बुधवार, 18 नवंबर 2020

गीता दर्शन अध्याय 18 भाग 7

 तीन प्रकार के कर्म


  नियतं सङ्गरहितमराग्डेषत: कृतम्।

अफत्नप्रेप्‍सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्‍यते।। 23।।

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुन:।

क्रियते बहलायासं तद्राजममुदह्रतम्।। 24।।

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरूषम्।

मोहादारभ्‍यते कर्म यत्तत्तामसमुव्यते।। 25।।


तथा हे अर्जुन, जो कर्म शास्त्र— विधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित, फल को न चाहने वाले पुरूष द्वारा बिना राग—द्वेष से किया हुआ है वह कर्म तो सात्विक कहा जाता है।

और जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त है तथा कल को चाहने वाले और अहंकारयुक्‍त पुरूष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है।

तथा जो कर्म परिणाम, हानि हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह कर्म तामस कहा जाता है।


तथा हे अर्जुन, जो कर्म शास्त्र—विधि से नियत किया हुआ और कर्तापन के अभिमान से रहित, फल को न चाहने वाले पुरुष द्वारा बिना राग — द्वेष से किया हुआ है, वह कर्म तो सात्विक कहा जाता है। और जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त है तथा फल को चाहने वाले और अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है।

तथा जो कर्म परिणाम, हानि और हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है, वह कर्म तामस कहा जाता है।

तामस का अर्थ है, मूर्च्छा की एक दशा, जिसमें तुम सोए—सोए हो। जैसे कोई नींद में चलता हों। कई लोगों को निद्रा में चलने का रोग होता है। रात उठते हैं, फ्रिज के पास पहुंच जाते हैं, खोल लेते हैं फ्रिज, आइसक्रीम खा लेते हैं, कोका—कोला पी लेते हैं; बंद कर देते हैं, वापस लौट जाते हैं; सो जाते हैं।

सुबह उनसे पूछो; उन्हें कुछ याद नहीं। अगर बहुत चेष्टा करेंगे, तो इतनी ही याद आएगी कि एक सपना देखा कि फ्रिज के पास खड़े हैं। सपने में फ्रिज खोला, सपने में सपने की ही आइसक्रीम खाई, ऐसी उनको याद ज्यादा से ज्यादा आ सकती है।

ऐसे लोगों ने कई बार दुनिया में बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। क्योंकि खुद ही आदमी रात उठता है, घर में गड़बड़ कर आता है, सो जाता है। सुबह पुलिस में खबर करता है कि रात घर में कोई घुसा था, क्योंकि चीजें अस्तव्यस्त हैं! कई स्त्रियां पकड़ी गई हैं, जो खुद ही रात को उठकर अपनी साड़ियों को काट देती हैं और सुबह उपद्रव खड़ा हो जाता है कि किसने साड़ियां काटीं? कोई भूत—प्रेत घर में घुस गया है! आग लगा दी है लोगों ने अपने ही सामानों में।

धीरे— धीरे मनोविज्ञान एक तथ्य पर पहुंचा कि बहुत—से लोगों को यह बीमारी है। जब इस तरह का बीमार आदमी रात में उठकर चलता है, तो उसकी आंख खुली होती है और नींद नहीं टूटती। इसलिए वह टकराता भी नहीं।

तामस ऐसी ही जीवन—दशा है, जिसमें तुम चलते हो, फिर भी क्यों चल रहे हो, पता नहीं। दुकान करते हो, क्यों कर रहे हो, पता नहीं। झगड़ा भी हो जाता है, किसी की हत्या भी कर देते हो, पता ही नहीं। पीछे तुम्हीं कहते हो, कुछ पता नहीं, मेरे बावजूद हो गया! मैं करना नहीं चाहता था और हो गया। मैंने सोचा ही नहीं, और हो गया। क्रोध के क्षण में हो गया। होश ही न था।

ऐसी नशे की दशा में जो जीवन—व्यवहार चल रहा है, उसे कृष्ण कहते हैं, वह तामस की अवस्था है।

परिणाम का विचार किए बिना, हानि और हिंसा का विचार किए बिना, सामर्थ्य का ध्यान दिए बिना, केवल अज्ञान से, केवल अंधेरे से जो उठता है कृत्य; जिसके लिए तुम अपना उत्तरदायित्व भी नहीं मानते, जिसके लिए तुम यह भी नहीं कह सकते कि मैंने किया है, क्योंकि तुमने होशपूर्वक किया ही नहीं है।

बहुत—से हत्यारे अदालतों में कहते हैं कि उन्होंने हत्या की ही नहीं। पहले तो समझा जाता था कि वे झूठ बोल रहे हैं। लेकिन अब तो झूठ को पकड़ने के लिए लाई—डिटेक्टर की मशीन तैयार हो गई है। ऐसे हत्यारों को लाई—डिटेक्टर पर खड़ा करके भी पूछा गया है। वे तब भी कहते हैं कि नहीं, हमने हत्या की ही नहीं। और मशीन भी कहती है कि वे ठीक कहते हैं। और सब गवाह मौजूद हैं कि उन्होंने हत्या की है। रंगे हाथ वे पकड़े गए हैं। क्या मामला है?

मनसविद इस पर काफी अध्ययन किए हैं पिछले तीस वर्षों से। और उन्होंने पाया कि इन्होंने हत्या की है, लेकिन इतने गहन तमस में की है कि इनको पता ही नहीं है कि इन्होंने की है। नींद में हो गई है।

इसलिए पश्चिम में मनोविज्ञान और कानून के बीच एक बड़ा संघर्ष शुरू हुआ है। क्योंकि मनोविज्ञान कहता है, इस तरह के आदमी को सजा देना गलत है। जब उसने किया ही नहीं, किसी मूर्च्छा के क्षण में हुआ है, तो सजा देने का क्या सार है? उसने किया होता, जानकर किया होता, तो सजा का कोई अर्थ था।

छोटे बच्चों को तो हम सजा नहीं देते, क्योंकि हम कहते हैं कि उनकी समझ नहीं, उत्तरदायित्व नहीं। अगर शराबी कोई पाप कर ले, कोई अपराध कर ले, तो उसको भी हम कम सजा देते हैं, क्योंकि वह शराब पीए था। अगर यह सिद्ध हो जाए कि आदमी पागल है और पागलपन में उसने कुछ किया, तो हम उसे माफ कर देते हैं, क्योंकि पागल को क्या दंड देना! अब मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तमस में जिन्होंने किया है, उनको भी क्या दंड देना। उनका भी कोई उत्तरदायित्व थोड़े ही है।



दूसरे तरह का ऐसा कर्म है, जिसको हम राजस कहते हैं। एक, पहला तामस, दूसरा जिसे हम राजस कहते हैं।

बहुत परिश्रम से युक्त, फल को चाहने वाले, अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा जाता है।

राजस ऐसा कर्म है, जो तुम्हारी उत्तेजना के कारण तुम करते हो। तामस ऐसा, जो तुम अपनी मूर्च्छा के कारण करते हो।

लोग हैं, जिनके जीवन में ऐसी रेस्टलेसनेस, ऐसी उत्तेजना है कि वे खाली नहीं बैठ सकते; उन्हें कुछ करने को चाहिए। अगर वे न करें, तो बड़े बेचैन होने लगते हैं। अगर कुछ न हो, तो उसी अखबार को दुबारा पढ़ेंगे, तीसरी बार पढ़ेंगे; रेडियो खोल लेंगे, खिड़की खोलेंगे, बंद करेंगे; सामान उठाकर रखने लगेंगे यहां—वहां। महिलाएं घर में निरंतर करती रहती हैं इस तरह का काम। फर्नीचर ही जमा रही हैं! घर की सफाई ही कर रही हैं! सफाई जो कि काफी हो चुकी, उसको किए चली जा रही हैं।

कुछ एक भीतरी उत्तेजना है, जो उससे निकल रही है। लोगों को इसीलिए तो ध्यान करना सबसे कठिन मामला है।

मूर्च्छित ध्यान करे, सो जाता है। राजसी ध्यान करे, हजार तरह के काम उसके शरीर में उठने लगते हैं। कहीं पैर में चींटी काटती है, देखता है, चींटी है ही नहीं। मगर चींटी काटती है। कहीं खुजलाहट उठती है। पहले कभी न उठी थी, जिंदगीभर न उठी थी। आज कमर खुजला रही है, कहीं पीठ खुजलाती है, कहीं सिर खुजलाता है।

ये सब भीतरी उत्तेजनाएं हैं। इसलिए राजस शांत नहीं बैठ सकता। राजस के लिए सबसे कठिन बात है, थोड़ी देर शांत बैठ जाना। राजस तामस से भी खतरनाक लोग हैं। क्योंकि तामसी आदमी तो कभी—कभार कुछ करता है। वह तो आलसी होता है। इतना पक्का है कि तामसी आदमी से अच्छा काम नहीं होता, बुरा काम भी नहीं होता। राजस बहुत उपद्रवी है।

ताकत के खोजी हैं। फिर वे सता सकते हैं। फिर तुम उन्हें रोक नहीं सकते। फिर वे हजार बहाने खोज लेते हैं, उन्हें जो करना है, जो बोलना है। वह सारी राजस की व्यवस्था है। बहुत परिश्रम करते हैं वे, इसमें कोई शक नहीं। अगर श्रम को ही मूल्य देना हो, तो राजसी लोग बड़ी मेहनत उठाते हैं। परिणाम कुछ नहीं आता, मगर मेहनत बड़ी उठाते हैं। दौड़ते बहुत हैं, पहुंचते कहीं नहीं। कोल्हू के बैल सिद्ध होते हैं। लेकिन यात्रा काफी करते हैं।

और तीसरा है सत्व कर्म, सात्विक कर्म। जो शास्त्र—विधि से नियत......।

शास्त्रों द्वारा कहा हुआ; जिन्होंने जाना है, जो जागे हैं, उनके इशारे के अनुसार जो किया जाए।

तामसी व्यक्ति अपने अज्ञान के इशारे से करता है, राजसी व्यक्ति अपने भीतर अतिशय शक्ति के कारण करता है, उत्तेजना के कारण करता है, ऊर्जा के कारण करता है। सात्विक व्यक्ति न तो अपने अज्ञान से करता है, न अपनी ऊर्जा के कारण करता, शास्त्रों के वचनों के अनुसार करता है। जो जागे, उन बुद्ध पुरुषों से सूत्र लेता है। उन्होंने जो कहा, वही करता है। अपने पर भरोसा नहीं करता, बुद्ध पुरुषों पर भरोसा करता है। अपने को बाद दे देता है, बुद्ध पुरुषों को आगे ले लेता है।

जो कर्म शास्त्र—विधि से नियत, कर्तापन के अभिमान से रहित..।

स्वभावत:, जब तुम शास्त्रों के नियम मानकर चलोगे, तो तुम्हें कर्तापन का भाव होगा ही नहीं, तुमने किया ही नहीं।

सात्विक व्यक्ति, जो शास्त्रों के वचन मानकर चलता है, जो उनके दीए की ज्योति में चलता है, जो अपने अहंकार से इशारे नहीं लेता और न अपने अज्ञान से इशारे लेता है; जो कहता है, तुम दोनों चुप रहो; जिन्होंने जाना है, उनका सूत्र मेरा जीवन—सूत्र होगा। 

स्वभावत:, उसका कर्तापन गिर जाता है। उसको फल की भी कोई चाहना नहीं होती। वह तो, जो जानने वालों ने कहा है, उसे करने में ही इतना आनंदित हो जाता है कि अब और फल क्या चाहिए! उसे साधन ही साध्य हो जाता है। उसे इसी क्षण सब कुछ मिल जाता है; उसे कल की कोई वासना नहीं रह जाती। वैसा कर्म सात्विक कहा जाता है।

ये तीन कर्म हैं, मगर तीनों के भीतर तुम्हारी तीन तरह की चेतना की अवस्थाएं हैं। असली सवाल कर्म का नहीं है, असली सवाल तुम्हारी चेतना—अवस्था का है। तमस का अर्थ है, तुम मूर्च्‍छित। रजस का अर्थ है, तुम विक्षिप्त। सत्व का अर्थ है, तुम होशपूर्वक, जागे हुए, ध्यानपूर्वक, सुरति से भरे।

मूर्च्छा से खींचो अपने को, अहंकार से भी उठाओ अपने को। न तो अज्ञान के कारण कुछ करो, न करना है, करने में रस आ रहा है, उत्तेजना मिल रही है, इसलिए करो; बल्कि इसलिए करो, ताकि प्रत्येक कृत्य तुम्हारे भीतर और नए जीवन की, जागरण की सुविधा बन जाए। प्रत्येक कृत्य तुम्हें और जगाए, तुम्हारा प्रत्येक कृत्य तुम्हें और सावधानी से भरे। प्रत्येक कृत्य कदम बन जाए तुम्हारे अंतर—जागरण का, तो एक दिन तुम्हारे भीतर सोया हुआ बुद्ध उपलब्ध हो सकता है।

पाने को कहीं जाना नहीं; भीतर ही खोदना है। होने को कहीं जाना नहीं; खजाना तुम लेकर ही आए हो। जो है, उसे तुम लिए ही हुए हो, इस क्षण भी। सिर्फ जागना है, सिर्फ होश से भरना है।

(भगवान कृष्‍ण के अमृत वचनों पर ओशो के अमर प्रवचन) 

हरिओम सिगंल

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