सोमवार, 16 नवंबर 2020

गीता दर्शन अध्याय 17 भाग 5

 भोजन की कीमिया


आयु:सत्त्वब्रलारौग्यसुख्तीतिविवर्थना:।

रस्‍या: स्निग्‍धा: स्थिरा हद्या आहारा: सात्‍विकप्रिया:।। 8।। कट्वब्ललवणात्युष्यातीक्श्रणीरूक्षधिदाहिन:।

आहारा राजसस्येष्टा दु:खशस्कोमयप्रदा:।। 9।।

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् ।

उच्‍छिष्‍टमपि चामेध्यं भोजन तामसप्रियम्।। 10।।


आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढाने वाले एवं रसयुक्‍त, चिकने स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय, ऐसे आहार सात्‍विक पुरूष को प्रिय होते हैं। और कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त और अति गरम तथा तीक्ष्‍ण, रूखे और दाहकारक एवं दुख, चिंता और रोगों को उत्पन्‍न करने वाले आहार राजस पुरूष को प्रिय होते हैं।

और जो भोजन अधपका, रसरहित और दुर्गंधयुक्त एवं बासा और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र है, वह भोजन तामस पुरूष को प्रिय होता है।


आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, चिकने, स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय, ऐसे आहार सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं।

कड़वे, खट्टे, लवणयुक्त, अति गरम तथा तीक्ष्ण, रूखे, दाहकारक, दुख, चिंता और रोगों को उत्पन्न करने वाले आहार राजस पुरुष को प्रिय होते हैं।

और जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गंधयुक्त, बासा और उच्छिष्ट है तथा जो अपवित्र भी, वह तामस पुरुष को प्रिय होता है।

कृष्ण जीवन को तीन गुणों के अनुसार सभी दिशाओं में बांट रहे हैं। उस विभाजन का बोध साधक के लिए बड़ा उपयोगी है। उससे अपनी परीक्षा करने में और अपने को कसौटी पर कसने में सुविधा होगी, एक मापदंड मिल जाएगा।

कैसा भोजन तुम्हें प्रिय है? क्योंकि जो भी तुम्हें प्रिय है, वह अकारण प्रिय नहीं हो सकता। वह तुम्हें प्रिय है, तुम्हारे संबंध में खबर देता है। तुम जो भोजन करते हो, वह खबर देता है कि तुम कौन हो। तुम कैसे उठते हो, कैसे बैठते हो, कैसे चलते हो, उससे तुम्हारे भीतर की चेतना की खबर मिलती है। तुम कैसा व्यवहार करते हो, कैसे सोते हो, उस सबसे तुम्हारे संबंध में संकेत मिलते रहते हैं।

एक सूक्ष्म शास्त्र विकसित हुआ है पश्चिम में, मनुष्य के व्यवहार को ठीक से जांच लेकर मनुष्य के भीतरी अंतःकरण के संबंध में सभी कुछ पता चल जाता है। और अनजाने भी बहुत बार तुम ऐसे काम करते हो, जिनका तुम्हें भी खयाल नहीं है।

स्त्रियां पुरुषों के शरीर को देखने में उत्सुक नहीं होती हैं। वह स्त्रियों का गुण नहीं है। स्त्रियों का रस अपने को दिखाने में है, देखने में नहीं है। पुरुषों का रस देखने में है, दिखाने में नहीं है। यह बिलकुल ठीक है, तभी तो दोनों का मेल बैठ जाता है। आधी—आधी बीमारियां हैं उनके पास, दोनों मिलकर पूर्ण बीमारी बन जाते हैं।





मनोवैज्ञानिक कहते हैं, स्त्रियां प्रदर्शनवादी हैं। पुरुष दर्शक हैं, वे देखने में रस लेते हैं। इसलिए स्त्री दुबारा जब देखती है, तो इसका मतलब है कि वह इंगित कर रही है, संकेत दे रही है कि वह तैयार है, वह उत्सुक है, वह आगे बढ़ने को राजी है। तुम अगर तीन सेकेंड तक, मनोवैज्ञानिक कहते हैं, किसी स्त्री की तरफ देखो, तो वह नाराज नहीं होगी। तीन सेकेंड! इससे ज्यादा देखा, तो बस वह नाराज हो जाएगी। तीन सेकेंड तक सीमा है, उस समय तक औपचारिक देखना चलता है। लेकिन तीन सेकेंड से ज्यादा देखा कि तुमने उन्हें घूरना शुरू कर दिया, लुच्चापन शुरू हो गया।

लुच्चे का मतलब होता है, घूरकर देखने वाला। लुच्चा शब्द बनता है लोचन से, आंख से। जो आंख गड़ाकर देखता है, वह लुच्चा। लुच्चे का और कोई बुरा मतलब नहीं होता। जरा आंख उनकी संयम में नहीं है, बस, इतना ही और कुछ नहीं।

 लुच्चे शब्द का वही अर्थ होता है, जो आलोचक का होता है। आलोचक भी घूरकर देखता है चीजों को। कवि कविता लिखता है, आलोचक कविता को घूरकर देखता है। वह लुच्चापन कर रहा है कविता के साथ।

छोटी—छोटी बातें तुम्हारे भीतर की खबर देती हैं। कृष्ण कहते हैं, भोजन तो छोटी बात नहीं, बहुत बड़ी बात है। तुम कैसा भोजन पसंद करते हो?

जो राजस व्यक्ति है, वह ऐसा भोजन पसंद करेगा, जिससे जीवन में उत्तेजना आए त्वरा पैदा हो, दौड़ पैदा हो, धक्का लगे।

इसलिए उसका भोजन उत्तेजक आहार होगा। जो तामसी वृत्ति का व्यक्ति है, वह ऐसा भोजन करेगा, जिससे नींद आए, उत्तेजना न पैदा हों—बासा, उच्छिष्ट, ठंडा—जिससे कोई उत्तेजना पैदा न हो, सिर्फ बोझ पैदा हो और वह सो जाए।

तमसपूर्ण व्यक्ति हमेशा नींद को खोज रहा है। उसे अगर लेटने का मौका मिले, तो वह बैठेगा नहीं। अगर उसे बैठने का मौका मिले, तो वह खड़ा न होगा। अगर खड़े होने का मौका मिले, तो वह चलेगा नहीं। अगर चलने का मौका मिले, तो वह दौड़ेगा नहीं। वह हमेशा उसको चुनेगा, जिसमें ज्यादा नींद की सुविधा हो, तंद्रा! और तंद्रा के लिए बासा भोजन बहुत उपयोगी है।

क्यों बासा भोजन तंद्रा के लिए उपयोगी है? क्योंकि जितना गरम भोजन होता है, उतने जल्दी पच जाता है। जितना बासा भोजन होता है, उतना पचने में देर लेता है। क्योंकि पचने के लिए अग्नि चाहिए। अगर भोजन गरम हो, तत्‍क्षण तैयार किया गया हो, तो भोजन की गरमी और पेट की गरमी मिलकर उसे जल्दी पचा देती है। तो जठराग्नि कहते हैं इसलिए हम पेट की अग्नि को।

लेकिन अगर भोजन बासा हो, ठंडा हो, बहुत देर का रखा हुआ हो, तो पेट की अकेली गरमी के आधार पर ही उसे पचना होता है। तो जो भोजन छ: घंटे में पच जाता, वह बारह घंटे में पचेगा। और पचने में जितनी देर लगती है, उतनी ज्यादा देर तक नींद आएगी। क्योंकि जब तक भोजन न पच जाए, तब तक मस्तिष्क को ऊर्जा नहीं मिलती। क्योंकि मस्तिष्क जो है, वह लक्जरी है। इसे थोड़ा समझ लो।

जीवन में एक इकॉनामिक्स है शरीर की, एक अर्थशास्त्र है। वहां बुनियादी जरूरतें हैं, वे पहले पूरी की जाती हैं। फिर उनके ऊपर कम बुनियादी जरूरतें हैं, वे पूरी की जाती हैं। फिर उसके बाद सबसे गैर—बुनियादी जरूरतें हैं, वे पूरी की जाती हैं।

जैसे घर में पहले तो तुम भोजन की फिक्र करोगे। भूखे रहकर तुम रेडियो नहीं खरीद लाओगे, कि भूखे तो मर रहे हैं और टेलीविजन खरीद लाए! कौन देखेगा टेलीविजन? भूखे भजन न होई गुपाला! भजन भी नहीं होता भूखे को, तो टेलीविजन कौन देखेगा! टेलीविजन बिलकुल नहीं दिखाई पड़ेगा। रोटियां तैरती हुई दिखाई पड़ेगी टेलीविजन पर। कुछ नहीं दिखाई पड़ेगा। भूखा आदमी पहले रोटी चाहता है, छाया चाहता है।

जब जरूरतें पूरी हो जाती हैं शरीर की, तब मन की जरूरतें शुरू होती हैं। तब वह उपन्यास भी पढ़ता है, तब वह गीता भी पढ़ता है।

तब वह भजन भी सुनता है, फिल्म भी देखता है। फिर जैसे—जैसे जरूरतें उसकी ये भी पूरी हो जाती हैं मन की, तब आत्मा की जरूरतें पैदा होती हैं। तब वह ध्यान की सोचता है, तब वह समाधि का विचार करता है।

तो तीन तल हैं शरीर, मन और आत्मा। शरीर पहले है, क्योंकि उसके बिना न तो मन हो सकता, न आत्मा टिक सकती यहां। वह आधार है, वह जड़ है। अगर किसी वृक्ष को ऐसा खतरा आ जाए कि फूल मरें या जडें मरें, तो फूलों को वृक्ष पहले छोड़ देगा। क्योंकि वे तो विलास हैं, उनके बिना जीया जा सकता है। और अगर जीना रहा, तो वे फिर कभी आ सकते हैं। लेकिन जड़ें नहीं छोड़ी जा सकतीं। क्योंकि जड़ें तो जीवन हैं। जड़ें गईं, तो फूल कभी न आ सकेंगे। जड़ें रहीं, तो फूल कभी फिर आ सकते हैं।

अगर वृक्ष से पूछा जाए कि पीड़ को काट दें या जड़ों को? तो वृक्ष कहेगा, पीड़ काट दो—अगर यही विकल्प है। क्योंकि पीड़ फिर पैदा हो सकती है, शाखाएं फिर निकल आएंगी; जड़ें होनी चाहिए। ऐसा ही अर्थशास्त्र शरीर के भीतर है। जब तुम भोजन करते हो, तो सारी शक्ति भोजन को पचाने में लगती है। इसलिए भोजन के बाद नींद मालूम होती है, क्योंकि मस्तिष्क को जो शक्ति का कोटा मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता।

मस्तिष्क लक्जरी है, उसके बिना जीया जा सकता है। पशु—पक्षी जी रहे हैं, पौधे जी रहे हैं; लाखों—करोडों जीव हैं, जो बिना बुद्धि के जी रहे हैं। मनुष्य हैं, वे भी बिना बुद्धि के जी रहे हैं। बुद्धि कोई अनिवार्य चीज नहीं है। हां, जब शरीर की जरूरतें पूरी हो जाएं और ऊर्जा बचे, तो फिर बुद्धि को मिलती है। और जब बुद्धि भी भर जाए और ऊर्जा बचे, तब आत्मा को मिलती है।

तो जो आदमी तामसी है, वह इस तरह का भोजन करता है कि मस्तिष्क तक ऊर्जा कभी पहुंचती ही नहीं। इसलिए तामसी व्यक्ति बुद्धिहीन हो जाता है। जिसको बुद्धिमान होना हो, उसे तमस छोड़ना पड़ेगा।

बस वह शरीर में ही जीने लगता है। तामसी व्यक्ति यानी सिर्फ शरीर। उसमें नाम—मात्र को बुद्धि है। इतनी ही बुद्धि है, जिससे वह भोजन जुटा ले और शरीर का काम चला दे, बस। और आत्मा की तो उसे कोई खबर ही नहीं है। आत्मा का उसे सपना भी नहीं आता। आत्मा की बातें लोगों को करते देखकर वह हैरान होता है कि इन दिमागफिरो को क्या हो गया है! इनका दिमाग ठीक है कि पगला गए? कैसा परमात्मा, कैसी आत्मा?

वह एक ही चीज जानता है, एक ही रस जानता है, वह पेट का है। वह पेट ही है। अगर उसका तुम्हें ठीक चित्र बनाना हो, तो पेट ही बनाना चाहिए और पेट में उसका चेहरा बना देना चाहिए। वह बड़ा पेट है। और बाकी सब चीजें छोटी—छोटी उसमें जुड़ी हैं। तामसी व्यक्ति एक असंतुलन है, अपंग है वह, उसमें और कुछ महत्वपूर्ण नहीं है।

राजसी व्यक्ति का भोजन कडुवा, खट्टा, नमकयुक्त, अति गरम, तीक्षा, रूखा, दाहकारक होगा। महत्वाकांक्षियों का भोजन इस तरह का होगा। उनको दौड़ना है, नींद नहीं चाहिए। नींद जिसको चाहिए, वह ठंडा भोजन करता है, बासा करता है। जिसको दौड़ना है, वह अति गरम भोजन करता है।

वह भी खतरनाक है। क्योंकि अति गरम भोजन दूसरी अति पर ले जाता है, वह तुम्हें दौड़ाता है, भगाता है। धन पाना है, पद पाना है, कोई महत्वाकांक्षा पूरी करनी है। सिकंदर बनना है। वह तुम्हें दौड़ाता है। तुम ज्वरग्रस्त हो जाते हो।

अब यह बडे मजे की बात है, तामसी व्यक्ति गहरी नींद सोते हैं। उन्हें कभी ट्रैंक्येलाइजर की जरूरत नहीं पड़ती। और राजसी व्यक्तियों को हमेशा ट्रैंक्येलाइजर की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि वे इतना दौड़ते हैं कि रात जब सोने का वक्त आता है, तब भी भीतर की दौड़ बंद नहीं होती, वह चलती ही चली जाती है।

राजसी व्यक्ति कुर्सी पर भी बैठेगा, तो पैर चलाता रहेगा। अब यह पैर चलाने की कोई जरूरत नहीं। वह पैर ही हिलाता रहेगा। शरीर रुक गया है, लेकिन भीतर एक बेचैनी सरक रही है, दौड़ रही है।

राजसी व्यक्ति रात भी सोएगा, तो करवटें बदलता रहेगा; हाथ—पैर तड़फड़ाएगा, फेंकेगा। तामसी व्यक्ति मिट्टी के लोंदे की तरह पड़ा रहता है। वह हिलता—डुलता नहीं। तामसी व्यक्ति भयंकर रूप से घुर्राता है।

आठ घंटे से ज्यादा नींद की आकांक्षा पैदा हो जवान आदमी को, तो समझना चाहिए तमस। बूढ़े आदमी को तीन—चार घंटे से ज्यादा नींद की आकांक्षा पैदा हो, तो समझना चाहिए, तमस।

ध्यान रखना, उम्र के साथ नींद का अनुपात घटता जाएगा। बच्चा पैदा होता है, तो बाईस घंटे सोता है। वह तमस में नहीं है। वह उसकी जरूरत है। अगर चौबीस घंटे सोए, तो तमस है, बाईस घंटे उसकी जरूरत है। फिर जैसे—जैसे बड़ा होगा, बीस घंटे, अठारह घंटे, कम होता जाएगा। सात साल का होते—होते उसकी नींद आठ घंटे पर आ जानी चाहिए, तो संतुलित है। फिर यह आठ घंटे पर टिकेगी जीवन के बड़े हिस्से पर। लेकिन मरने के सात वर्ष पहले फिर घटना शुरू होगी। छ: घंटे रह जाएगी, पाच घंटे रह जाएगी, चार घंटे रह जाएगी।

जिस दिन नींद आठ घंटे से नीचे कम होनी शुरू हो, उस दिन समझना चाहिए, अब मौत के पहले चरण सुनाई पड़ने लगे। क्योंकि नींद आती है शरीर के निर्माण के लिए।

मां के पेट में बच्चा चौबीस घंटे सोता है। सिर्फ थोड़े—से राजसी बच्चों को छोड्कर, जो मां के पेट में पैर वगैरह चलाते हैं। नहीं तो चौबीस घंटे सोता है। जरूरत है, शरीर बन रहा है, बड़ा काम चल रहा है शरीर में। नींद से सहयोग मिलता है; नींद टूटने से बाधा पड़ती है।

फिर तुम चौबीस घंटे काम करते हो, तो आठ घंटा काफी है। उतनी देर में शरीर अपना पुनर्निर्माण कर लेता है। मरे हुए सेल फिर से बन जाते हैं। रक्त शुद्ध हो जाता है। शक्ति पुनरुज्जीवित हो जाती है। सुबह तुम फिर ताजे हो जाते हो।

लेकिन बूढ़े आदमी के शरीर में बनने का काम बंद हो गया। अब मरे सेल मर जाते हैं, बनते नहीं। अब विदाई का क्षण आने लगा, नींद कम होने लगी।

मेरे पास बूढ़े आदमी आ जाते हैं। कभी सत्तर साल का आदमी, और वह कहता है, कुछ नींद का उपाय बताएं। बस, दों—तीन घंटे आती है।

क्या चाहते हो तुम? नींद की अब कोई जरूरत ही न रही। नींद तुम्हारी थोड़े ही जरूरत है! वह प्रकृति की व्यवस्था है। बूढ़ा आदमी तीन घंटे सो लेता है, बहुत है, पर्याप्त है। इससे ज्यादा की जरूरत नहीं है। मरने के एक दिन पहले नींद बिलकुल ही खो जाएगी। क्योंकि अब मौत करीब आ गई। सब टूटने का दिन आ गया। अब बनना कुछ भी नहीं है। तो अब नींद कैसे आ सकती है! नींद तो बनने के लिए आती है।

इसलिए तामसी वृत्ति का व्यक्ति भयंकर वजन इकट्ठा करने लगेगा शरीर में। क्योंकि वह सोए जाएगा, सोए जाएगा, और शरीर बनता जाएगा। और शरीर का उपयोग वह कभी न करेगा। तो शरीर पर वजन बढ़ने लगेगा, चर्बी इकट्ठी होने लगेगी। वह सिर्फ बोझ की तरह हो जाएगा।

रजस की आकांक्षा से भरा हुआ व्यक्ति हमेशा जो भी करेगा, उसमें दौड़ खोजना चाहेगा, उत्तेजना। क्योंकि उत्तेजना के बल पर ही वह जी सकता है। यह जो उत्तेजित व्यक्ति है, रात सो भी न सकेगा। उत्तेजना इतनी है कि बिस्तर पर भी पड़ जाता है, लेकिन मस्तिष्क में उत्तेजना चलती रहती है।

तमस से भरा हुआ व्यक्ति शरीर में जीता है, वह शरीर ही है। बाकी चीजें नाम—मात्र को हैं। रजस से भरा व्यक्ति मन में जीता है, वह मन ही है। बाकी चीजें नाम—मात्र को हैं। वह शरीर की कुर्बानी दे देता है मन की आकांक्षा के लिए। वह आत्मा की भी कुर्बानी दे देता है मन की आकांक्षा के लिए। वह मन में ही जीता है। वह मन का सिकंदर है। सारा साम्राज्य फैलाना है दुनिया पर।

जो व्यक्ति सत्य से भरा है, वह इन दोनों से भिन्न है। वह संतुलित है। न तो वह अति ठंडा भोजन करता है, न वह अति गरम भोजन करता है। वह उतना ही गरम भोजन करता है, जितना शरीर की जठराग्नि से मेल खाता है। उतना ही ताप वाला भोजन करता है, जितना पेट का ताप है। वह थोड़ा—सा उष्ण—एकदम गरम नहीं, एकदम ठंडा नहीं—वैसा भोजन करता है, जिससे उसका शरीर तालमेल पाता है। वह शरीर के ताप के अनुसार भोजन करता है।

उसकी आयु स्वभावत: ज्यादा होगी, क्योंकि वह प्रकृति के अनुसार जीता है, प्रकृति के समस्वरता में जीता है। उसकी बुद्धि स्वभावत: शुद्ध होगी, तीक्ष्ण होगी, स्वच्छ होगी, निर्मल दर्पण की तरह होगी, क्योंकि वह शुद्ध आहार कर रहा है; शाकाहारी होगा आमतौर से। इस तरह का भोजन लेगा, जो लेते समय उत्तेजना नहीं देता, शांति देता है, एक स्निग्धता देता है। और प्रीति को बढ़ाता है। रजस व्यक्ति का भोजन क्रोध को बढ़ाता है। तमस व्यक्ति का भोजन आलस्य को बढ़ाता है। सत्व व्यक्ति का भोजन प्रीति को बढ़ाता है। तुम उसके पास प्रीति की गंध पाओगे। तुम उसके पास हमेशा मधुमास पाओगे। उसके पास एक मधुरिमा होगी, एक मिठास होगी। उसके बोलने में, उसके उठने—बैठने में एक संगीत होगा, एक लयबद्धता होगी। क्योंकि उसका शरीर भीतर भोजन के साथ लयबद्ध है।

शरीर भोजन से ही बना है। इसलिए बहुत कुछ भोजन पर निर्भर है। भोजन न करोगे, तो तीन महीने में शरीर विदा हो जाएगा। शरीर भोजन है। शरीर भोजन का ही रूपांतरण है। इसलिए कैसा तुम भोजन करते हो, उससे शरीर निर्मित होगा।

उसके जीवन में प्रीति होगी। आलसी व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता। आलसी व्यक्ति प्रेम मांगता है। इस फर्क को ठीक से समझ लेना।

आलसी व्यक्ति प्रेम मांगता है, मुझे प्रेम करो। वह सारी दुनिया के सामने इश्तहार लगाए बैठा है, सब मुझे प्रेम करो। चारों खाने बिस्तर पर पड़ा है, सारी दुनिया उसको प्रेम करे। और शिकायत उसकी है कि कोई प्रेम नहीं करता।

राजसी व्यक्ति न तो प्रेम करता है और न मांगता है। उसे फुरसत नहीं इस धंधे में पड़ने की। उसके लिए प्रेम के सिवाय और भी बहुत काम हैं। प्रेम सब कुछ नहीं है, प्रेम गौण है।

धनियों के बच्चे सत्य की तरफ नहीं बढ़ पाते; बाप को फुरसत नहीं है। वह धन इकट्ठा कर रहा है। हालांकि वह कहता यही है कि इन्हीं के लिए इकट्ठा कर रहा हूं! लेकिन इनसे कभी मिलना ही नहीं होता। जब वह आता है घर वापस, तब तक बच्चे सो गए होते हैं। जब सुबह वह भागता है बाजार की तरफ, तब तक बच्चे उठे नहीं होते हैं। वह भाग—दौड़ में है। कभी रास्ते पर सीढ़ियां चलते मिल जाते हैं, तो जरा पीठ थपथपा देता है। वह भी उसे ऐसा लगता है कि बेकार का काम है। इतनी शक्ति बचती, तो और धन कमा लेते! इतना ही किसी और को थपथपाते बाजार में, तिजोरी भर जाती। यह नाहक बीच में आ गया।

धनियों के बच्चों का बाप से मिलना ही नहीं होता। और बहुत धनियों के बच्चों को उनकी मां से भी मिलना नहीं होता। क्योंकि मां को भी कहां फुरसत है! क्लब है, सोसाइटी है, पच्चीस जाल हैं। पति के साथ जाना है भोजनों में। क्योंकि उस पर पति का धंधा निर्भर करता है। पति के साथ जाकर हंसना है, बात करना है लोगों से। क्योंकि यह धंधे के लिए जरूरी है।

बहुत धनी के घर में न तो पत्नी का पता चलता है, न पति का पता चलता है। बच्चे आवारा होते हैं। नौकरों के द्वारा पाले जाते हैं। फिर जो परिणाम होता है, वह जाहिर है।

महत्वाकांक्षी व्यक्ति मन की दौड़ में जीता है। न वह प्रेम करता है, न वह मांगता है।

सत्व को उपलब्ध व्यक्ति के जीवन में प्रेम का दान है। वह मांगता नहीं, वह सिर्फ देता है।

तमस मांगता है। सत्व देता है। रजस को फुरसत नहीं है। सत्य इतने प्रेम से भर देता है तुम्हारी जीवन—ऊर्जा को, ऐसे परितोष से, ऐसे संतोष से, ऐसी गहन तृप्ति से कि तुम बांटने में उत्सुक हो जाते हो। तुम बांटते हो, क्योंकि तुम्हारे पास इतना है, तुम करोगे क्या! और जितना तुम बांटते हो, उतना बढ़ता है।

आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, चिकने, स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय आहार सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं।

जो स्वभाव से ही प्रिय हैं! सात्विक गुणों का व्यक्ति स्वाद के कारण भोजन नहीं करता, यद्यपि बहुत स्वाद भोजन में लेता है, जैसा कोई भी नहीं लेता। लेकिन स्वाद निर्धारक नहीं है। निर्धारक तत्व तो है शरीर की प्रकृति, स्वभाव की अनुकूलता, तारतम्य, संगीत। यद्यपि सात्विक व्यक्ति परम स्वाद को उपलब्ध होता है। सात्विक व्यक्ति के आहार को अगर तुम तामसी को दो, तो वह कहेगा, क्या घास—पात! इसमें कुछ भी नहीं है, यह क्या खाना है! अगर राजसी को दो, वह कहेगा, कोई इसमें स्वाद नहीं है, तेजी नहीं है, उत्तेजना नहीं है। मिर्च नहीं है, नमक नहीं है ज्यादा।

ध्यान रखना, जो लोग मिर्च—मसाले पर जीते हैं, वे यह न समझें कि वे स्वाद ले रहे हैं। मिर्च—मसाले की जरूरत ही इसलिए है कि उनका स्वाद मर गया है। उनकी जीभ इतनी मुरदा हो गई है कि जब तक वे जहर न रखें उस पर, तब तक उसे कुछ पता नहीं चलता, इसलिए मिर्च रखनी पड़ती है। मिर्च रखने से थोड़ी—सी तड़फन जीभ में होती है। वह मरी—मराई जीभ थोड़ी कंपती है। उन्हें लगता है, स्वाद आया!

लेकिन जिसकी जीभ जीवित है, उसे मिर्च की जरूरत नहीं है। वह मिर्च को बरदाश्त न कर सकेगा। जिसका स्वाद जीवित है, वह तो साधारण फलों से, सब्जियों से इतने अनूठे स्वाद को ले सकेगा कि वह सोच ही नहीं सकता कि तुम क्यों मिर्च डालकर सब्जियों के स्वाद को नष्ट कर रहे हो! यह स्वाद को नष्ट करना है। मसाला नष्ट करने का उपाय है। स्वाद बढ़ता नहीं मसाले से।

लेकिन तुम्हें तकलीफ होगी। अगर आज तुम अचानक मसाला छोड़ दो, तो सब बेस्वाद मालूम पडेगा। क्योंकि स्वाद का अभ्यास करना होगा।

तुम्हें अगर बाजार की आदत हो जाए तो हिमालय तुम्हें सूना मालूम पड़ेगा। अगर तुम्हें झगड़े और उपद्रव की आदत हो जाए तो किसी दिन तुम मौन से बैठो तो ऐसा लगेगा कि समय कटता ही नहीं। तुम्हारी जीभ अगर मसालों से भर गई हो, तो स्वाद खो दिया है। जीभ बड़ा कोमल तत्व है। और स्वाद के जो छोटे—से हिस्से हैं जीभ पर, उनसे ज्यादा कोमल कोई चीज नहीं है तुम्हारे पास। उनको अगर तुमने बहुत तेज चीजें दी हैं, तो वे मर गए उनकी अनुभव करने की शक्ति चली गई। अब और तेज चाहिए, और तेज चाहिए, तभी थोड़ी—बहुत तडूफन होती है, तो मालूम पड़ता है कुछ स्वाद आ रहा है।

सात्विक व्यक्ति स्वाद के लिए भोजन नहीं करता, लेकिन जितना स्वाद वह लेता है, दुनिया में कोई भी नहीं लेता। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि सात्विक को तुम अस्वाद लेने वाला मत समझ लेना। वही परम स्वाद लेता है। न तो वैसा स्वाद तमस को मिलता, न वैसा स्वाद रजस को मिलता। स्वाद मिलता ही उसे है, जो प्रकृति के अनुकूल चलता है। उसे पूरे जीवन का पूरा स्वाद मिलता है। सभी दिशाओं में सात्विक व्यक्ति की संवेदना खुल जाती है। वह ज्यादा सुनता है, ज्यादा देखता है, ज्यादा छूता है, ज्यादा स्वाद लेता है, ज्यादा गंध पाता है।

सात्विक व्यक्ति गुलाब के फूल के पास से निकलता है, तो उसे गंध आती है। राजसी निकलेगा, तो उसने बाजार के कचरा इत्र लगा रखे हैं, उन इत्रों की गंध की तेजी में गुलाब के फूल से गंध ही नहीं आती। उसे सस्ते बाजार में बिकने वाले इत्र चाहिए, दो कौड़ी के। लेकिन उनसे ही उसको थोड़ी गंध आती है। उसके नासापुट मर गए। अगर कहीं कोई शास्त्रीय संगीत हो रहा हो, तो उसे मजा नहीं आता। वह कहता है, यह क्या हो रहा है!

तुम्हारे जीवन की सभी संवेदनाएं क्षीण हो गई हैं। या तो तमस में सो गई हैं, या रजस में उत्तेजना के कारण मर गई हैं। सत्य को उपलब्ध व्यक्ति परम संवेदनशील है।

इसलिए मैं तुमसे कहता हूं बुद्ध पुरुष जितना जीते हैं, तुम नहीं जी सकते। तुम तो जीने का सिर्फ बहाना कर रहे हो। बुद्ध पुरुष प्रगाढ़ता से जीते हैं। फूल उनके लिए ज्यादा गंध देते हैं। हवाएं उन्हें ज्यादा शीतलता देती हैं। नदी का कल—कल नाद उन्हें ओंकार के नाद से भर देता है। वे सन्नाटे को सुनने में समर्थ हो जाते हैं। साधारण भोजन भी उन्हें परम स्वाद देता है। और साधारण मनुष्य भी उन्हें परम सुंदर की प्रतिमाएं मालूम होने लगते हैं। उन्हें सारा जगत सुंदर हो जाता है। वे सत्यम्, शिवम् और सुंदरम् को उपलब्ध हो जाते हैं।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) 

हरिओम सिगंल

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