रविवार, 7 जुलाई 2024

 

स्वर्गलोक में भौतिक ऐश्वर्य और इन्द्रिय तृप्ति और जीवन का आनन्द उठाने के भरपूर साधन उपलब्ध होते हैं। किन्तु स्वर्गलोक जाने की कामना आध्यात्मिक उत्थान के लिए सहायक नहीं होती। स्वर्गलोक में भी मायाबद्ध संसार की तरह राग और द्वेष पाया जाता है और स्वर्ग लोक में जाने के पश्चात जब हमारे संचित पुण्यकर्म समाप्त हो जाते है तब हमें पुनः मृत्युलोक में वापस आना पड़ता है।

 अल्पज्ञानी लोग स्वर्ग की कामना रखते हैं और सोचते हैं कि वेदों का केवल यही उद्देश्य है। इस प्रकार वे भगवद्प्राप्ति का प्रयास किए बिना निरन्तर जन्म और मृत्यु के चक्र में घूमते रहते हैं। जबकि आध्यात्मिक चिन्तन में लीन साधक स्वर्ग की प्राप्ति को अपना लक्ष्य नहीं बनाते।

"जो स्वर्ग जैसे उच्च लोकों का सुख पाने के प्रयोजन से वेदों में वर्णित आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों में व्यस्त रहते है और स्वयं को धार्मिक ग्रंथों का विद्वान समझते हैं किन्तु वास्तव में वे मूर्ख हैं। वे एक अंधे व्यक्ति द्वारा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाने वाले के समान हैं।"

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