रविवार, 18 सितंबर 2022

भगवान की विशिष्ट कृपा

 परमात्मा की साधारण कृपा सर्वजीवों पर है पर जिस जीव पर विशिष्ट कृपा भगवान् करें, तो उसे परमात्मा, परमात्मा बनाते हैं। भगवान् विशिष्ट कृपा कब करते हैं? जब यह जीव एकांत में बैठकर परमात्मा के लिये रोता है कि मेरा प्रभु से वियोग हुआ है। मुझे परमात्मा के चरणों में जाना है। तब प्रभु को दया आती है। यह जीव रोता हुआ माता के पेट से बाहर आता है और जब संसार छोड़ता है, तब हाय-हाय करके जाता है। पैसा नहीं रहता तो कई लोग बहुत रोते हैं। कई लोग ऐसे हैं कि अपमान होने पर बहुत रोते हैं। कई लोग संतान न होने के कारण रोते हैं जीव पुत्र के लिये पैसे के लिये, स्त्री के लिये रोता है पर कभी परमात्मा के लिये नहीं रोता है जो जीव एकांत में बैठकर परमात्मा के लिये रोता है, उस पर प्रभु को दया आती है जो बहुत हँसता है, उस पर परमात्मा की कृपा तुरन्त नहीं होती है। जो प्रभु के लिए रोता है उसके दुःख का अंत आता है। हर रोज एकांत में बैठकर परमात्मा के लिये रोइये। मैं प्रभु से बिछुड़ गया हूँ। मैं बड़ा हुआ अभी तक मुझे प्रभु के दर्शन नहीं हुए हैं। मैं प्रभु के प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहता हूँ। मुझे प्रभु के चरणों में जाना है। ऐसा सोचते हुए श्रीकृष्ण-वियोग में जो व्याकुल होता है और जो व्याकुल होकर रोता है तथा जिसे श्रीकृष्ण-वियोग का दुःख होता है, वह भक्ति कर सकता है।

श्रीकृष्ण-वियोग में जिसका मन संसार में रमता है, प्रभु के वियोग में जिसे संसार सरस लगता है, वह भक्ति नहीं कर पाता है। भक्ति का प्रारंभ तब होता है, जब जीव को संसार नीरस लगता है तथा संसार का सुख, दुःख-रूप प्रतीत होता है। जब प्रभु के वियोग में दुःख लगता है और जब भक्ति परिपूर्ण होती है, तब परमात्मा उसे सद्यो मुक्ति देते हैं, समय से पहिले ही मुक्त कर देते हैं। असमय पर......' असमयेन वत्सान् जीवान मुञ्चन'.. समय नहीं हुआ है, पर बंधन से छुड़ाते हैं। यशोदाजी गोपियों को समझाती है-वृद्धावस्था में बालक का जन्म हुआ है। मैं तो माता हूँ, बालक को कैसे धमका सकूँगी? वह मुझे प्राण से भी प्रिय है। कन्हैया बालक है। तुम्हारा ही बालक है। तुम सबके आशीर्वाद से पुत्र मिला है। वह आपके घर आकर शैतानी करे, तो आप उसको धमकाना। एक गोपी ने कहा- माँ, आप किसे समझा रही हैं वह तो ऐसा धृष्ट हो गया है कि उसे कौन धमका सकेगा? वह तो मुझे ही धमकाने लगा है। कल मेरे घर शरारत करने आया। जब मैं उसे पकड़ने गयी तो वह हाथ ही नहीं आया। वह बहुत चंचल हो गया । वह तो दूर-दूर चला गया। माँ मैं तो दौड़ते-दौड़ते थक गयी। वह तो मुझे अगूंठा दिखाता रहा..... लो पकड़ लो !.. ...... लड़कों को सिखलाता है कि इसको चिड़ाओ फजीहत करो। लड़के सब मेरा नाम ले-लेकर मेरा मजाक करने लगे। माँ वह तो ऐसा ही करता रहता है। 

एक गोपी ने कहा- लाला को चोरी करने की आदत हो गयी है। कोई इसे बुलाकर माखन खिलाता है तो वह नहीं खाता है। कहता है कि मुझे माखन नहीं भाता है। पर जब कोई नहीं होता तो चोरी करके वह माखन खा जाता है। वही उसे भाता है। उसे ऐसी आदत पड़ गयी है। यह सब सुनकर माता को बहुत क्षोभ हुआ ।

 यशोदाजी ने कहा-अरी सखी! क्या आप लोगों को पता चल जाता है कि आज कन्हैया आने वाला है? गोपी ने कहा- माँ, पता तो चल जाता है।  जिस दिन वह आनेवाला होता है, उस दिन उसकी बहुत याद आती है। माँ! मैं आपको क्या बतलाऊँ। रात्रि में जब मैं शय्या पर सोती हूँ, तब कन्हैया बहुत याद आता है।

रात्रि में शय्या में सोने पर आपको क्या याद आता है, जरा विचार कीजिये। मन की परीक्षा दिन में ठीक से नहीं होती है। रात्रि के समय पर होती है देखिये कि निवृत्ति के समय पर मन कहाँ जाता है? निवृत्ति के समय पर मन जहाँ जाता है, वहाँ मन फँसा है, ऐसा समझ लीजिये। श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण नाम का जप करते हुए गोपी सो जाती है। रात्रि में शय्या में वह बहुत भक्ति करती है। शय्या में जो भक्ति नहीं करता है, उसे काम मारता है। जब तक निद्रा नहीं आती, तब तक प्रभु के नाम का जप करते रहिये । जाग्रत अवस्था की समाप्ति और निद्रा की प्रारंभ की अवस्था की संधि में श्रीकृष्ण को रखने वाले को निद्रा भी भक्ति ही है। गोपी ने यशोदाजी से कहा माँ कभी मुझे ऐसी अनुभूति होती है कि - श्रीकृष्ण मेरी शय्या में ही हैं। छोटे बालकृष्णलाल मुझे शय्या में ही दिखाई देते हैं। गोपी श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए श्रीकृष्ण के साथ ही सो जाती है जो परमात्मा के साथ सोता है, उसे कैसा आनंद मिलता होगा? गोपी को काम का स्पर्श नहीं है। जो प्रभु के साथ सोता है, उसे काम का स्पर्श नहीं होता है।

जीव जब ईश्वर से विमुख होता है, तब काम उसे मारता है। शय्या में बहुत भक्ति कीजिये। शय्या में भक्ति की जरूरत है। गोपी ने कहा कि आज मुझे स्वप्न में आपका कन्हैया दिखाई दिया। मैंने स्वप्न में देखा कि बालकृष्णलाल ग्वाल बाल मित्रों के साथ मेरे घर आये हैं। मेरे घर का माखन छींके से उतार लिया है। सुबह चार बजे मैंने स्वप्न देखा और फिर जाग गयी। मुझे बहुत आनंद आया। मैं जान रही हूँ कि सुबह का स्वप्न सत्य होता है, इससे मुझे विश्वास है कि आज कन्हैया मेरे घर आयेगा। 

माँ! मैं अपने घर का काम करती हूँ तो भी मुझे आपका कन्हैया ही दीख पड़ता है। कभी ऐसा आभास होता है कि कन्हैया दाँयें खड़ा है, बाँयें खड़ा है। गोपी को घर का काम करते हुए कन्हैया ही दीख पड़ता है। गोपी कहती है कि माँ! सुबह जब घर का काम करती हूँ, तो बहुत याद आता है। माँ! सुबह उठकर जब मैंने चूल्हा जलाया तो चूल्हे में लकड़ियों के साथ बेलन भी जला दिया मुझे कुछ होश ही नहीं रहा। तब मुझे कन्हैया ही दिखायी दे रहा था।

माँ कन्हैया जिस दिन आने वाला होता है, उस दिन हमें उसकी याद आती है। हमें होश ही नहीं रहता है। एक गोपी ने कहा कि माँ! मैं आपसे क्या कहूँ? लाला ने मेरी रक्षा जिस तरह से की है मैं कभी भी नहीं भूलूँगी ।माँ वह संकट के समय दौड़ता आ पहुँचा। हम तो क्या प्रेम करते हैं। हमारा प्रेम तो कुछ भी नहीं है। प्रेम तो कन्हैया करता है। वह हमारी रक्षा करता है। माँ! आज मुझे मार पड़ने वाली ही थी, पर लाला ने मुझे बचा लिया। यशोदामाता ने पूछा-अरी सखी, क्या हुआ? गोपी कहने लगी कि माँ! मैं आपसे क्या कहूँ? मेरे ससुरजी को क्रोध बहुत शीघ्र आ जाता है। वे बहुत क्रोध करते हैं। आज मेरे घर मेहमान आये थे। ससुरजी ने कहा कि हम खेत में जा रहे हैं, दो बजे वापस आ जायेंगे। आज खाना ठीक से बनाना । माँ! मैं रसोई में गलती कर बैठती हूँ। मुझे ऐसी आदत हो गयी है कि हरे कृष्ण हरे कृष्ण' बोलते बोलते मैं आटा तैयार करती हूँ। रोटी बनाती हूँ तो भी 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण' बोलती रहती हूँ। माँ! मैंने लाला से कहा कि तुम मेरे घर आना चाहो तो आ जाना, पर बेटा, जब मैं खाना बनाती हूँ, तब न आना। माँ! आपके लाला को देखने के बाद मुझे कुछ होश ही नहीं रहता है। कभी नमक डालना भूल जाती हूँ तो कभी छोंकना ही भूल जाती हूँ। यह गोपी जब खाना बनाती है, तब 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण' जप करती रहती है।रोटी बनाते हुए मैं जप करती रहती हूँ। मैं रोटियों को घी लगाते हुए भी जप करती रहती हूँ। कृष्ण कृष्ण बोले बिना मुझे चैन नहीं आता है और जब मैं कृष्ण बोलती हूँ तब कन्हैया ही दिखाई देता है। मुझे तब बहुत आनंद होता है। मुझे होश भी नहीं रहता है। आज मैंने निश्चय किया था कि मेहमान भोजन करने वाले हैं, इससे भोजन बनाते समय मैं लाला का स्मरण नहीं करूंगी। लाला को भूल जाऊँगी। बड़े-बड़े योगी जगत् को भूलने का यत्न करते हैं। जगत् भूलने के लिये वे आँखें बंद रखते हैं, नाक पकड़ते हैं, प्राणायाम करते हैं, फिर भी जगत् भुलाया नहीं जाता। आँखें बंद करने के बाद भी उन्हें जगत् दिखाई देता है। योगियों की ऐसी इच्छा होती है कि जगत् को भुलाया जाय और भगवान् के स्मरण में, दर्शन में तन्मयता आ जाय। धन्य हैं व्रज की गोपी, जो भगवान् को भूलने का प्रयत्न करती है पर श्रीकृष्ण उनसे भुलाये नहीं जाते। गोपी कहती है कि माँ! मैंने सब खाना बना लिया, पर अन्त में जब मोहन भोग बनाने लगी, तब कन्हैया बहुत याद आया । माँ! मैं जानती हैं कि कन्हैया को मोहन भोग बहुत भाता है। कहीं अच्छी मिठाई या अच्छा फल दिखाई देता है तो गोपी की इच्छा होती है लाला को अर्पण करने की लाला को अच्छी वस्तु खिलाने को उसकी बहुत इच्छा होती है। गोपी का भाव है कि कन्हैया आरोगे और हम दर्शन करें।

गोपी लाला को सब कुछ अर्पित करती है। गोपी कहती है कि माँ! मैं जानती हूँ कि लाला को मोहन भोग भाता है। मुझे लगता है कि कन्हैया आ जाय तो अच्छा है। ये मेहमान तो दो बजे के बाद आने वाले हैं। अभी कन्हैया आ जाय तो मैं उसे मोहन भोग खिलाऊँ। मेरा कन्हैया खुश हो जायगा। माँ! मैंने आज निश्चय किया था कि खाना बनाते समय कन्हैया का स्मरण नहीं करूँगी। हरे कृष्ण, हरे कृष्ण' नहीं बोलूँगी पर यह रहन कब शुरू हो गयी, पता ही न चला और उसके विचारों में मैं तन्मय हो गयी। माँ! फिर मुझे कुछ होश ही न रहा। मोहन भोग में शक्कर के स्थान पर मैंने नमक डाल दिया। माँ! आज आँगन में मैंने कन्हैया को दो बार देखा । मैं पागल की तरह रसोईघर से दौड़कर बाहर आयी पर कन्हैया हाथ नहीं आया। यशोदाजी पूछने लगीं कि अरी सखी! फिर क्या हुआ? गोपी कहने लगी कि माँ! मोहन भोग में नमक डालने के कारण आज मुझे मार ही पड़ने वाली थी, पर लाला ने मुझे बचा लिया। मुझे कुछ भी मालूम न था । दो बजे ससुरजी मेहमान के साथ घर आये। मैंने ठाकुरजी को भोग लगाया। सभी को भोजन परोस दिया। माँ! लाला ने मेरी इज्जत रख ली। मेहमान तो खुश-खुश हो गये। मेरी प्रशंसा करने लगे बोले कि ऐसा स्वादपूर्ण मोहन भोग तो हमने कभी नहीं खाया है, यह कैसे बनाया है?

मोहन भोग में गोपी ने भले ही नमक डाल दिया हो, पर एक एक कण गोपी के मन का श्रीकृष्णनामामृत में भीगा हुआ था श्रीकृष्ण का नाम अमृत से भी मधुर है। श्रीकृष्ण ने सोचा कि मेरे नाम-स्मरण में यह तन्मय बन जाती है। इसकी बेइज्जती न होनी चाहिए। गोपी कहती है कि मेरे लाला ने तो ऐसी लीला रचायी कि किसी को पता तक न चला। ससुरजी कभी मेरे लिए अच्छे शब्द नहीं कहते थे, पर आज वे भी मेरी प्रशंसा करने लगे। बोले कि कितनी सुन्दर रसोई बनायी है। यह बहू क्या है, यह तो लक्ष्मी है। जब से इसका आगमन हुआ तब से मैं सुखी हुआ हूँ। माँ! मैंने सोचा कि मैंने खाना अच्छा बनाया है, इससे सब खुश हुए हैं। सब के भोजन कर लेने के बाद मैं जब भोजन करने बैठी तब मुझ अकेली को ही पता चला कि मैंने तो शक्कर के स्थान पर नमक डाल दिया है। माँ! आज लाला ने मेरी रक्षा की है।

 दूसरी गोपी ने कहा कि माँ! खाना बनाने वाला बहुत पवित्र होना चाहिये। खाना बनाने वाले का भाव सूक्ष्मरूप से अन्न में आता है और खानेवाले के भीतर जाता है। अन्न-दोष मन-बुद्धि को बिगाड़ता है। बहुत पवित्रता से, मन से प्रभु के नाम के जप करते हुए प्रेम से खाना बनाइये। भगवान् को भोग लगाइये। आजकल माताएँ भगवान् का नाम लेकर खाना नहीं बनाती हैं। कई तो ऐसी हैं कि सिनेमा के गीत गाते-गाते खाना बनाती हैं। रात्रि में सिनेमा देखकर आती हैं और सुबह बनाते-बनाते वही चित्र उन्हें याद आता है। 

रसोई बनाने वाले का मन बहुत पवित्र होना चाहिये। पति की बुद्धि को सुधारना पत्नी के हाथ में है। छह मास पवित्र अन्न पेट में जाता है तो धीरे-धीरे बुद्धि सुधरती है अन्न के तीन  भाग हैं - अन्न का स्थूल भाग, मल रूप से बाहर निकलता है। मध्य भाग लहू-मांस बनता है और सूक्ष्म भाग से मन-बुद्धि बनती है। गोपी कहती है कि माँ! मुझे ऐसी आदत हो गयी है कि रोटी बनाती  हूँ तो भी 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण' बोलती रहती हूँ। माँ! मैंने लाला से कहा कि तुम मेरे घर आना चाहो तो आ जाना, पर बेटा, जब मैं खाना बनाती हूँ, तब न आना। माँ! आपके लाला को देखने के बाद मुझे कुछ होश ही नहीं रहता है। कभी नमक डालना भूल जाती हूँ तो कभी छोंकना ही भूल जाती हूँ। यह गोपी जब खाना बनाती है, तब 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण' जप करती रहती है।


 मेरे जेठजी भोजन करने बैठे थे, तब उनके लिए मैंने मुरब्बा निकाला और उसी समय मुझे कन्हैया याद आ गया। मेरी सासजी कन्हैया को पटड़े पर बैठा देती है और मैं उसे खिलाती हूँ। हमारे घर में कन्हैया सबको बहुत प्यारा है। मेरे पतिदेव भी लाला के संग से बदल गये हैं। वे अब ब्रह्ममुहूर्त में उठकर ध्यान करते हैं। मेरे पतिदेव तो भगवान का कीर्तन करते हुए कभी-कभी देहभान भी गंवा देते हैं। कन्हैया आये ऐसे विचार में में तन्मय हो गयी और काँच का मर्तबान छींके में रखने के बदले अपने लड़के को ही उसमें रख दिया। बालक जब रोने लगा तब मुझे पता चला। 

माँ! आज ऐसा हुआ। व्यास महर्षि ने गोपियों को 'प्रेम संन्यासिनी' की उपाधि दी है। गोपी परमहंस हैं। भागवत परमहंसों की संहिता है।


यशोदाजी ने फिर कहा कि सखी आप लोगों को पता तो चल जाता है न कि कन्हैया आने वाला है? गोपियाँ कहती हैं कि हाँ माँ! पता तो चल ही जाता है। यशोदाजी ने कहा- तो ऐसा कीजिए कि जिस दिन आपको पता चले कि आज कन्हैया आयेगा, उस दिन घर में कुछ खाने का सामान ही न रखना। सब पीहर रखकर आना। सखी के घर रख देना। बालक है। आपके घर अच्छा-अच्छा खाना मिलता है न, इससे आता है। दो-चार बार कुछ नहीं मिलेगा तो फिर नहीं आयेगा। एक गोपी ने कहा कि माँ! आप किसे सीख देती हैं? कल ही मुझे मालूम हो गया था। माँ! मैं आँगन में बैठी थी । कन्हैया गोपाल मंडली के साथ मेरे घर के पास से निकल गया। वह गोपालों के पीछे-पीछे चलता था। सब लोग आगे निकल गये। कन्हैया मेरे आँगन में खड़ा रह गया। मेरे सामने देखने लगा। लाला ने मुझ पर नजर डाली। माँ! लाला की आँखें बहुत सुन्दर हैं। लाला की आँखों में प्रेम भरा है। मुझे देखकर होठों में हँसने लगा। मैंने पूछा- कन्हैया ! क्यों हँस रहा है? तो कहने लगा कि कल तुम्हारी बारी है। मुझे तुम्हारे घर का माखन खाना है, मैं कल तुम्हारे घर आने वाला हूँ। मैं समझ गई। मैंने घर में कुछ न रखा। माँ! कन्हैया जब घर आया तो उसे कुछ न मिला। इससे रूठ गया। उसने मेरे बच्चे को जगाया। मेरा बच्चा पालने में सोया था। कहने लगा  कि मेरा ऐसा नियम है कि जिसके घर जाता हूँ घर के स्वामी का कल्याण करता हूँ और प्रसाद देकर घर छोड़ता हूँ। पर तेरी माँ ने कुछ रखा ही नहीं, मैं तुम्हें क्या प्रसाद दूँ? लो, मेरा प्रसाद ।ऐसा कहकर मेरे बच्चे को चुटकी काटने लगा। मेरा बच्चा रोने लगा। माँ! घर में कुछ नहीं रखते तो वह बच्चों को रुलाता है।

कन्हैया जब आपके घर आयेगा तब उसका सम्मान नहीं होगा तो वह रुलायेगा। प्रत्येक जीव से एकबार भगवान् मिलने जाते हैं, पर जीव भगवान् को पहिचान नहीं पाता। हमारे घर शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म लेकर प्रभु पधारेंगे तो उनका तेज हम सह नहीं सकेंगे। तब हम उलझन में पड़ जायेंगे। इससे हम देख सकें ऐसे ही स्वरूप में प्रभु पधारते हैं। कभी आपके घर भिखारी के रूप में आ जायँ या संभव है कि कभी वे साधु-संन्यासी के रूप में आ जायें। वेदान्त कहते हैं कि प्रभु अरूप हैं, रूप-रहित हैं। ईश्वर का कोई स्वरूप नहीं है। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर का कोई एक रूप नहीं है। हाथ में शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म हो तो ही क्या ईश्वर होते हैं? क्या उनका दूसरा कोई स्वरूप नहीं है? वस्तुतः ईश्वर का कोई एक स्वरूप निश्चित नहीं है। अनेक रूपरूपाय विष्णवे प्रभुविष्णवे इस जगत् में जितने रूप दिखाई देते हैं, वे सभी तत्त्व से परमात्मा के ही हैं, ऐसा समझकर विवेक से व्यवहार कीजियेगा। किसी जीव का तिरस्कार न कीजियेगा। सभी को मान देना, सभी में सद्भाव रखना। अगर आपको तिरस्कार करने की आदत पड़ गयी तो जब कभी प्रभु आयेंगे, आपसे तिरस्कार हो जायेगा। सभी के समक्ष हाथ जोड़ने में क्या होता है? सभी को मान देने में क्या आपका कुछ कम हो जाता है? आपके घर प्रभु पधार रहे हैं और आप सोये हुए हैं, प्रभु का सम्मान नहीं कर पाते तो प्रभु आपको रुलायेंगे ही। बोलेंगे कि तुम्हारे घर आया था।

मेरे कारण ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त होता है, पर जब मैं आया तुमने मेरी ओर देखा तक नहीं। तुमने मेरा तिरस्कार किया। तुम इस सबके लिए लायक नहीं हो!

यशोदा कहती हैं-अरी सखी! आप सब कहती हैं कि कन्हैया शरारत करता है पर जब मैं उससे पूछती हूँ, तब वह इन्कार कर देता है। ऐसा करो कि जब लाला तुम्हारे घर आ जाय, तब उसे पकड़कर मेरे घर ले आना। मैं उसे सजा दूँगी। 

प्रभावती ने लाला को पकड़ने का बीड़ा उठाया। प्रभावती से लाला ने कहा- कल मैं तुम्हारे घर आनेवाला हूँ। प्रभावती ने घर में दही, माखन सब कुछ रखा उसने सोचा कि लाला जब माखन खायेगा, तब ही उसे पकड़ लूँगी।

गोपाल - मंडली के साथ लाला आ पहुँचा। प्रभावती पलंग के नीचे छिप गई। लाला ने मटकी उतार ली और मित्रों को माखन देने लगा। प्रभावती को बहुत आनंद आया। वह धीरे धीरे बाहर निकली। लड़कों की दृष्टि गई। बोले-कन्हैया, कन्हैया, वह आयी बालक सब भाग गये पर कन्हैया खड़ा ही रहा। प्रभावती ने लाला की कलाई पकड़ ली। लाला ने कहा-तेरे पाँवों पइँ,' अब कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा। आज के दिन मुझे छोड़ दे। प्रभावती लाला को नहीं छोड़ती है। उसका एक पुत्र था। लाला जैसा ही था। उसने देखा कि माँ तो लाला को पकड़कर यशोदाजी के पास ले जा रही है। वह अपनी माता से कहने लगा-माँ! मैंने ही कल लाला को अपने घर बुलाया था। यशोदा माँ मुझे हर रोज माखन देती हैं। इससे मैंने आज लाला को निमंत्रण दिया है। लाला ने चोरी नहीं की है। माँ! तुम लाला को छोड़ दो मुझे मारो, मुझे सजा दो । मंडली के बालक रोने लगे। यशोदामाता लाला को मारेंगी तो !

प्रभावती सोच रही है कि आज मैं लाला को पकड़कर ले जाऊँगी। यशोदामाता लाला को धमकायेंगी तो कुछ नहीं बोलूंगी, अगर वे लाला को मारने जायेंगी तो मैं उनका हाथ पकड़ लूंगी। कन्हैया बहुत कोमल है। उसे मार पड़े, ऐसा मैं नहीं चाहती हूँ।

वह लाला को पकड़कर ले जाने लगी। लाला ने बालकों से कहा- तुम लोग घबराना नहीं, मैं मजाक करने वाला हूँ। प्रभावती लाला को पकड़कर ले जाने लगी, तब वह लाला को भूल गयी। जीवन की अंतिम साँस तक भक्ति कीजिए। कई व्यक्ति भक्ति में आनन्द की अनुभूति करते हैं, पर इससे भक्ति परिपूर्ण नहीं होती है। परमात्मा हाथ में आ जायँ तो भी भक्ति नहीं छोड़नी है। जीव को भक्ति मिलती है, और जगत का मोह होता है तो भगवान् छिटक जाते हैं। भगवान् हाथ में आ जायें, तो भी भक्ति को नहीं भूलना चाहिए। प्रभावती के हाथ में श्रीकृष्ण के आ जाने के बाद वह श्रीकृष्ण का स्मरण नहीं कर रही है, पर अपना ही चिंतन करने लगी कि मैं कैसी हूँ....लाला को मैं पकड़ सकी हूँ। निष्काम बुद्धि प्रभावती है। निष्काम बुद्धि भगवान् को पकड़ सकती है पर ईश्वर हाथ में आ जायँ, तब अभिमान आ जाता है और अभिमान आ जाने से ईश्वर छिटक जाते हैं।

लाला ने मजाक किया। प्रभावती से कहा- मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूँ पर मेरी कलाई तुमने बहुत जोर से पकड़ ली है, यह दुःख रही है, इसे छोड़ दो, और मेरा दूसरा हाथ पकड़ लो।

प्रभावती ने लाला का दूसरा हाथ पकड़ लिया। रास्ते में वृद्ध लोग मिले तो प्रभावती ने घूँघट निकाला। लाला ने अपने तीव्र नाखूनों से चुटकी काटी। प्रभावती ने हाथ बदला। उसे बार-बार हाथ बदलना पड़ा। कन्हैया ने युक्ति करके उसके पुत्र का हाथ ही उसके हाथ में दे दिया और स्वयं दौड़ता हुआ अपने घर पहुँचा गया। प्रभावती के पाँवों में गति थी। घूँघट निकाला था, इसलिए उसे कुछ भी पता न चला। कन्हैया घर में पहुँच गया, और तब पीछे से वह आ पहुँची । प्रभावती ने कहा- माँ! देखिये! आपके कन्हैया को पकड़कर ले आयी हूँ।

यशोदाजी ने कहा-श्रीकृष्ण तो भीतर हैं। प्रभावती ने कहा- बाहर हैं। आनंद भीतर ही है, आनंद को जो बाहर ढूँढ़ने जाता है उसकी फजीहत होती है। आनंद चेतन परमात्मा का स्वरूप है। किसी जड़ वस्तु में आनंद नहीं हो सकता है। 

यशोदाजी हँसने लगीं। प्रभावती ने घूँघट हटाकर देखा तो.... अपना ही पुत्र । प्रभावती बालक को मारने लगी। बालक मार सहता है पर रोता नहीं है सोचता है कि आज मैं लाला के लिये मार खा रहा हूँ। मेरा कन्हैया बच गया। जो परमात्मा के लिये मार खाता है, जो परोपकार के लिये मार खाता है, उस मार में परमात्मा का प्यार होता है। प्रभावती को आश्चर्य हुआ। उसने यशोदामाता से कहा- माँ, रास्ते में कुछ गड़बड़ हो गयी। है । यशोदामाता ने उसकी बात को नहीं माना ।प्रभावती को बहुत दुःख हुआ। वह धीरे-धीरे घर की ओर चल पड़ी। लाला ने खेल किया।

एक स्वरूप यशोदाजी के पास रखा और दूसरा स्वरूप उसके पीछे चला । प्रभावती के ससुरजी की सी आवाज निकालकर लाला ने कहा-अरी प्रभावती ! प्रभावती ने मुड़कर देखा, तो कन्हैया खड़ा था। कन्हैया ने कहा-मैं तुम्हें विशेष रूप से कहने आया हूँ कि अगर तुम मेरे या मेरे मित्रों के पीछे पड़ोगी तो मैं तुम्हारी फजीहत करूँगा। आज तो तुम्हारे लड़के को ही पीछे लगा दिया, पर दूसरी बार मुझे पकड़ोगी तो तुम्हारे पति को ही तुम्हारे पीछे लगा दूँगा और फिर सारे गाँव में तुम्हारी फजीहत होगी। प्रभावती पूछने लगी लाला तुम्हें ऐसा कौन सिखाता है? लाला कहने लगा मुझे कौन सिखायेगा? मैं ही सभी को सिखाता हूँ

श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं। बाललीला एक दो नहीं, अनेक हैं। अनेक तरह की हैं। लाला ने ललिता गोपी के साथ खिलवाड किया है। चन्द्रावली की कथा आती है। दुर्वासा ऋषि के साथ भी खेल किया है। दुर्वासा ऋषि को शंका हुई कि क्या यह श्रीकृष्ण परमात्मा हैं? ना, ना, यह तो ग्वाले का बेटा है। दुर्वासा ऋषि परीक्षा करने लाला के पेट में गये। लाला ने ऋषि को पेट में ही ब्रह्मांड के दर्शन करवाये हैं। दुर्वासा ऋषि को विश्वास हो गया कि यह ही परमात्मा है। इसके बाद गणपति महाराज की कथा है। यशोदा माता ने गणपति महाराज की मनौती मानी है। गणपति महाराज लाला को लड्डू खिलाते।

श्री डोंगरेजी महाराज



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