें सारे गाँव में कहीं नहीं मिलेगी, क्योंकि मेरे अनेक जन्मों का प्रेम इस छाछ में है। प्रेम रस अति मधुर है। लाला! तुम्हें मेरे घर की छाछ पीनी है तो थोड़ा नाचो। तब मैं तुम्हें छाछ दूँगी । कन्हैया नाचता है। वैंकुण्ठ के नारायण से कोई कह सकता है कि आप थोड़ा नाचिये? अरी सखी! वैकुण्ठ के नारायण को मैं मानती हूँ। मैं उन्हें वंदन करती हूँ पर वे हमारे साथ बातें नहीं करते हैं। उन्हें अभिमान है क्या? हमारा कन्हैया सर्व-से श्रेष्ठ है, पर लाला को जरा भी अभिमान नहीं है। बिना बुलाये वह मेरे घर आता है। मेरे पीछे पीछे चलता है। मैं जब पूछती हूँ कि कन्हैया तुम मुझ में क्या देखते हो? तब कन्हैया कहता है कि तुम्हारे घर मुझे बहुत आनंद आता है। क्या मैं तुम्हारे घर आ जाऊँ? अरी सखी! कन्हैया जैसी लीला करता है, वैसी लीला वैंकुण्ठ के नारायण भी नहीं कर सकते हैं। श्रीकृष्ण की लीला माधुरी अलौकिक है एक गोपी छाछ व माखन बेचने जा रही थी। घर में उसने संकल्प किया कि आज रास्ते में अगर कन्हैया मिल जायेगा तो मैं उसे घर लाकर माखन आरोगने दूँगी। इस विचार में ही गोपी तन्मय हो गयी। उसकी आँखों में श्रीकृष्ण हैं, उसके मन में श्रीकृष्ण हैं, उसकी बुद्धि में श्रीकृष्ण हैं। इससे बाजार में जाकर माखन लो, माखन लो, कहने के स्थान पर भूल से कहने लगी- 'माधव लो, माधव लो-मैं तो बेचने निकली, व्रज की नारि..... माधव लो रे.... माधव लो...., लाला ने सोचा- यह तो आश्चर्य है। यह गोपी तो मुझे ही बेचने निकली है? इसका कितना प्रेम है। निरंतर स्मरण करते हुए चलती है। बालकृष्णलाल रास्ते में प्रकट हुए हैं। सुन सुन करते हुए गोपी के पीछे-पीछे चलते हैं। गोपी श्रीकृष्ण के स्मरण में ऐसी तन्मय हुई कि उसे मालूम ही नहीं हो रहा कि लाला उसकी साड़ी पकड़ रहा है और कह रहा है कि मुझे माखन दे। मैं गोकुल का राजा हूँ। मुझे दान दो। गोपी लाला को चिढ़ाती है - तू कैसा गोकुल का राजा? गोकुल के राजा तो दाऊजी भैया हैं। तुम्हें माखन नहीं दूँगी। मुझे छोड़ दे, पर कन्हैया छोड़ ही नहीं रहा है। किसी देव में है ऐसी ताकत कि रास्ते में जाती हुई किसी स्त्री की साड़ी पकड़ ले, उसका हाथ पकड़ ले। पर स्त्री से देवों को भी संकोच होता है। कदाचित् इस तरह करूँगा तो लोग मेरी पूजा नहीं करेंगे। पर स्त्री से सब घबराते हैं। कन्हैया के लिये कोई पर स्त्री नहीं है। कन्हैया कहता है कि मैं सबका हूँ, सब मेरे हैं। कन्हैया गोपी का हाथ पकड़ लेता है, गोपी की साड़ी पकड़ता है और कहता है कि मैं तुम्हें नहीं छोडूगा। गोपी कहती है-लाला मै बड़े घर की हूँ। तुम इस तरह व्यवहार कररहे हो, तो उचित नहीं है। मुझे घर जाना है। गोपी लाला को छोड़कर घर जाने लगी। वह जानती है कि लाला को मेरा माखन भाता है वह थोड़ा चलती है और पीछे देखती है कि कन्हैया आ रहा है या नहीं। उसे घर ले जाना है।

रास्ते में एक पत्थर पड़ा था। लाला ने वह उठा लिया और छिपा दिया। गोपी की आँखें श्रीकृष्ण के मुखारविंद में स्थिर हैं। लाला के हाथ में क्या है, इसका ध्यान उसे नहीं है। उसे कुछ नहीं दीख रहा है। गोपी ने लाला को रास्ते में माखन नहीं दिया और इससे लाला रूठ गया है। लाला ने मटकी पर पत्थर मारा। दही फैल गया। माखन लुढ़क गया। गोपी की साड़ी बिगड़ गयी। कन्हैया दौड़ते-दौड़ते घर पहुँच गया। घर आकर माता की गोद में बैठ गया। कहने लगा कि माँ, एक गोपी तो बाघिन जैसी है वह मेरे पीछे पड़ी है। यशोदा माता पूछ रही हैं कि बेटा तुमने तो कुछ नहीं किया है न? लाला कहता है कि ना! मैंने तो कुछ नहीं किया, मैं तो कुछ नहीं जानता। गोपी ने आकर यशोदा माता से कहा माँ देखिये, मेरी साड़ी लाला ने बिगाड़ दी, मेरी मटकी फोड़ डाली ऐसी-ऐसी शैतानी यह करता है। कन्हैया ने मटकी फोड़ दी, सो यशोदा माता को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने पूछा कि बेटा ! तुमने मटकी फोड़ डाली? लाला ने कहा कि 'माँ! तुम गोपी को उसके घर जाने को कह दो। मुझे उससे डर लगता है। उसके घर जाने पर मैं तुम्हें सब समझा दूँगा। यशोदा माता ने कहा- बेटा, तुम्हें कोई नहीं मारेगा, तुम्हें जो कुछ कहना है, कह दो। लाला ने कहा- माँ, यह गोपी कंजूस है। दो-तीन दिन का बासी दही बेचने जा रही थी। मैं तो सब की सँभाल रखता हूँ कि हमारे गांव में किसी को बुखार न आ जाय। ऐसा दही खाने से तो बुखार आयेगा ही न? तीन दिनों का रक्खा दही था, इससे मैंने मटकी फोड़ डाली। आरोग्य-प्रचारक मंडल का अध्यक्ष मैं हूँ। जगत् में जितनी संस्थाएँ हैं, सभाएँ हैं, उनके अध्यक्ष श्रीकृष्ण हैं। यशोदाजी ने तो गोपी को उलहाना दिया- हमारे गांव में दही -माखन की क्या कमी है? कन्हैया कहता है कि तीन दिन का बासी दही है। ऐसा बासी दही तुम बेचने ले जाती हो? यशोदामाता ने कहा- जो हुआ सो हुआ, पर हमारे गांव में ऐसा विज्ञापन हो जाय, तो इसे लड़की कौन देगा?

इसने मटकी फोड़ दी है, ऐसा किसी से न कहना मैं अपने घर की पाँच मटकियाँ देती हैं। मटकी फोड़ता है पर कन्हैया गोपियों को इतना ही प्रिय है, प्राणों से प्यारा है। लाला को देखे बिना उन्हें चैन नहीं है। उसके साथ बातें किये बिना गोपियों का मन ही नहीं मानता है। गोपी कहती है-माँ! आपका यह कन्हैया हमें प्राणों से भी प्यारा है मैं किसी से कहने वाली नहीं हूँ। श्रीकृष्ण की लीला अलौकिक है। इससे महापुरुषों की समाधि लग जाती है और वे कृष्णलीला में तन्मय हो जाते हैं।


श्री डोंगरेजी महाराज

हरिओम सिगंल 




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