मंगलवार, 9 जुलाई 2024

 परमपिता परमात्मा संसार की शासन व्यवस्था के नियंत्रण और संचालन संबंधी अपने कार्य देवताओं के माध्यम से करते हैं। ये देवता भौतिक ब्रह्मांड के उच्च लोक जिसे स्वर्ग या देवलोक कहा जाता है, में निवास करते हैं। देवतागण भगवान नहीं हैं अपितु वे भी हमारे जैसी आत्माएँ हैं। उन्हें संसार के संचालन से संबंधित दायित्वों का निर्वाहन करने हेतु पद सौंपे गये हैं। संसार के प्रशासन संबंधी कार्यों का संचालन करने के लिए  कुछ पद जैसे अग्निदेव अग्नि का देवता, वायु देव वायु का देवता, वरुणदेव समुद्र का देवता, इन्द्रदेव स्वर्ग के देवताओं का राजा आदि पदों का सृजन किया गया है। पूर्वजन्म के संस्कारों, गुणों और पाप-पुण्यमय कर्मों के आधार पर जीवात्मा को इन पदों पर नियुक्त किया जाता है। ये पद दीर्घकाल के लिए निश्चित होते हैं और इन पदों पर आसीन लोग ब्रह्मांड के शासन का संचालन करते हैं। ये सब देवता हैं। वेदों में स्वर्ग के देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के कर्मकाण्डों एवं धार्मिक विधि-विधानों का उल्लेख किया गया है और इनके बदले में देवता लौकिक सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। जब हम अपने यज्ञ कर्म भगवान की संतुष्टि के लिए करते हैं तब स्वर्ग के देवता भी स्वतः संतुष्ट हो जाते हैं। जिस प्रकार हम किसी वृक्ष की जड़ को पानी देते है तब वह स्वतः उसके पुष्पों, फलों, पत्तियों शाखाओं और लताओं तक पहुँच जाता है। 

 विष्णु भगवान की उपासना करने से सभी देवताओं की स्वतः उपासना हो जाती है क्योंकि वे अपनी शक्तियाँ उनसे प्राप्त करते हैं। इसलिए यज्ञ कर्म के निष्पादन से देवतागण वास्तव में प्रसन्न होते हैं और वे कृपापूर्वक भौतिक प्रकृति के उपादानों का सामंजस्य करते हुए मानव समाज के लिए सुख समृद्धि की व्यवस्था करते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...