मंगलवार, 1 अगस्त 2023

प्रेम

 जीना और जानना तो आसान है, लेकिन कहना बहुत कठिन है। आदमी के जीवन में जो भी श्रेष्‍ठ है, सुन्‍दर है, और सत्‍य है; उसे जिया जा सकता है, जाना जा सकता है। हुआ जा सकता है। लेकिन कहना बहुत कठिन बहुत मुश्‍किल है। और दुर्घटना और दुर्भाग्‍य यह है कि जिसमें जिया जाना चाहिए, जिसमें हुआ जाना चाहिए, उसके संबंध में मनुष्‍य जाति पाँच छह हजार साल से केवल बातें कर रही है। प्रेम की बात चल रही है, प्रेम के गीत गाये जा रहे है। प्रेम के भजन गाये जा रहे है। और प्रेम का मनुष्‍य के जीवन में कोई स्‍थान नहीं है। अगर आदमी के भीतर खोजने जायें तो प्रेम से ज्‍यादा असत्‍य शब्‍द दूसरा नहीं मिलेगा। और जिन लोगों ने प्रेम को असत्‍य सिद्ध कर दिया है और जिन्‍होंने प्रेम की समस्‍त धाराओं को अवरूद्ध कर दिया है.....ओर बड़ा दुर्भाग्‍य यह है कि लोग समझते है कि वे ही प्रेम के जन्‍मदाता है।

      मनुष्‍य के जीवन में प्रेम की धारा प्रकट नहीं हो पायी। और नहीं हो पायी तो हम दोष देते है कि मनुष्‍य ही बुरा है, इसलिए प्रेम  प्रकट नहीं हो पाया। हम दोष देते है कि यह मन ही जहर है, इसलिए प्रकट नहीं हो पायी। मन जहर नहीं है। और जो लोग मन को जहर कहते रहे है, उन्‍होंने ही प्रेम को जहरीला कर दिया,प्रेम को प्रकट नहीं होने दिया है। मन जहर हो कैसे सकता है? इस जगत में कुछ भी जहर नहीं है। परमात्‍मा के इस सारे उपक्रम में कुछ भी विष नहीं है, सब अमृत है। लेकिन आदमी ने सारे अमृत को जहर कर लिया है और इसे जहर करने में शिक्षक, साधु, संत और तथाकथित धार्मिक लोगों का सबसे ज्‍यादा हाथ है। इस बात को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। क्‍योंकि अगर यह बात दिखाई न पड़े तो मनुष्‍य के जीवन में कभी भी प्रेम...भविष्‍य में भी नहीं हो सकेगा। क्‍योंकि जिन कारणों से प्रेम नहीं पैदा हो सका है, उन्‍ही कारणों को हम प्रेम प्रकट करने के आधार ओर कारण बना रहे है। 

हालतें ऐसी है कि गलत सिद्धांतों को अगर हजार वर्षों तक दोहराया जाये तो फिर यह भूल ही जाते है कि सिद्धांत गलत है। और दिखाई पड़ने लगता है कि आदमी गलत है। क्‍योंकि वह उन सिद्धांतों को पूरा नहीं कर पा रहा है। प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि कहीं खोजने जाना है उसे। वह प्राणों की प्‍यास है प्रत्‍येक के भीतर, वह प्राणों की सुगंध है प्रत्‍येक के भीतर। लेकिन चारों तरफ परकोटा है उसके और वह प्रकट नहीं हो पाता। सब तरफ पत्‍थर की दीवाल है और वह झरने नहीं फूट पाते। तो प्रेम की खोज और प्रेम की साधना कोई पाजीटिव, कोई विधायक खोज और साधना नहीं है कि हम जायें और कही प्रेम सीख लें। मनुष्‍य के भीतर प्रेम छिपा है, सिर्फ उघाड़ने की बात है। उसे पैदा करने का सवाल नहीं है। अनावृत करने की बात है। कुछ है, जो हमने ऊपर ओढा हुआ है। जो उसे प्रकट नहीं होने देता ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ फर्ज थे मेरे, जिन्हें यूं निभाता रहा।  खुद को भुलाकर, हर दर्द छुपाता रहा।। आंसुओं की बूंदें, दिल में कहीं दबी रहीं।  दुनियां के सामने, व...