डाकू हत्या करने के प्रयोजन से चाकू का प्रयोग करता है जबकि एक सर्जन उसी चाकू का प्रयोग एक उपकरण के रूप में लोगों का जीवन बचाने के लिए करता है। यह चाकू स्वयं न तो किसी की हत्या करता है और न ही किसी के जीवन की रक्षा करता है। इसके प्रभाव का परिणाम इसका प्रयोग करने के प्रयोजन से ज्ञात होता है। कोई भी कर्म बुरा या अच्छा नहीं होता किन्तु हमारी सोच इन्हें ऐसा बनाती है। मनुष्य की मनोदशा के अनुसार यह बंधन या उत्थान का कारण हो सकता है। इन्द्रिय सुख भोगों और अपने अहम् की तुष्टि के लिए किया गया कार्य भौतिक संसार में बंधन का कारण होता है और भगवान के सुख के लिए यज्ञ के रूप में किया गया कर्म माया के बंधनों से मुक्त करता है तथा भगवान की दिव्य कृपा प्राप्त करने की ओर उत्साहित करता है। क्योंकि कर्म करना हमारी प्रकृति है और हम दो प्रकार के कार्यों में किसी एक को करने के लिए बाध्य होते हैं। हम एक क्षण के लिए भी अकर्मा नहीं रह सकते क्योंकि हमारा मन खाली नहीं रह सकता। अगर कोई भी कार्य हम भगवान को अर्पण किए बिना करते हैं तब हम अपने मन और इन्द्रियों की तुष्टि के लिए कार्य करने के लिए विवश होंगे। जब हम किसी कार्य को समर्पण की भावना से सम्पन्न करते हैं तब हम यह पाते हैं कि यह सारा संसार और उसमें व्याप्त सभी वस्तुएँ भगवान से संबंधित हैं और उनका उपयोग भगवान की सेवा के लिए ही है।
गीता का एक-एक अध्याय अपने में पूर्ण है। गीता एक किताब नहीं, अनेक किताबें है। गीता का एक अध्याय अपने में पूर्ण है। अगर एक अध्याय भी गीता का ठीक से समझ में आ जाए--समझ का मतलब, जीवन में आ जाए, अनुभव में आ जाए, खून में, हड्डी में आ जाए; मज्जा में, मांस में आ जाए; छा जाए सारे भीतर प्राणों के पोर-पोर में--तो बाकी किताब फेंकी जा सकती है। फिर बाकी किताब में जो है, वह आपकी समझ में आ गया। न आए, तो फिर आगे बढ़ना पड़ता है।
मंगलवार, 9 जुलाई 2024
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