भगवान् विष्णु के ये सौ दिव्य नाम निश्चय ही पापों का नाश करने वाले हैं। व्यासजी ने सर्वप्रथम इनका उपदेश दिया है। इस के पाठ से समस्त पापका नाश हो जाता है। जो प्रातः काल उठकर इसका पाठ करेगा, वह मनुष्य भगवान् विष्णु का भक्त हो जायगा। उसके हृदयके सारे पाप धुल जायँगे और वह शुद्धचित्त होकर भगवान् विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेगा। इसके पाठ से सहस्रों चान्द्रायणव्रत, सैकड़ों कन्यादानजनित पुण्य तथा सहस्रों लक्ष गोदानों का फल पाकर मनुष्य मोक्षका भागी होता है; उसे दस हजार अश्वमेध यज्ञोंका पुण्य फल प्राप्त होता है
1 - ॐ (सच्चिदानन्दस्वरूप) वासुदेव,
2- हृषीकेश,,
3- वामन,
4- जलशायी,
5- जनार्दन, 6 - हरि, 7 - कृष्ण, 8- श्रीवत्स, 9- गरुडध्वज,
10- वाराह, 11 - पुण्डरीकाक्ष, 12 - नृसिंह, 13 - नरकान्तक, 14- अव्यक्त, 15 - शाश्वत, 16 - विष्णु, 17 - अनन्त,
18- अज, 19- अव्यय, 20- नारायण, 21 - गदाध्यक्ष,
22- गोविन्द, 23- कीर्तिभाजन, 24 - गोवर्धनोद्धर,
25- देव, 26- भूधर, 27- -भुवनेश्वर, 28 - वेत्ता (ज्ञानी),
29 - यज्ञपुरुष, 30 - यज्ञेश, 31 - यज्ञवाहक, 32 - चक्रपाणि, 33-गदापाणि, 34-शङ्खपाणि, 35 - नरोत्तम, 36 - वैकुण्ठ, 37- दुष्टदमन, 38- भूगर्भ, 39 - पीतवासा, 40 - त्रिविक्रम,
41 - त्रिकालज्ञ, 42 - त्रिमूर्ति, 43- नन्दकेश्वर, 44 - राम (परशुराम), 45 - राम (रामचन्द्र ), 46 - हयग्रीव, 47 - भीम, 48 - रौद्र, 49 - भवोद्भव, 50- - श्रीपति, 51 - श्रीधर, 52 - श्रीश, 53 - मङ्गल, 54 - मङ्गलायुध, 55 - दामोदर, 56 - दमोपेत, 57 - केशव, 58 - केशिसूदन, 59 - वरेण्य, 60 - वरद, 61 - विष्णु,
62 - आनन्द
63 - वसुदेवज, 64 - हिरण्यरेता, 65 - दीप्त, 66 - पुराण, 67 - पुरुषोत्तम, 68 - सकल, 69 - निष्कल, 70 - शुद्ध, 71 - निर्गुण, 72 - गुणशाश्वत, 73- हिरण्यतनुसंकाश, 74- सूर्यायुतसमप्रभ, 75 - मेघश्याम, 76 -- - चतुर्बाहु, 77-कुशल, 78-कमलेक्षण, 79 - ज्योतीरूप, 80-अरूप, 81-स्वरूप, 82-रूपसंस्थित, 83 - सर्वज्ञ, 84 - सर्वरूपस्थ, 85 - सर्वेश, 86- सर्वतोमुख, 87 - ज्ञान, 88 - कूटस्थ, 89- अचल, 90 - ज्ञानद, 91- परम, 92- प्रभु, 93-योगीश, 94- योगनिष्णात, 95 - योगी, 96 - योगरूपी, 97 - ईश्वर, 98 - सर्वभूतेश्वर, 99-भूतमय और 100-प्रभु
की मैं वन्दना करता हूँ ॥
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