पति और पत्नी एक क्षण के लिए मिलते है, एक क्षण के लिए दोनों की आत्माएं एक हो जाती है। और उस घड़ी में जो उन्हें आनंद का अनुभव होता है। वही उनको बांधने वाला हो जाता है।
कभी आपने सोचा कि मां के पेट में बेटा नौ महीने तक रहता है। और मां के अस्तित्व से मिला रहता है। पति एक क्षण को मिलता है। बेटा नौ महीने इक्ट्ठा होता है। इसीलिए मां का बेटे से जो गहरा संबंध है, वह पति से कभी भी नहीं होता। हो भी नहीं सकता। पति एक क्षण के लिए मिलता है आस्तित्व के तल पर, फिर बिछुड़ जाता है। एक क्षण को करीब आते है ओर फिर कोसों का फासला शुरू हो जाता है।
लेकिन बेटा नौ महीने तक मां की सांस से सांस लेता है। मां के ह्रदय से धड़कता है। मां के खून, मां के प्राण से प्राण, उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है। वह मां का एक हिस्सा होता है। इसीलिए स्त्री मां बने बिना कभी भी पूरी तरह तृप्त नहीं हो पाती। कोई पति स्त्री को कभी तृप्त नहीं कर सकता। जो उसका बेटा उसे कर देता है।
स्त्री मां बने बिना पूरी नहीं हो पाती। उसके व्यक्तित्व का पूरा निखार और पूरा सौंदर्य उसके मां बनने पर प्रकट होता है। उससे उसके बेटे के आत्मिक संबंध बहुत गहरे होते है।
इसीलिए आप यह भी समझ लें कि जैसे ही स्त्री मां बन जाती है। उसकी काम में रूचि कम हो जाती है। फिर काम में उसे उतना रस नहीं मालूम पड़ता। उसने एक और गहरा रस ले लिया है। मातृत्व का। वह एक प्राण के साथ और नौ महीने तक इकट्ठी जी ली है। अब उसे काम में रस नहीं रह जाता है।
अकसर पति हैरान होते है। पिता बनने से पति में कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मां बनने से स्त्री में बुनियादी फर्क पड़ जाता है। जो नया व्यक्ति पैदा होता है उससे पिता का कोई गहरा संबंध नहीं है। पिता बिलकुल सामाजिक व्यवस्था है। पिता के बिना भी दुनिया चल सकती है, क्योंकि पिता का कोई गहरा संबंध नहीं है बेटे से। मां से उसके गहरे संबंध है, और मां तृप्त हो जाती है उसके बाद। और उसमें एक और ही तरह की आध्यात्मिक गरिमा प्रकट होती है। जो स्त्री मां नहीं बनी है, उसको देखे और जो मां बन गई है उसे देखें। उन दोनों की चमक और उर्जा और उनका व्यक्तित्व अलग मालूम होगा। मां की दीप्ति दिखाई पड़ेगी शांत, जैसे नदी जब मैदान में आ जाती है, तब शांत हो जाती है। जो अभी मां नहीं बनी है, उस स्त्री में एक दौड़ दिखेगी, जैसे पहाड़ पर नदी दौड़ती है। झरने की तरह टूटती है, चिल्लाती है; गड़गड़ाहट करती है; आवाज है; दौड़ है; मां बन कर वह एक दम से शांत हो जाती है।
स्त्री तृप्त होने लगती है मां बनकर क्यों? उसने एक आध्यात्मिक तल पर सेक्स का अनुभव कर लिया बच्चे के साथ। और इसीलिए मां और बेटे के पास एक आत्मीयता है। मां अपने प्राण दे सकती है बेटे के लिए, मां बेटे के प्राण लेने की कल्पना नहीं कर सकती। पति पत्नी के बीच चौबीस घंटे एक कलह चलती है। जिसे हम प्रेम करते है, उसी के साथ चौबीस घंटे कलह चलती है। लेकिन न पति समझता है, न पत्नी समझती है। कि कलह का क्या करण है। पति सोचता है कि शायद दूसरी स्त्री होती तो ठीक हो जाता। पत्नी सोचती है कि शायद दूसरा पुरूष होता तो ठीक हो जाता। यह जोड़ा गलत हो गया है।
दुनिया भर के जोड़ों का यही अनुभव है। और आपको अगर बदलने का मौका दे दिया जाये तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। दूसरी स्त्री दस पाँच दिन के बाद फिर पहली स्त्री साबित होती है। दूसरा पुरूष पन्द्रह दिन के बाद फिर पहला पुरूष साबित हो जाता है। इसके कारण गहरे है। इसके कारण इसी स्त्री और इसी पुरूष के संबंधित नहीं है। इसके कारण इस बात से संबंधित है कि जो पति और पत्नी का संबंध बीच की यात्रा का संबंध है। वह मुकाम नहीं है, वह अंत नहीं है। अंत तो वही होगा, जहां स्त्री मां बन जायेगी।
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