रविवार, 30 जुलाई 2023

 एक खरीदारी ऐसी भी

मुल्ला नसीरुद्दीन को कहीं से कुछ पैसे मिले। उसने सोचा- सामने ईद है, क्यों न इन पैसों से ईद के लिए नए कपड़े ले लिये जाएं। यह विचार मन में आते ही मुल्ला नसीरुद्दीन कपड़े की एक दुकान में चला गया और दुकानदार से कहा- "मुझे कुर्ते का कपड़ा चाहिए! "

दुकानदार मुल्ला की पतली लम्बी दाढ़ी और नोकदार टोपी देखकर मन-ही-मन यह अनुमान लगा रहा था कि हो न हो यह शख्स मुल्ला नसीरुद्दीन ही है। उसने मुल्ला नसीरुद्दीन के बारे में तरह-तरह के किस्से सुन रखे थे। दुकानदार मुल्ला को देखकर मन-ही- मन खुश हो रहा था कि चलो, आज मुल्ला नसीरुद्दीन को वह इतने करीब से देख तो पा रहा है।

दुकानदार ने मुल्ला के सामने कुर्ते के कपड़े के नायाब टुकड़ों का ढेर लगा दिया। उसमें से एक रेशमी कपड़ा मुल्ला को पसन्द आया। उसने दुकानदार से कहा- "मुझे कपड़े का यही टुकड़ा दे दो।"

अचानक मुल्ला को याद आया कि उसके पास अभी भी कई नए कुर्ते रखे हैं जिन्हें उसने एक दिन भी नहीं पहना है जबकि वेगम के पास तमाम कपड़े पुराने ही हैं इसलिए बेगम के लिए ही नए कपड़े लेने चाहिए। यह खयाल आते ही मुल्ला नसीरुद्दीन ने दुकानदार से कहा -“इस कुर्ते के कपड़े के बदले में मेरी बेगम के लिए कुर्ती और सलवार का जोड़ा दे सकते हो?"

"हाँ-हाँ, क्यों नहीं!" दुकानदार ने कहा और मुल्ला नसीरुद्दीन के सामने कुर्ती और सलवार के जोड़ों की झड़ी लगा दी।

मुल्ला नसीरुद्दीन ने एक जोड़ा पसन्द किया। दुकानदार यह जोड़ा जब नसीरुद्दीन को देने लगा तब नसीरुद्दीन ने दुकानदार से कहा- "माफ करना भाई! मुझे लगता है कि मेरी बेगम को कुर्ती सलवार से ज्यादा बुरकों की जरूरत है। ऐसा करो, यह कुर्ती सलवार रख लो और इसके बदले में इसी दाम का बुरका लपेट दो। “

दुकानदान ने बिना किसी प्रतिक्रिया के ऐसा ही किया और बुरका लपेटकर मुल्ला नसीरुद्दीन को दे दिया।

मुल्ला नसीरुद्दीन बुरका लेकर जब दुकान से जाने लगा तो दुकानदार ने पूछा- "हुजूर, पैसे?"

"पैसे? किस बात के पैसे?” मुल्ला नसीरुद्दीन ने संजीदगी से पूछा

। दुकानदार ने मुल्ला नसीरुद्दीन से कहा- "हुजूर! बुरके के पैसे!“

नसीरुद्दीन ने दुकानदार की तरफ अचरज से देखा और पूछा - "बुरका के पैसे क्यों भाई वह तो मैंने कुर्ती सलवार के बदले में लिया!”

मुल्ला का जवाब सुनकर दुकानदार अचकचा गया और बोला- “तो ठीक है हजूर! कुर्ती सलवार के पैसे!"

मुल्ला नसीरुद्दीन ने खा जानेवाली नजरों से दुकानदार को देखा और गरजते हुए कहा - "कुर्ती-सलवार के पैसे? अरे, वह तो मैंने कुर्ते के कपड़े के बदले में लिया था । ""

दुकानदार के तो पसीने छूटने लगे, फिर भी साहस करके बोला- “तो हुजूर, कुर्ते के कपड़े के पैसे ही दे दें। "

"अरे, कुर्ते के कपड़े के पैसे मुझसे कैसे लेगा? कुर्ते का कपड़ा मैंने लिया ही नहीं है । " मुल्ला नसीरुद्दीन इतना कहकर बुरका लेकर दुकान से चला गया और दुकानदार उसे जात हुआ देखता रह गया।

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