मंगलवार, 25 जुलाई 2023

भगवान नहीं, शेखचिल्ली का घर

शेखचिल्ली पन्द्रह साल का हो चुका था। उसके गाँव में कई मकान पक्के और दो-मंजिले थे। उसके एक सहपाठी शकील अहमद का मकान भी दो मंजिला बन चुका था। मगर उसका घर जैसा था वैसा ही रहा, कोई तब्दीली नहीं हुई। उसकी भी इच्छा थी कि उसका घर भी दो मंजिला  बने। कच्चे मकान में रहते-रहते उसकी तबीयत भर गई थी। 

एक दिन वह स्कूल से जल्दी वापस आ गया था। घर पहुँचने पर उसने शेख बदरुद्दीन और रसीदा बेगम को एक जगह बैठकर बातें करते देखा। हालाँकि उसे बचपन से अब तक ऐसा मौका कम मिला जब उसने अपने मम्मी-पापा को एक साथ बैठकर बातचीत करते देखा हो। उसे देखकर शेख बदरुद्दीन ने आवाज लगाई 

" तू भी इधर ही आ जा शेखू!" शेखचिल्ली ने अपना स्कूल बैग एक तरफ रखा और मम्मी पापा के बीच में जाकर बैठ गया । मम्मी ने उसका सिर प्यार से सहलाते हुए कहा- "बता तो बेटे, इस बार ईद में तू कैसे कपड़े लेगा? तू जैसे कपड़े चाहेगा, इस बार तुम्हें वैसे कपड़े दिलवाएंगे हम। मम्मी पापा को खुश देखकर शेखचिल्ली ने आखिर अपने मन की बात कह दी - “मम्मी! हर ईद में कपड़े बनते ही हैं, इस बार नहीं भी बने तो चलेगा। मेरी तमन्ना है कि अपना घर पक्का हो-दो मंजिल वाला, जिसमें ऐसा छज्जा भी हो जहाँ टहला जा सके... घूम-घूम कर पढ़ा जा सके।"

शेखचिल्ली की बातें सुनकर शेख बदरुद्दीन चौक पड़े। तभी रसीदा बेगम ने कहा- "हों जी! इस बार गन्ने की फसल अच्छी हुई हैं। हम लोग इस बार दिल खोलकर खर्च करेंगे... और कुछ नहीं तो बाहर वाले दोनों कमरों पर छत डलवाकर उसके ऊपर एक कमरा शेखू के लिए बनवा देंगे। शेखू अब बड़ा हो रहा है। कल को उसकी शादी के लिए पैगाम लेकर लोग आएँगे। इस बात का खयाल करके ही सही, अपना जी कड़ा कर लीजिए और मकान बनवाने में पैसा लगवा दीजिए। खुदा ने चाहा तो मकान बन ही जाएगा। अच्छा सम्बन्ध पाने के लिए थोड़ा दिखावा भी तो करना जरूरी है।"

शेख बदरुद्दीन अपनी पत्नी और बेटे की बात सुनकर गम्भीर हो गए और थोड़ी देर सोचने के बाद धीरे से रसीदा बेगम से बोले "ठीक है, कल मैं सुभाष मिस्तरी से बातें करूँगा... वह हिसाब लगाकर बता देगा कि कितना खर्च आएगा-यदि बाहर के दोनों कमरों पर छत डलवाई जाए तो...!"


इस घटना के दो दिनों के बाद ही शेखचिल्ली ने देखा, उसके घर में राज मिस्तरी काम कर रहे हैं। अम्मी ने उसे बताया कि उनके मकान के आगे वाले भाग में छत ढलाई का काम दो-तीन दिनों में हो जाएगा और उसके बाद छत पर उसके लिए एक अच्छा सा कमरा बनवाया जाएगा जिसमें बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ होंगी... रोशनदान होगा। उसके कमरे का फर्श भी रंगीन होगा चकमक-बूटेदार! यह सब सुनकर शेखचिल्ली बहुत खुश हुआ और उस दिन से ही उसे प्रतीक्षा रहने लगी कि कब उसके घर में छत ढलाई हो... और कब उसके लिए कमरा बने।

और वह दिन भी जल्दी आ गया। शेख बदरुद्दीन इस बात पर आमादा थे कि जब पैसे खर्च हो ही रहे हैं तो दो-चार मजदूर बढ़ाकर मकान का सारा काम ईद से पहले पूरा करा लिया जाए। शेख बदरुद्दीन को अपने इस मकसद में कामयाबी मिली। ईद से पहले नई ढली छत पर शेखचिल्ली के लिए कमरा बनकर तैयार हो गया। नीचे के दो कमरे पापा मम्मी के  लिए और छत का शानदार फर्शवाला कमरा शेखचिल्ली के लिए तय हो गया। रसीदा बेगम ने बड़े जतन से शेखचिल्ली का सामान छतवाले कमरे में करीने से सजाया और ईद के दिन ही शेखचिल्ली को वह कमरा सौंप दिया गया।


अब शेखचिल्ली के पास जब भी वक्त होता, वह झरोखे से मुक्त आकाश का सौन्दर्य निहारता । घर के सामने की सड़क पर आने-जानेवाले लोगों को देखता । छज्जे पर टहलता । उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था क्योंकि बाहर से देखने पर उसका पूरा घर दो मंजिला ही दिखता था। उसका सीना गर्व से चौड़ा हो गया कि अब गाँव में वह भी दो मंजिला मकानवाला कहा जाएगा।

एक शाम शेखचिल्ली अपने कमरे के सामने की खुली छत पर टहल रहा था तभी उसने सुना, नीचे सड़क से किसी की आवाज आई - "देखो, यह दो मंजिला मकान शेखचिल्ली का है।"

शेखचिल्ली ने जब यह सुना तो उसका दिल बल्लियों उछलने लगा। “भगवान! क्या बात है! अब तो इस मकान के कारण लोग मुझे भी जानने लगे हैं!" खुश होकर उसने छत से नीचे झाँककर देखा । तीन-चार लड़के उसके मकान के सामने नुक्कड़ पर खड़े होकर बात कर रहे थे।

शेखचिल्ली छत पर टहलता हुआ उस किनारे तक गया जहाँ से नुक्कड़ पर खड़े लड़कों की बातचीत वह सुन सके।शेखचिल्ली ने सुना, उनमें से एक लड़का कह रहा था - "शेखचिल्ली का घर है। "

“यह कहकर तुम क्या जताना चाहते हो? अरे! मैं तो मानकर चलता हूँ, यह सारी दुनिया भगवान ने बनाई है इसलिए हर घर भगवान का घर है फिर शेखचिल्ली का घर कहे जाने की जरूरत ही क्या है?"

इतना सुनना था कि शेखचिल्ली गुस्से से तिलमिला उठा। वह तैश में आकर बुदबुदाने लगा-”मेरे मम्मी-पापा ने मेरे लिए यह घर बनवाया है। मेरे कहने पर बना है यह दो- मंजिला । यह मुआ कौन है जो इस बात को अहमियत देने से इनकार कर रहा है... अभी चलकर मजा चखाता हूँ इसे !" और शेखचिल्ली दनादन सीढियाँ लाँघते-कूदते उन लड़कों के पास पहुँचकर दहाड़ा-"अबे! कौन कह रहा था कि शेखचिल्ली का घर है, इस बात को अहमियत देने की जरूरत नहीं?"

शेखचिल्ली का तेवर देखकर लड़के डर गए और उनमें से एक ने उँगली दिखाकर दूसरे लड़के की तरफ इशारा कर दिया और शेखचिल्ली का एक घूँसा उस लड़के के जबड़े पर पड़ा-"तो तू है मेरे घर को भगवान का घर बताने वाला! तो ले, मेरे घूंसे को भगवान का घूँसा समझ !” इतना कहते हुए शेखचिल्ली ने दूसरा घूँसा भी जड़ दिया।

घूँसा खाकर उस लड़के ने तुरन्त माफी माँग ली। कहा- "भूल हो गई, माफ करो, अब मैं ऐसा नहीं बोलूँगा। बोलना होगा तो कहूंगा, भगवान का घर भी शेखचिल्ली का घर है।"

शेखचिल्ली शान से फिर अपनी छत पर आकर टहलने लगा।


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https://archive.org/details/mullanaseeruddinkianokhiduniya/page/n162/mode/1up


https://archive.org/details/tenaliramkianokhiduniyahindi/page/n5/mode/1up

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