गुरुवार, 3 अगस्त 2023

स्त्री पुरुष

आप किसी आदमी का नाम भूल सकते है, जाति भूल सकते है। चेहरा भूल सकते है? अगर मैं आप से मिलूं या मुझे आप मिलें तो मैं सब भूल सकता हूं कि आपका नाम क्‍या था,आपका चेहरा क्‍या था, आपकी जाति क्‍या थी, उम्र क्‍या थी आप किस पद पर थे,सब भूल सकते है।  कभी आप भूल सकते है इस बात को कि जिससे आप मिले थे, वह पुरूष है या स्‍त्री? नहीं यह बात आप कभी नहीं भूल सके होगें। जब सारी बातें भूल जाती है तो यह क्‍यों नहीं भूलता?

हमारे भीतर मन में कहीं सैक्‍स बहुत अतिशय हो बैठा है। वह चौबीस घंटे उबल रहा है। इसलिए सब बातें भूल जाती है। लेकिन यह बात नहीं भूलती है। हम सतत सचेष्‍ट है। यह पृथ्‍वी तब तक स्‍वस्‍थ नहीं हो सकेगी, जब तक आदमी और स्‍त्रियों के बीच यह दीवार और यह फासला खड़ा हुआ है। यह पृथ्‍वी तब तक कभी भी शांत नहीं हो सकेगी,जब तक भीतर उबलती हुई आग है और उसके ऊपर हम जबरदस्‍ती बैठे हुए है। उस आग को रोज दबाना पड़ता है। उस आग को प्रतिक्षण दबाये रखना पड़ता है। वह आग हमको भी जला डालती है। सारा जीवन राख कर देती है। लेकिन फिर भी हम विचार करने को राज़ी नहीं होते। 

अगर हम इस आग को समझ लें, तो यह आग दुश्‍मन नहीं दोस्‍त है। यह हमें जलायेगी नहीं, हमारी रोटियाँ  सेक सकती है।सर्दियों में हमारे घर को गर्म भी कर सकती है। और हमारी जिंदगी में सहयोगी और मित्र भी हो सकती है। 

मनुष्‍य के भीतर बिजली से भी अधिक ताकत है सैक्‍स की। मनुष्‍य के भीतर अणु की शक्‍ति से भी बड़ी शक्‍ति है सैक्‍स की। क्‍या आपने सोचा कि मनुष्‍य के काम की ऊर्जा का एक अणु एक नये व्‍यक्‍ति को जन्‍म देता है।  एक छोटा सा अणु एक मनुष्‍य की काम ऊर्जा का, एक महामानव को छिपाये हुए है। लेकिन हम सैक्‍स को समझने को राज़ी नहीं है। लेकिन हम सैक्‍स की ऊर्जा के संबंध में बात करने की हिम्‍मत जुटाने को राज़ी नहीं है। कौन सा भय हमें पकड़े हुए है कि जिससे सारे जीवन का जन्‍म होता है। उस शक्‍ति को हम समझना नहीं चाहते?कौन सा डर है कौन सी घबराहट है? जो लोग सैक्‍स के संबंध में बात करने की मनाही करते है, वे ही लोग पृथ्‍वी को सैक्‍स के गड्ढे में डाले हुए है।  जो लोग घबराते है और जो समझते है कि धर्म का सैक्‍स से कोई संबंध नहीं, वह खुद तो पागल है ही, वे सारी पृथ्‍वी को पागल बनाने में सहयोग कर रहे है। धर्म का संबंध मनुष्‍य की शक्‍ति को रूपांतरित करने से है। धर्म चाहता है कि मनुष्‍य के व्‍यक्‍तित्‍व में जो छिपा है, वह श्रेष्‍ठतम रूप से अभिव्‍यक्‍त हो जाये। धर्म चाहता है कि मनुष्‍य का जीवन निम्न से उच्‍च की एक यात्रा बने। पदार्थ से परमात्‍मा तक पहुंच जाये। हम जहां जाना चाहते है, उस स्‍थान को समझना उतना उपयोगी नहीं है। जितना उस स्‍थान को समझना उपयोगी है, जहां से यह यात्रा शुरू करनी है।

 सैक्‍स हमारे जीवन का तथ्‍य है। इस तथ्‍य को समझ कर हम परमात्‍मा की यात्रा कर सकते है। लेकिन इसे बिना समझे एक इंच आगे नहीं जा सकते।  हम जीवन की वास्‍तविकता को समझने की भी तैयारी नहीं दिखाते। तो फिर हम ओर क्‍या कर सकते है। और आगे क्‍या हो सकता है। फिर ईश्‍वर की परमात्‍मा की सारी बातें सान्‍त्‍वना ही, कोरी सान्‍त्‍वना की बातें है और झूठ है। क्‍योंकि जीवन के परम सत्‍य चाहे कितने ही नग्‍न क्‍यों न हो, उन्‍हें जानना ही पड़ेगा। समझना ही पड़ेगा।

 मनुष्‍य का जन्‍म सैक्‍स से होता है। मनुष्‍य का सारा जीवन व्‍यक्‍तित्‍व सैक्‍स के अणुओं से बना हुआ है। मनुष्‍य का सारा प्राण सैक्‍स की उर्जा से भरा हुआ है। जीवन की उर्जा अर्थात काम की उर्जा। यह जो काम की ऊर्जा है, वह क्‍या है? यह क्‍यों हमारे जीवन को इतने जोर से आंदोलित करती है? क्‍यों हमारे जीवन को इतना प्रभावित करती है? क्‍यों हम घूम घूम कर सैक्‍स के आसपास, उसके ईद-गिर्द ही चक्‍कर लगाते है। और समाप्‍त हो जाते है। कौन सा आकर्षण है इसका? 

हजारों साल से ऋषि,मुनि कह रहे है कि मुख मोड़ लो सैक्स से। दूर हट जाओ इससे। सैक्‍स की कल्‍पना और काम वासना छोड़ दो। चित से निकाल डालों ये सारे सपने।लेकिन आदमी के चित से यह सपने निकले ही नहीं। कभी निकल भी नहीं सकते है इस भांति।   

क्‍योंकि हमने उस समस्‍या को समझने की भी चेष्‍टा नहीं की है। हमने उस ऊर्जा के नियम भी जानने नहीं चाहे है। हमने कभी यह भी नहीं पूछा कि मनुष्‍य का इतना आकर्षण क्‍यों है। कौन सिखाता है, सैक्‍स आपको। सारी दूनिया तो सीखने के विरोध में सारे उपाय करती है। मॉं-बाप चेष्‍टा करते है कि बच्‍चे को पता न चल जाये। शिक्षक चेष्‍टा करता है। धर्म शास्‍त्र चेष्‍टा करते है कहीं स्‍कूल नहीं, कहीं कोई युनिवर्सिटी नहीं। लेकिन आदमी अचानक एक दिन पाता है कि सारे प्राण काम की आतुरता से भर गये है। 

सैक्‍स का आकर्षण इतना प्रबल है, इतना नैसर्गिक केंद्र क्‍या है, जरूर इसमें कोई रहस्‍य है और इसे समझना जरूरी है। तो शायद हम इससे मुक्‍त भी हो सकते है।

 मनुष्‍य के प्राणों में जो काम वासना है, वह वस्‍तुत: काम की वासना नहीं है। हर आदमी काम के कृत्‍य के बाद पछताता है, दुःखी होता है पीडित होता है। सोचता है कि इससे मुक्‍त हो जाऊँ। लेकिन एक अनुभव काम का, संभोग का, उसे गहरे ले जाता है। और उसकी गहराई में दो घटनायें घटती है, एक संभोग के अनुभव में अहंकार विसर्जित हो जाता है।  एक क्षण के लिए अहंकार नहीं रह जाता, एक क्षण को यह याद भी नहीं रह जाता कि मैं हूं।

धर्म में श्रेष्‍ठतम अनुभव में ‘मैं’ बिलकुल मिट जाता है। अहंकार बिलकुल शून्‍य हो जाता है। सेक्‍स के अनुभव में क्षण भर को अहंकार मिटता है। लगता है कि मै हूं या नहीं। एक क्षण को विलीन हो जाता है मेरा पन का भाव।

समाधि का जो अनुभव है वहां  समय नहीं रह जाता है। वह कालातीत है। समय बिलकुल विलीन हो जाता है। न कोई अतीत है, न कोई भविष्‍य,शुद्ध वर्तमान रह जाता है। सेक्‍स के अनुभव में यह दूसरी घटना घटती है। न कोई अतीत रह जाता है , न कोई भविष्‍य, एक क्षण के लिए समय विलीन हो जाता है।

दो तत्‍व है, जिसकी वजह से आदमी सैक्‍स की तरफ आतुर होता है और पागल होता है। वह आतुरता स्‍त्री के शरीर के लिए नहीं है। पुरूष के शरीर के लिए नहीं है। वह आतुरता शरीर के लिए बिलकुल भी नहीं है। वह आतुरता किसी और ही बात के लिए है। वह आतुरता है,अहंकार शून्‍यता का अनुभव, समय शून्‍यता का अनुभव।

 समय-शून्‍य और अहंकार शून्‍य होने के लिए आतुरता क्‍यों है? क्‍योंकि जैसे ही अहंकार मिटता है, आत्‍मा की झलक उपलब्‍ध होती है। जैसे ही समय मिटता है, परमात्‍मा की झलक मिलनी शुरू हो जाती है।

 एक क्षण की होती है यह घटना, लेकिन उस एक क्षण के लिए मनुष्‍य कितनी ही ऊर्जा, कितनी ही शक्‍ति खोने को तैयार है। शक्‍ति खोने के कारण पछतावा है बाद में कि शक्‍ति क्षीण हुई शक्‍ति का अपव्‍यय हुआ। और उसे पता है कि शक्‍ति जितनी क्षीण होती है मौत उतनी करीब आती है।

मनुष्‍य को यह अनुभव में आ गया बहुत पहले कि सैक्‍स का अनुभव शक्‍ति को क्षीण करता है। जीवन ऊर्जा कम होती है। और धीरे-धीरे मौत करीब आती है। पछतावा है आदमी के प्राणों में, पछताने के बाद फिर पाता है घड़ी भर बाद कि वही आतुरता है। निश्‍चित ही इस आतुरता में कुछ और अर्थ है, जो समझ लेना जरूरी है।

 सैक्‍स की आतुरता में आत्‍मिक अनुभव है। उस अनुभव को अगर हम देख पाये तो हम सैक्‍स के ऊपर उठ सकते है। अगर उस अनुभव को हम न देख पाये तो हम सैक्‍स में ही जियेंगे और मर जायेंगे। 

संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है। और संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे। जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के मिलना शुरू हो जायेगी। उसी दिन संभोग से आप मुक्‍त हो जायेंगे, सैक्‍स से मुक्‍त हो जायेंगे।

सैक्‍स जिस अनुभूति को लाता है। अगर वह अनुभूति किन्‍हीं और मार्गों से उपलब्‍ध हो सके, तो आदमी का चित सैक्‍स की तरफ बढ़ना, अपने आप बंद हो जाता है। उसका चित एक नयी दिशा लेनी शुरू कर देता है।

       

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