बुधवार, 26 जुलाई 2023

मुल्ला नसरुद्दीन की हकीमी

मुल्ला की हकीमी


जिस तरह मुल्ला नसीरुद्दीन को चाहने वालों की कमी नहीं थी, उसी तरह उससे जलने वालों की भी कमी नहीं थी। उससे ईर्ष्या रखने वाले हमेशा ऐसे अवसर की ताक में रहते थे जिसमें उन्हें उसकी खिल्ली उड़ाने का मौका मिल जाए।एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन सुबह की सैर करने निकला था। हमेशा की तरह उसने लम्बा चोगा और सलवार पहन रखा था। पाँव में नक्काशीदार जूती थी और सिर पर नोकदार लम्बी टोपी। अपनी दाढ़ी सहलाता हुआ मुल्ला अपनी गली में लम्बे डग भर रहा था कि उसका एक पड़ोसी, जो कहीं से आ रहा था, रास्ते में ठोकर लगने के कारण गिर पड़ा। मुल्ला नसीरुद्दीन उस समय उसके पास ही था इसलिए बिना समय गंवाए उसने उसे उठाया और उसके कपड़ों की गर्द झाड़ने लगा तो देखा, उस व्यक्ति के पाजामे से घुटने के पास खून रिस रहा है। मुल्ला को यह समझते देर नहीं लगी कि उस व्यक्ति का घुटना गिरने के कारण जख्मी हो गया है।

मुल्ला नसीरुद्दीन ने उस व्यक्ति से कहा- " अपना पाजामा घुटने तक उठा लो । मैं गेंदे के पौधे के पत्ते तोड़ लाता हूँ। उसका रस लगा देने से तुम्हारा जख्म भर जाएगा। खून गिरना तो तुरन्त बन्द हो जाएगा।" इतना कहकर मुल्ला नसीरुद्दीन बिना किसी की इजाजत लिये एक घर के आगे सजावट के लिए लगाए गए गेंदे के पौधों से 'कुछ' पत्तियाँ तोड़ने लगा। 

यह अहाता जिसमें गेंदा के पौधे लगाए गए थे रहमत खान का था। रहमत खान मुल्ला नसीरुद्दीन से बैर रखता था । उसे इस बात की रंजिश थी कि एक ही मुहल्ले में रहते हुए मुल्ला नसीरुद्दीन को दूर-दूर तक लोग जानते और मानते हैं जबकि मुल्ला नसीरुद्दीन की माली हैसियत उसके आगे कुछ भी नहीं है और उसे कोई नहीं जानता। मानने की तो बात ही जुदा है।

जब रहमत खान ने मुल्ला नसीरुद्दीन को गेंदे के पत्ते तोड़ते देखा तो उसके तन-बदन में आग लग गई। जलन से वह सुलग उठा और झल्लाई आवाज में बोला- "मियाँ नसीर ! यह क्या कर रहे हो? गेंदे के पौधे मैंने घर की शोभा के लिए लगाए हैं और तुम उसके पत्ते नोच रहे हो? वह भी बिना इजाजत?"

मुल्ला नसीरुद्दीन जानता था कि रहमत खान उससे खार खाए रहता है, किन्तु अभी वह वाकई बिना इजाजत उसके लगाए गेंदे पौधों के पत्ते तोड़ रहा है। यह खयाल आते ही कि रहमत का टोकना उचित है, उसने मासूमियत से कहा- "माफ करना रहमू! इस आदमी के घुटने छिल गए हैं। उस रिसते खून को देखकर मुझे कुछ भी खयाल नहीं रहा सिवा इसके कि इसके जख्म से खून बहना बन्द हो जाए। मैंने यहाँ गेंदे के पौधे देखे तो याद आया कि इसके रस से खून का बहना बन्द हो सकता है। बस, मैं गेंदे के पत्ते बेखयाली में तोड़ने लगा।" ऐसा कहते हुए मुल्ला नसीरुद्दीन गेंदे के पत्तों को अपनी हथेली पर मसलता भी रहा।

रहमत खान मुल्ला नसीरुद्दीन को नीचा दिखाने पर आमादा था। उसने उससे कहा - "हाँ, ठीक है, पहले तुम इस आदमी का ठीक से इलाज कर लो। मैं भी एक हकीम की तलाश में था। अब तुम पास में हो तो क्या गम है! तुमसे ही अपना भी इलाज करवा लूँगा । दरअसल मुझे मालूम नहीं था कि तुम हकीमी भी करते हो!"

मुल्ला नसीरुद्दीन रहमत खान की बातों में छुपे व्यंग्य को समझ रहा था मगर उसकी बातों पर ध्यान दिए बिना ही उसने उस चोटिल व्यक्ति के जख्म पर गेंदे के पत्तों का रस टपकाया। वाकई खून का बहना रुक गया। वह व्यक्ति मुल्ला नसीरुद्दीन को धन्यवाद कहता हुआ विदा हो गया। तब तक रहमत खान अपने दरवाजे पर खड़ा रहकर मुल्ला नसीरुद्दीन की हकीमी देख रहा था।

जब मुल्ला नसीरुद्दीन अपने काम से मुक्त हुआ तब रहमत खान ने मुल्ला नसीरुद्दीन को व्यंग्य भरी –दृष्टि से देखते हुए कहा- "हाँ, तो हकीम साहब! मुझे भी आपसे इलाज करवाना है, आप तो खुदाई खिदमतगार हैं, मेरा भी भला करें...."

मुल्ला नसीरुद्दीन समझ रहा था कि रहमत खान उसका मजाक उड़ा रहा है मगर अपनी शैली में जीने का आदी मस्त मलंग मुल्ला अपने पड़ोसी रहमत खान की व्यंग्य-बुझी बातों से अप्रभावित रहा और मुस्कुराते हुए पूछा - "बताओ तो सही, तकलीफ क्या है? जितना तजुर्बा है उतनी मदद तो मैं किसी की भी करूँगा...।”

रहमत खान ने मुल्ला नसीरुद्दीन के सामने खड़े होकर अपनी तोंद सहलाते हुए कहा -“ कल रात एक अजीब वाकया हुआ। वह भी तब, जब मैं गहरी नींद सोया हुआ था। नींद में ही मुझे अकबकाहट महसूस हुई। मेरी आदत है कि मैं मुँह खोलकर सोता हूँ... अकबकाहट के मारे मुझे जम्हाई आई और जम्हाई के कारण मेरा मुँह पूरा खुल गया। मेरे घर में बहुत चूहे हैं। जिस वक्त मैं जम्हाई ले रहा था उसी वक्त एक चूहा तेजी से दौड़ता हुआ आया और मेरे मुँह में घुसकर गले की नली के रास्ते मेरे पेट में पहुँच गया और वहीं ऊधम मचाए हुए है। कोई ऐसा उपाय बताइए कि यह चूहा मरे और मेरे पेट में शान्ति हो । "

"बस इतनी सी बात?... यह तो कोई ऐसी समस्या नहीं है कि चिन्तित हुआ जाए!" मुस्कुराते और अपनी दाढ़ी सहलाते हुए मुल्ला नसीरुद्दीन ने कहा- "देखो रहमू! तुम बड़ा- सा मुँह खोलकर जम्हाई लेना जानते ही हो... बस, कहीं से एक छोटी-सी बिल्ली पकड़ लाओ और मुँह बड़ा-सा करके बिल्ली को गटक जाओ और दो-तीन बार बाएँ से दाएँ, दाएँ से बाएँ करवटें लो और इसके कुछ देर बाद एक कटोरा ठंडा दूध पी लो। फिर देखो कमाल ! बिल्ली चूहे को निगल जाएगी और तुम्हारे पेट में चल रहा चूहे का ऊधम बन्द हो जाएगा  ।... और हाँ, यह समस्या तो केवल सामान्य ज्ञान से हल हो जाने वाली समस्या थी,.. इसमें हकीमी की कोई जरूरत ही कहाँ थी!"

इतना कहकर मुल्ला नसीरुद्दीन फिर से लम्बे डग भरने लगा। वह अपनी दाढ़ी भी सहलाता जा रहा था और मस्त चाल से चल भी रहा था। और रहमत खान कभी मुल्ला नसीरुद्दीन को तो कभी अपने अहातें में गेंदे के पौधों को देख रहा था ठगा सा !

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