एक पौधा पूरी चेष्टा कर रहा है,नये बीज उत्पन्न करने की, एक पौधे के सारे प्राण,सारा रस, नये बीज इकट्ठे करने, जन्म लेनें की चेष्टा कर रहे है। एक पक्षी क्या कर रहा है। एक पशु क्या कर रहा है।
अगर हम सारी प्रकृति में खोजने जायें तो हम पायेंगे, सारी प्रकृति में एक ही क्रिया जोर से प्राणों को घेर कर चल रही है। और वह क्रिया है सतत-सृजन की क्रिया। वह क्रिया है जीवन को पुनर्जीवित, नये-नये रूपों में जीवन देने की क्रिया। फूल बीज को संभाल रहे है, फल बीज को संभाल रहे है। बीज क्या करेगा? बीज फिर पौधा बनेगा। फिर फल बनेगा।
अगर हम सारे जीवन को देखें, तो जीवन जन्म लेने की एक अनंत क्रिया का नाम है। जीवन एक ऊर्जा है, जो स्वयं को पैदा करने के लिए सतत संलग्न है और सतत चेष्टा शील है।
आदमी के भीतर भी वहीं है।मनुष्य के भीतर भी जीवन को जन्म देने की सतत चेष्टा चल रही है। आदमी के भीतर उस सतत सृजन की चेष्टा का नाम हमने सैक्स दे रखा है, काम दे रखा है। इस नाम के कारण उस ऊर्जा को एक गाली मिल गयी है। एक अपमान । इस नाम के कारण एक निंदा का भाव पैदा हो गया है।
मनुष्य को जमीन पर आये बहुत दिन नहीं हुए है, कुछ लाख वर्ष हुए। उसके पहले मनुष्य नहीं था। लेकिन पशु थे। पशु को आये हुए भी बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ। एक जमाना था कि पशु भी नहीं था। लेकिन पौधे थे। पौधों को भी आये बहुत समय नहीं हुआ। एक समय था जब पौधे भी नहीं थे। पहाड़ थे। नदियां थी, सागर थे। पत्थर थे। पत्थर, पहाड़ और नदियों की जो दुनिया थी वह किस बात के लिए पीड़ित थी?
वह पौधों को पैदा करना चाहती थी। पौधे धीरे-धीरे पैदा हुए। जीवन ने एक नया रूप लिया। पृथ्वी हरियाली से भर गयी। फूल खिल गये। लेकिन पौधे भी अपने से तृप्त नहीं थे। वे सतत जीवन को जन्म देते है। उसकी भी कोई चेष्टा चल रही थी। वे पशुओं को पक्षियों को जन्म देना चाहते है। पशु, पक्षी पैदा हुए।
हजारों लाखों बरसों तक पशु, पक्षियों से भरा था यह जगत, लेकिन मनुष्य का कोई पता नहीं था। पशुओं और पक्षियों के प्राणों के भीतर निरंतर मनुष्य भी निवास कर रहा था। पैदा होने की चेष्टा कर रहा था। फिर मनुष्य पैदा हुआ।
मनुष्य भी निरंतर नये जीवन को पैदा करने के लिए आतुर है। उस क्रिया को हम सैक्स कहते है, हम उस को काम वासना कहते है। लेकिन उस वासना का मूल अर्थ क्या है? मूल अर्थ इतना है कि मनुष्य अपने पर समाप्त नहीं होना चाहता, आगे भी जीवन को पैदा करना चाहता है। लेकिन क्यों? क्या मनुष्य के प्राणों में, मनुष्य के ऊपर किसी महा मानव को पैदा करने की कोई चेष्टा नहीं चल रही है?
निश्चित ही चल रही है। निश्चित ही मनुष्य के प्राण इस चेष्टा में संलग्न है कि मनुष्य से श्रेष्ठतर जीवन जन्म पा सके। मनुष्य से श्रेष्ठतर प्राणी आविर्भूत हो सके। सारे मनुष्य के प्राणों में एक कल्पना, एक सपने की तरह बैठी रही कि मनुष्य से बड़ा प्राणी पैदा कैसे हो सके। लेकिन मनुष्य से बड़ा प्राणी पैदा कैसे होगा?
हमने तो हजारों वर्षों से इस के पैदा होने की कामना को ही निंदित कर रखा है। हमने तो सैक्स को सिवाय गाली के आज तक दूसरा कोई सम्मान नहीं दिया। हम तो बात करने मे भयभीत होते है। हमने तो सैक्स को इस भांति छिपा कर रख दिया है, जैसे वह है ही नहीं। जैसे उसका जीवन में कोई स्थान नहीं है। जब कि सच्चाई यह है कि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण मनुष्य के जीवन में ओर कुछ भी नहीं है। लेकिन उसको छिपाया है, दबाया है।
दबाने और छिपाने से मनुष्य सैक्स से मुक्त नहीं हो गया, बल्कि और भी बुरी तरह से सैक्स से ग्रसित हो गया। दमन उलटे परिणाम लाता है। क्या कभी आपने वह सोचा है कि आप चित को जहां से बचाना चाहते है, चित वहीं आकर्षित हो जाता है। जिन लोगो ने मनुष्य को सैक्स के विरोध में समझाया, उन लोगों ने ही मनुष्य को कामुक बनाने का जिम्मा भी अपने ऊपर ले लिया है।मनुष्य की अति कामुकता गलत शिक्षाओं का परिणाम है।
आज भी हम भयभीत होते है कि सैक्स की बात न की जाये। क्यों भयभीत होते है? भयभीत इसलिए होते है कि हमें डर है कि सैक्स के संबंध में बात करने से लोग और कामुक हो जायेंगे। यह बिलकुल ही गलत भ्रम है। यह शत-प्रतिशत गलत है। पृथ्वी उसी दिन सैक्स से मुक्त होगी, जब हम सैक्स के संबंध, में सामान्य, स्वस्थ बातचीत करने में समर्थ हो जायेंगे। जब हम सैक्स को पूरी तरह से समझ सकेंगे, तो ही हम सैक्स को अपने जीवन से दूर कर सकेंगे।
जगत में ब्रह्मचर्य का जन्म हो सकता है। मनुष्य सैक्स के ऊपर उठ सकता है। लेकिन सैक्स को समझकर, सैक्स को पूरी तरह पहचान कर, उस की ऊर्जा के पूरे अर्थ, मार्ग, व्यवस्था को जानकर, उस से मुक्त हो सकता है।
वह सोचता है, आँख बंद कर लो सैक्स के प्रति तो सैक्स मिट जायेगा। अगर आँख बंद कर लेने से चीजें मिटती तो बहुत आसान थी जिंदगी। बहुत आसान होती दुनिया। आँख बंद करने से कुछ मिटता नहीं है। बल्कि जिस चीज के संबंध में हम आँख बंद करते है। हम प्रमाण देते है कि हम उस से भयभीत है। हम डर गये है। वह हमसे ज्यादा मजबूत है। उससे हम जीत नहीं सकते है, इसलिए आँख बंद करते है। आँख बंद करना कमजोरी का लक्षण है।आदमी बातचीत करेगा आत्मा की, परमात्मा की, स्वर्ग की, मोक्ष की। परन्तु सैक्स की कभी कोई बात नहीं करेगा। और उसका सारा व्यक्तित्व चारों तरफ से सैक्स से भरा हुआ है।
ब्रह्मचर्य की बात हम करते है। लेकिन कभी इस बात की चेष्टा नहीं करते कि पहले मनुष्य की काम की ऊर्जा को समझा जाये, फिर उसे रूपान्तरित करने के प्रयोग भी किये जा सकते है। बिना उस ऊर्जा को समझे दमन की, संयम की सारी शिक्षा, मनुष्य को पागल, विक्षिप्त और रूग्ण करेगी। इस संबंध में हमें कोई भी ध्यान नहीं है। यह मनुष्य इतना रूग्ण, इतना दीन-हीन कभी भी न था । इतना दुःखी भी न था।
अगर हम आदमी की तरफ देखेगें तो दिखाई पड़ेगा,आदमी के भीतर बहुत जहर इकट्ठा हो गया है। और उस जहर के इकट्ठे हो जाने का कारण यह है कि हमने उसकी प्रकृति को स्वीकार नहीं किया है। उसकी प्रकृति को दबाने और जबरदस्ती तोड़ने की चेष्टा की है। मनुष्य के भीतर जो शक्ति है। उस शक्ति को रूपांतरित करने का, ऊंचा ले जाने का, आकाशगामी बनाने का हमने कोई प्रयास नहीं किया। उस शक्ति के ऊपर हम जबरदस्ती कब्जा करके बैठ गये है। वह शक्ति नीचे से ज्वालामुखी की तरह उबल रही है। और धक्के दे रही है। वह आदमी को किसी भी क्षण उलटा देने की चेष्टा कर रही है।
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