श्रवण कुमार के पिता रत्नऋषि नंदीग्राम के राजा अश्वपति के राजपुरोहित थे और कैकेयी राजा अश्वपति की बेटी थी। रत्नऋषि ने कैकेयी को सभी शास्त्र वेद पुराण की शिक्षा दी।
एक दिन बातों ही बातों में अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ की चर्चा चल पड़ी। रत्नऋषि ने कैकेयी को बतलाया कि दशरथ की कोई संतान राज गद्दी पर नहीं बैठ पायेगी और साथ ही ज्योतिष गणना के आधार पर यह भी बतलाया कि दशरथ की मृत्यु के पश्चात यदि चौदह वर्ष के दौरान कोई संतान गद्दी पर बैठ भी गया तो रघुवंश का नाश हो जाएगा।
यह बात कैकेयी ने पूरी तरह हृदयगंम कर लिया और विवाह के बाद भी कैकेयी के जेहन मे यह बात पूरी तरह समायी हुई थी।
जब राम के राज तिलक करने का अवसर आया तो बुद्धिमती कैकेयी को राजपुरोहित के कथन का स्मरण हो आया और उसने यह निश्चय कर लिया कि वह अपने प्रिय पुत्र राम को रघुवंश के विनाश का कारण नहीं बनने देगी और वही हुआ।
राम के वन गमन के पश्चात् भी कैकेयी भरत के लिए भी यही चाहती थी कि वह राजसिंहासन पर बैठ कर राज्य का संचालन न करे और यही हुआ। भरत ने राज कार्य तो संभाला लेकिन राजसिंहासन धारण न कर सिंहासन पर राम की चरण पादुका स्थापित कर राज्य का शासन कुशासन पर बैठ कर संचालित किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें